विगत कुछ वर्षों में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। 2018-19 में यानी जुलाई 2017 में इसकी शुरुआत के एक वर्ष बाद जीएसटी संग्रह के भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.22 फीसदी के बराबर रहने का अनुमान जताया गया था। जीएसटी संग्रह को दोबार राजनीति से प्रेरित दर कटौती की प्रतिकूलता का सामना करना पड़ा।
पहली बार बिना युक्ति संगत बनाए या दरों की बहुलता का समाधान किए दरें कम की गई और उसके बाद कोविड महामारी सामने आई। 2021-22 में जीएसटी संग्रह बढ़कर जीडीपी के 6.3 फीसदी के बराबर हो गया। एक वर्ष बाद यह बढ़कर 6.6 फीसदी हो गया। 2023-24 की पहली छमाही में जीएसटी संग्रह के जीडीपी के सात फीसदी रहने का अनुमान है।
यकीनन जीएसटी संग्रह में सुधार की गति देश के सकल कर राजस्व की तुलना में तेज रही है। 2018-19 में केंद्र और राज्यों के संयुक्त कर संग्रह के जीडीपी के 17.35 फीसदी रहने का अनुमान था। चार वर्ष बाद भी इस हिस्सेदारी को यह स्तर पार करना था क्योंकि 2022-23 में भी यह 17.13 फीसदी थी। इसके विपरीत गत वर्ष जीएसटी संग्रह का प्रदर्शन चार वर्ष पहले की तुलना में बेहतर रहा।
अगर जीएसटी का प्रदर्शन अन्य करों की तुलना में बेहतर रहा है तो ऐसा केवल आर्थिक वृद्धि की बदौलत नहीं हुआ बल्कि इसमें संग्रहण क्षमता में सुधार की भी अहम भूमिका रही। अब करदाताओं की डिजिटल ट्रैकिंग संभव है और कर आधार विस्तारित हुआ है।
जैसा कि अरविंद सुब्रमण्यन और उनके सह-लेखकों ने 1 जनवरी को इस समाचार पत्र के अंग्रेजी संस्करण में अपने आलेख में कहा था कि औसतन वास्तविक संग्रह इस मद के तहत कुल राजस्व से सकल घरेलू उत्पाद का 0.6 से 0.7 फीसदी कम है। ऐसा मुख्य रूप से रिफंड के कारण हुआ। ये रिफंड इसलिए करने पड़ते हैं कि जीएसटी व्यवस्था के तहत निर्यात शून्य दर वाला है और इसलिए उत्पादों अथवा सेवाओं पर चुकाया गया कोई भी जीएसटी, जो अंतत: निर्यात किया जाता है वह वापस कर दिया जाता है।
यह देश के जीएसटी ढांचे का एक अहम पहलू है और ऐसे रिफंड से जुड़े मसलों को जल्द से जल्द हल करने की आवश्यकता होती है, भले ही वे जीएसटी के बेहतर प्रदर्शन पर कोई असर न डालते हों। इसी तरह दरों को तार्किक बनाने जैसे लंबित सुधारों को भी तेजी से अंजाम दिया जाना चाहिए। परंतु यह आकलन करना भी उतना ही आवश्यक है कि चार साल की इस अवधि में अप्रत्यक्ष कर के अलग-अलग घटकों ने कैसा प्रदर्शन किया और क्या कोई कमी है जिसे दूर करने की आवश्यकता है।
ध्यान रहे कि जीएसटी चार मदों में एकत्रित किया जाता है- केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर यानी सीजीएसटी, राज्य वस्तु एवं सेवा कर यानी एसजीएसटी, क्षतिपूर्ति उपकर और एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर यानी आईजीएसटी। आईजीएसटी के दो घटक हैं एक आयात पर लगाया जाता है और दूसरा अंतरराज्यीय बिक्री पर।
वर्ष 2022-23 के पूरे वर्ष के आंकड़ों को देखें तो कुल जीएसटी राजस्व का आधा से अधिक यानी 52 फीसदी आईजीएसटी के जरिये एकत्रित होता है, करीब 23 फीसदी एसजीएसटी के जरिये आता है जो राज्य स्तर पर लगाया जाता है जबकि 18 फीसदी सीजीएसटी से जो केंद्रीय स्तर पर लगाया जाता है। शेष करीब सात फीसदी जीएसटी के क्षतिपूर्ति उपकर से आता है जो बीते कुछ वर्षों से उसी स्तर पर है।
इस अवधि में जीएसटी के अलग-अलग घटकों के प्रदर्शन के रुझान से तीन परिणाम सामने आते हैं जो इनमें से हर क्षेत्र के लिए नीतिगत अनिवार्यताओं को अवश्य रेखांकित करते हैं। पहला सीजीएसटी की तुलना में एसजीएसटी के निरंतर बेहतर प्रदर्शन की पहेली को हल करना होगा। सामान्य समय में सीजीएसटी और एसजीएसटी संग्रह को वर्ष के दौरान एक समान होना चाहिए।
