अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर इस बार कारोबारी अखबारों में कई चौंकाने वाली रिपोर्ट दिखीं। जैसे 2024 में पुरुष उद्यमियों ने तकनीकी स्टार्टअप के लिए 10.8 अरब डॉलर जुटा लिए मगर महिलाओं द्वारा स्थापित कंपनियों को केवल 1 अरब डॉलर मिल सके। लेकिन उसी साल महिलाओं ने 14 फीसदी ज्यादा मकान खरीदे, जबकि पुरुषों द्वारा आवासीय खरीद केवल 11 फीसदी बढ़ी। वित्तीय क्षेत्र में बेशक 20 फीसदी कर्मचारी महिला हैं किंतु इक्विटी के सौदे कराने वालों में 20 पुरुष डीलरों के मुकाबले केवल 1 महिला डीलर है।
इस साल गणतंत्र दिवस की परेड में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ‘लखपति दीदी’ झांकी पर सबका ध्यान गया। इसमें लखपति दीदी योजना को केंद्र में रखकर दिखाया गया था कि उद्यमशीलता के जरिये महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण किस तरह हो रहा है। इस योजना के तहत महिला स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को कम से कम एक लाख रुपये की सहायता सुनिश्चित की जाती है। मंत्रालय का दावा है कि स्वयं सहायता समूहों की कम से कम 1.15 करोड़ महिला सदस्य ‘लखपति दीदी’ बन चुकी हैं। अब तक 10 करोड़ से अधिक ग्रामीण महिलाएं 9.9 करोड़ स्वयं सहायता समूहों में शामिल हो चुकी हैं। उनमें से लगभग 300 ‘लखपति दीदी’ बतौर विशेष अतिथि परेड में शामिल हुई थीं।
भारत में उद्यमशीलता में महिलाओं की भूमिका देखते हुए यह बड़ी बात है। नीति आयोग के आंकड़े बताते हैं कि उद्यमियों में केवल 13.76 फीसदी महिलाएं हैं, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 17 फीसदी योगदान करती हैं। यह 37 फीसदी वैश्विक औसत से बहुत कम है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के आंकड़ों के मुताबिक 2022 में केवल 19.2 फीसदी भारतीय महिलाएं श्रमबल का हिस्सा थीं। इससे पता चलता है कि महिलाओं और पुरुषों के रोजगार में कितना फर्क है।
आंकड़े बताते हैं कि महिला उद्यमशीलता की प्रगति और सफलता के मामले में भारत 65 देशों में 57वें स्थान पर है। लेकिन हम इतने नीचे क्यों हैं? भारत के 6.1 करोड़ सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) में से केवल 20 फीसदी की कमान महिलाओं के हाथ में है और उनमें आधे ग्रामीण क्षेत्र में काम कर रहे हैं। 5.26 फीसदी लघु उद्यम और 2.67 मझोले उद्यमों की अगुआई महिलाएं कर रही हैं। स्थिति बदलने की कोशिश चल रही हैं। महिलाएं हमेशा से स्वयं सहायता समूहों के जरिये कर्ज लेती आई हैं मगर अब खास तौर पर उनके लिए नए विकल्प तैयार करने का प्रयास चल रहा है।
2023-24 की आर्थिक समीक्षा बताती है कि शिक्षा, कौशल विकास और महिला सशक्तीकरण के अन्य कार्यक्रमों की उपलब्धता बढ़ने के साथ ही भारत की प्रगति में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ रही है। ग्रामीण भारत इस नए चलन को रफ्तार दे रहा है और श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी की दर 2022-23 में बढ़कर 37 फीसदी हो गई है, जो 2017-18 में 23.3 फीसदी ही थी। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत 54.58 करोड़ बैंक खाते खुले हैं, जिनमें 30.37 करोड़ खाते (15 जनवरी 2025 तक) महिलाओं के हैं।
