सरकार लॉजिस्टिक्स में सुधार पर जो ध्यान केंद्रित कर रही है उसके भी लाभ सामने आ रहे हैं लेकिन यह लड़ाई ऐसी है जिसे चतुराईपूर्वक और लगातार लड़ना होगा। बता रहे हैं अजय छिब्बर
विश्व बैंक के 139 देशों वाले लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स 2023 में भारत ने छह स्थानों का सुधार करके 38वां स्थान हासिल कर लिया है। तुर्किये, सऊदी अरब और पुर्तगाल जैसे अपेक्षाकृत अमीर देश भी रैंकिंग में इसी स्थान पर हैं। यह बहुत सकारात्मक घटनाक्रम है क्योंकि इससे देश में कारोबार करने की लागत कम होती है।
इससे भारत के निर्यात को मदद मिलेगी और भारत विनिर्माण सहित अन्य क्षेत्रों में निवेश के लिए आकर्षक केंद्र बनेगा। चीन अभी भी 19वें स्थान के साथ बहुत आगे है। मलेशिया 26वें और थाईलैंड 34वें स्थान पर है। परंतु भारत ने इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलिपींस जैसे अहम आसियान प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ दिया है। इन देशों के साथ उसका मुक्त व्यापार समझौता है।
विश्व बैंक के इस सूचकांक पर स्थिति में सुधार विश्व बैंक के ही कारोबारी सुगमता सूचकांक में सुधार से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है जहां भारत ने बीते 10 वर्षों में कई स्थानों की उछाल लगाई है। परंतु उस सूचकांक में कमियां थीं। वह वास्तविक कारोबारों के सर्वेक्षण के बजाय विशेषज्ञों के निर्णय पर आधारित था। उसमें अवधारणात्मक स्तर पर भी कमी थी। वह इस विचार पर आधारित था कि कम नियमन हमेशा बेहतर होते हैं लेकिन आर्थिक सिद्धांत और आम समझ कहती है कि यह सच नहीं हो सकता।
कमजोर नियमन के कारण ही 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट आया था। सिलिकन वैली बैंक, सिग्नेचर और फर्स्ट रिपब्लिक बैंकों की हालिया नाकामी भी 2019 से मझोले बैंकों के कमजोर नियमन से जुड़ी है। बहुत अधिक नियमन बुरा है लेकिन बहुत कम नियमन भी खराब है। ऐसे में कोई भी सूचकांक जो कम नियमन को बेहतर बनाने के विचार पर आधारित हो उसके डिजाइन में ही गड़बड़ी लाजिमी है।
विश्व बैंक ने उस सूचकांक को इन गड़बड़ी के चलते नहीं बंद किया बल्कि उसने ऐसा इसलिए किया कि चीन वरिष्ठ बैंक प्रबंधन के साथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके सूचकांक में छेड़छाड़ कर रहा था। सूचकांक कारोबारी समुदाय में बहुत लोकप्रिय था।
खासतौर पर इसलिए कि इसका पर्यावरण या श्रम नियमन से वास्ता नहीं था। विश्व बैंक अब बेहतर कारोबारी सुगमता सूचकांक तैयार करने पर विचार कर रहा है। आशा की जानी चाहिए कि यह पुराने सूचकांक की खामियों से मुक्त होगा।
परंतु वे समस्याएं लॉजिस्टिक सूचकांक के साथ नहीं हैं। यह छह घटकों पर आधारित है- सीमा शुल्क, व्यापार और परिवहन बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धी कीमत पर ढुलाई की व्यवस्था की सुगमता, लॉजिस्टिक सेवाओं की क्षमता और गुणवत्ता, माल की निगरानी करने की क्षमता और समयबद्धता। यह कारोबारी सुगमता के एक अहम घटक का भी आकलन करता है।
लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस सूचकांक पर भारत की स्थिति समय-समय पर बदली है। 2010 में यह 47वें स्थान पर था, 2014 तक यह 54वें स्थान पर आ गया और उसके बाद 2016 में 38वें स्थान पर तथा 2018 में फिसलकर 44वें स्थान पर रहा। अब यह पुन: 38वें स्थान पर है। इनकी आमतौर पर तुलना संभव नहीं है क्योंकि देशों की स्थिति बदलती रहती है। रैंक के अलावा एक से पांच के स्केल पर अंक भी दिए जाते हैं।