बहरहाल, आईजीएसटी संग्रह के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट समायोजन की प्रक्रिया में देरी और अंतराल प्रतीत होता है। ऐसे में निर्यात पर इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड के अलावा अंतरराज्यीय स्थानांतरण पर चुकाए गए आईजीएसटी का समायोजन जल्दी और सुगम होना चाहिए। शुरुआत में जीएसटी नेटवर्क निर्यात रिफंड और अंतरराज्यीय बिक्री पर इनपुट टैक्स क्रेडिट के समायोजनपर आंकड़े उपलब्ध करा सकता है ताकि समस्या के आकार का आकलन किया जा सके और सुधारात्मक कार्रवाई की जा सके।
दूसरा निष्कर्ष आयात पर आईजीएसटी संग्रह के हालिया रुझान से निकलता है। 2019-20 और 2020-21 में लगातार दो वर्ष गिरावट के बाद 2021-22 में आयात पर आईजीएसटी का संग्रह 62 फीसदी से अधिक उछल गया। 2022-23 में इसमें 25 फीसदी की उछाल आई। परंतु 2023-24 के पहले नौ महीनों में यह वृद्धि दर घटकर 2.5 फीसदी से भी कम कम रह गई। इसी अवधि में अंतरराज्यीय बिक्री पर आईजीएसटी संग्रह में तेज इजाफा हुआ। नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के शुरुआती सालों में जीएसटी संग्रह में वृद्धि मोटे तौर पर आयात पर आईजीएसटी पर आधारित थी। अब आयात पर लगने वाले आईजीएसटी पर कम निर्भरता स्वागतयोग्य है।
सबसे अहम निष्कर्ष कुल आईजीएसटी संग्रह पर लगने वाले क्षतिपूर्ति उपकर की सात फीसदी हिस्सेदारी से निकलता है। यह रेखांकित करता है कि जीएसटी परिषद को जल्दी यह निर्णय लेना होगा कि अप्रैल 2026 से इस उपकर को वापस लिए जाने के बाद इससे कैसे निपटा जाएगा। 2022-23 में मोटर वाहनों, एरिएटेड वाटर, कोयला और पान मसाला जैसी वस्तुओं की बिक्री से हासिल 1.26 लाख करोड़ रुपये का संग्रह नीति निर्माताओं को एक अवसर देता है।
क्या उपकर को समाप्त कर दिया जाएगा या मौजूदा ढांचे में शामिल कर लिया जाएगा? अगर इसे बंद किया गया तो उन उत्पादों को बड़ी राहत मिलेगी जिन पर अभी यह उपकर लगता है। इससे कीमतों के लिहाज से संवदेनशील क्षेत्रों में मांग भी बढ़ सकती है। उपकर को मौजूदा कर ढांचे में समाहित भी किया जा सकता है और राजस्व का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बदलावों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। चाहे जो भी हो भारतीय अर्थव्यवस्था को शीघ्र निर्णय से लाभ होगा।
मूल रूप से उपकर को करीब पांच साल यानी जून 2022 तक लागू रखना था और इसके जरिये राज्यों को क्षतिपूर्ति करनी थी जिनकी सालाना राजस्व वृद्धि 2015-16 के आधार स्तर के 14 फीसदी को पार करने में नाकाम रही। बहरहाल कोविड महामारी के कारण 2020-21 और 2021-22 में उपकर से इतनी राशि नहीं मिली कि राज्यों की क्षतिपूर्ति की जा सके। ऐसे में केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक के साथ विशेष व्यवस्था करके 2.7 लाख करोड़ रुपये की राशि कर्ज के रूप में ली।
इस पैसे का इस्तेमाल जून 2022 तक राज्यों की क्षतिपूर्ति में आई कमी की भरपाई के लिए किया गया। बहरहाल, क्षतिपूर्ति उपकर को मार्च 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया और इस बात पर सहमति बनी कि जुलाई 2022 के बाद एकत्रित राशि का इस्तेमाल केंद्र द्वारा कर्ज चुकाने में किया जाएगा। जुलाई 2022 से दिसंबर 2023 के बीच कुल क्षतिपूर्ति उपकर की राशि दो लाख करोड़ रुपये रही।
मौजूदा दर के मुताबिक जनवरी 2024 से मार्च 2026 के बीच के संग्रह से 3.24 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि जुटनी चाहिए। यानी मार्च 2026 के कुछ महीने पहले ही केंद्र का ऋण चुक जाएगा। यानी जीएसटी परिषद के पास अवसर होगा कि वह उपकर को पहले ही समाप्त कर दे। यह भी एक वजह है कि आखिर क्यों परिषद को उपकर को समाप्त करने या समाहित करने पर जल्दी निर्णय लेना चाहिए।