समीक्षा के मुताबिक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 68 फीसदी ऋण महिला उद्यमियों को दिए गए हैं और ‘स्टैंड अप इंडिया’ के अंतर्गत 77.7 फीसदी लाभार्थी (मई 2024 तक) महिलाएं ही हैं। स्टैंड अप इंडिया महिलाओं और अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के उद्यमियों को नए कारोबार शुरू करने के लिए बैंक ऋण दिलाती है। ‘स्टार्ट अप इंडिया’ नवाचार और प्रौद्योगिकी से चलने वाले नए कारोबारों को बढ़ावा तथा मदद देने के लिए शुरू की गई सरकारी योजना है।
महिलाओं के लिए वित्त के कितने औपचारिक स्रोत उपलब्ध हैं? सूक्ष्म और लघु उद्यमों को वित्तीय मदद देने के मकसद से शुरू की गई मुद्रा (माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट ऐंड रीफाइनैंस एजेंसी) योजना पर गौर करते हैं। मुद्रा की शुरुआत 2015 में की गई थी और तब से 2023-24 तक 47.8 करोड़ मुद्रा खाते खोले गए हैं। इनमें 32.4 करोड़ यानी लगभग 67.92 फीसदी खाते महिलाओं के हैं। किंतु इसके तहत मंजूर कुल रकम में 44.46 फीसदी हिस्सेदारी ही महिलाओं की है और वितरित धनराशि में केवल 44.07 फीसदी उनके हिस्से आई है।
मुद्रा ऋण महिलाओं को ज्यादा मिल रहा है मगर मंजूर किए गए प्रति व्यक्ति ऋण को देखें तो उन्हें पुरुषों से कम रकम मिल रही है। जाहिर है कि महिलाओं की अगुआई वाले उद्यमों को उतना कर्ज नहीं मिल रहा, जितना उनके विस्तार के लिए जरूरी है। अगर हम मान लें कि माइक्रोफाइनैंस संस्थान (एमएफआई) केवल महिलाओं को कर्ज देते हैं तो वित्त वर्ष 2024 में 23.96 फीसदी खाते महिलाओं के थे। मगर 2022-23 के 25.01 फीसदी और 2021-22 के 25.98 फीसदी से ये कम हैं।
अब 2020-21 को आधार मानकर साल-दर-साल खुले महिलाओं के खातों और उन्हें दिए गए कर्ज पर नजर डालते हैं। वित्त वर्ष 22 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में महिला खाताधारकों की संख्या 19 लाख घट गई मगर अगले वित्त वर्ष में 17 लाख तथा 2023-24 में 14 लाख महिलाओं ने खाते खुलवाए। निजी बैंकों ने 2021-22 में में 45 लाख महिलाओं के नए खाते खोले मगर 2022-23 में 16 लाख और 2023-24 में 11 लाख खाते बंद हो गए।
गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर नजर डालें तो 2021-22 में 1 लाख खाते घटे मगर उधार लेने वाली महिलाओं की संख्या 2022-23 में 16 लाख और 2023-24 में 4 लाख बढ़ गई। मगर मुद्रा योजना के तहत नई महिला कर्जदारों की संख्या लघु वित्त बैंकों में लगातार घट रही है। 2021-22 में आंकड़ा 18 लाख था, जो अगले वित्त वर्ष में घटकर 8 लाख और 2023-24 में 7 लाख रह गया।
महिलाओं को मिला कर्ज देखें तो 2021-22 में सरकारी बैंकों ने 4,000 करोड़ रुपये कम ऋण दिया मगर अगले वित्त वर्ष में 41,000 करोड़ रुपये ज्यादा दिए गए। 2023-24 में एक बार फिर ऋण वितरण में 21,000 करोड़ रुपये कमी आ गई। उनके उलट निजी बैंकों से नया कर्ज लगातार बढ़ रहा है। 2021-22 और 2022-23 में 24,000 करोड़ रुपये के नए कर्ज दिए गए और 2023-24 में 34,000 करोड़ रुपये के नए कर्ज मिले। लघु वित्त बैंकों ने 2021-22 में 10,000 करोड़ रुपये के नए कर्ज दिए थे किंतु आंकड़ा घटते हुए 2023-34 में 7,000 करोड़ रुपये ही रह गया। एमएफआई से नए कर्ज 2021-22 में 2,000 करोड़ रुपये थे, जो बढ़कर 2022-23 में 18,000 करोड़ रुपये हो गए मगर अगले वित्त वर्ष में घटकर 10,000 करोड़ रुपये रह गए।
भारत को 2047 तक विकसित देश बनना है तो महिलाओं को काम मिलना भी उतना ही जरूरी है जितना कर्ज मिलना। उम्मीद है कि दोनों में ही तेजी आएगी।