2023 में सिंगापुर को 4.3 अंकों के साथ सर्वोच्च स्थान मिला। 2018 में जर्मनी 4.2 अंकों के साथ उच्चतम स्थान पर था। 2012 में भारत इस सूचकांक पर 3.08 अंक पा सका था जो 2016 में सुधरकर 3.42 हो गया। 2018 में पुन: गिरावट आई और यह 3.18 अंक रह गए। अब पुन: इसमें सुधार हुआ है और यह बढ़कर 3.4 हो गया है। 2016 में भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा। उसके बाद इसमें गिरावट आई और अब यह फिर से बेहतर स्थिति में है।
आगे की बात करें तो भारत को न केवल अपने प्रदर्शन को बरकरार रखने में मेहनत करनी होगी बल्कि इसमें सुधार भी करना होगा। यह अहम है क्योंकि हमारे प्रतिस्पर्धी सुधार का प्रयास कर रहे हैं। उदाहरण के लिए फिलिपींस ने 60वें स्थान से 18 स्थानों का सुधार किया और वह 43वें स्थान पर आ गया। समयबद्धता के मोर्चे पर उसका प्रदर्शन भारत से बेहतर है।
थाईलैंड 34वें स्थान के साथ भारत से थोड़ा बेहतर है। ऐसा इसलिए कि सीमा शुल्क और व्यापार तथा परिवहन अधोसंरचना के क्षेत्र में उसका प्रदर्शन बेहतर है। भारत अधोसंरचना सुधार पर धन व्यय कर रहा है और इस दौरान उसे सीमा शुल्क व्यवस्था पर भी ध्यान देना चाहिए। इस क्षेत्र में उसका प्रदर्शन हाल में बिगड़ा है जिस पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। सिंगापुर दुनिया का सबसे बेहतर सीमाशुल्क व्यवस्था वाला देश है और हम उससे तकनीकी सहायता लेकर अपनी सेवाओं को बेहतर बना सकते हैं।
ली कुआन यू जैसे सिंगापुर के संस्थापक नेताओं ने अधोसंरचना के साथ-साथ सीमा शुल्क और उससे संबद्ध प्रक्रियाओं में सुधार पर काफी अधिक ध्यान दिया। अगर हम इन क्षेत्रों में सुधार कर सके तो यह हमारे लिए बहुत लाभदायक साबित होगा।
लॉजिस्टिक प्रदर्शन के अलावा हमें ईंधन, बिजली और मालवहन की लागत पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। रुपये के हालिया अवमूल्यन के पहले यानी प्रति डॉलर 75 रुपये से 82 रुपये होने के पहले डीजल की कीमत कई पूर्वी एशियाई देशों की तुलना में अधिक थी। यहां तक कि रुपये के अवमूल्यन के बाद भी डीजल कीमतें चीन की तुलना में 10 फीसदी तक अधिक हैं।
बिजली की कीमतें उपभोक्ताओं के लिए तो कम हैं लेकिन उत्पादकों के लिए वे अन्य प्रतिस्पर्धियों की तुलना में अधिक हैं। भारत की रेल प्रणाली में भी सुधार दिख रहा है लेकिन माल भाड़े की भी समीक्षा करने की आवश्यकता है क्योंकि उसका इस्तेमाल अक्सर यात्री किराये की क्रॉस सब्सिडी में किया जाता है।
भारत में रेल मालभाड़ा चीन और अमेरिका की तुलना में काफी अधिक है। यहां तक कि यूरोपीय संघ के अधिकांश हिस्से में भी रेल माल भाड़ा भारत की तुलना में कम है। रुपये में 10 फीसदी के हालिया अवमूल्यन के बावजूद भारतीय रेल माल भाड़ा जापान के बाद दुनिया में सबसे मंहगे रेल भाड़ों में शामिल है।
भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है और सरकार लॉजिस्टिक्स में सुधार पर जो ध्यान केंद्रित कर रही है उसके भी लाभ सामने आ रहे हैं लेकिन यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे चतुराईपूर्वक और लगातार लड़ना होगा। कारोबारी गुरु माइकल अल्लोस्सो के मुताबिक लॉजिस्टिक्स व्यय नहीं बल्कि एक निवेश है। ऐसे सुधार ही विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए आवश्यक सतत वृद्धि की बुनियाद रखते हैं।
(लेखक इक्रियर के वरिष्ठ अतिथि प्राध्यापक हैं )