चुनावों की आहट सुनकर अक्सर अखबार चौकस हो जाया करते हैं। लेकिन आंध्र प्रदेश में इस बार अखबारों की चौकसी की वजह सिर्फ चुनाव ही नहीं हैं।
वहां पिछले पांच महीनों में दो नए अखबारों, ‘साक्षी’ और ‘शौर्य’ की इंट्री की वजह से अखबारी बाजार काफी गर्म हो गया है। आंध्र में अगले साल अप्रैल में चुनाव होने वाला है।कहानी को इस कदर रोमांचक बनाने में सबसे बड़ा हाथ है मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी के बेटे वाई.एस. जगमोहन रेड्डी की जगती पब्लिकेशन का।
इसके अखबार ‘साक्षी’ ने शुरू होने के दिन ही 12 लाख प्रतियां बेच तेलगू अखबारी जगत पर कायम ईनाडू समूह की दसियों सालों की बादशाहत को खतरे में डाल दिया। खबर यह भी है कि दैनिक भास्कर समूह भी इस अखाड़े में कूदना चाहता है। यह समूह हिन्दी में ‘दैनिक भास्कर’ अखबार के साथ गुजराती में ‘दिव्य भास्कर’ और अंग्रेजी में ‘डीएनए’ भी छाप रहा है।
कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी पी.जी. मिश्रा ने इस बारे में कुछ भी कहने से साफ इनकार दिया। हालांकि, मीडिया इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि यह कंपनी अपने तेलगू अखबार के लिए एक संपादक की तलाश कर रही है। वैसे, आपको इस बात से तााुब तो होगा, लेकिन इस इलाके में लोगों की बढ़ती रुचि को समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है। यह सूबा हमेशा से ही राजनैतिक रूप से काफी सक्रिय रहा है। इस ‘सक्रियता’ को दिखाने में अखबारों ने काफी बढ़ चढ़कर छापा है।
जगमोहन रेड्डी के आलोचकों का कहना है कि, ‘उन्होंने यह अखबार कांग्रेस और अपने पिता की सत्ता को बरकरार रखने के लिए शुरू किया है। नहीं तो आप ही बताइए उन्हें इसकी जरूरत क्यों पड़ी? उनका ऊर्जा और सीमेंट का बिजनेस तो काफी अच्छा चल रहा है।’ ईनाडू समूह के टॉप के दो अखबार ‘ईनाडू’ और ‘आंध्र ज्योति’ को कांग्रेस विरोधी माना जाता है।
कहा जा रहा है कि ‘आंध्र ज्योति’ इस बार तेलगू फिल्मों के अभिनेता चिंरजीवी का समर्थन कर रही है। चिरंजीवी अभी हाल ही में राजनीतिक अखाड़े में कूदे हैं और उम्मीद है कि अगले महीने वह अपनी पार्टी की घोषणा भी कर सकते हैं।
इस बारे में ‘आंध्र ज्योति’ के प्रबंध निदेशक वी. राधाकृष्णन का कहना है कि, ‘पहले आरोप लगता था कि हम चंद्रबाबू नायडू से पैसे ले रहे हैं और हमें चिरंजीवी का अखबार कहा जा रहा है।’ उन्होंने अपनी मुस्कुराहट छुपाते हुए कहा कि,’वैसे चिरंजीवी को मेरा नैतिक मदद है। वह एक साफ- सुथरा आदमी है और वो यहां सचमुच समाज की सेवा करने के लिए आया है।’
वैसे, चुनावों के साथ-साथ विज्ञापनों से होने वाली मोटी कमाई भी यहां बड़े अखबारी कंपनियों के आने की एक बड़ी वजह है। एक स्थानीय ऐड एजेंसी के प्रमुख का कहना है कि, यहां अखबारों के लिए बिना सरकारी सहयोग के जिंदा रहना मुश्किल है।
यहां के प्रिंट मीडिया को हर साल सरकारी और गैर सरकारी स्रोतों से कम से कम 750 करोड़ रुपये के विज्ञापन मिलते हैं। इसमें से अकेले 400 करोड़ रुपये तो रामजी राव के ईनाडू की झोली में जाते हैं। रेड्डी का कहना है कि,’मुझे इस सेक्टर में उम्मीद ईनाडू की वजह से ही नजर आई। अगर मैं गलत नहीं हूं, तो यह अखबार हर महीने 17 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाती है।’