अमेरिकी आम चुनाव में हार-जीत का निर्णय बहुत कम अंतर से होने वाला है। बीते दो दशकों में अक्सर ऐसा ही देखने को मिला है। सन 2000 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी अल गोर और रिपब्लिकन प्रत्याशी जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच फ्लोरिडा प्रांत में महज 537 मतों से हार जीत का निर्णय हुआ और अल गोर को हार का सामना करना पड़ा था। चूंकि सभी पक्ष कानूनी चुनौती के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं इसलिए यह माना जा सकता है कि अंतिम परिणाम आने में वक्त लगेगा। सन 2018 के मध्यावधि चुनाव में सभी परिणाम सामने आने में एक सप्ताह का समय लगा था। तब मात्र सात दिनों में डेमोक्रेटिक पार्टी की हल्की बढ़त, भारी जीत में बदल गई थी। इस वर्ष भी ऐसा संभव है, खासकर यह देखते हुए कि मतदान महामारी के दौरान हुआ है। ऐसे में राष्ट्रपति पद के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। अमेरिका के सबसे बड़े प्रांत कैलिफोर्निया में भी दो-तिहाई मतगणना ही हुई है। कुछ अहम प्रांतों मसलन विस्कॉन्सिन में ओपिनियन पोल गलत साबित हुए हैं। चाहे जो भी जीते लेकिन मतों का विभाजन वैसा नहीं हुआ है जैसा अनुमान जताया गया था। दोनों प्रत्याशियों डॉनल्ड ट्रंप और जो बाइडन के बीच आठ फीसदी का अंतर रहने की बात कही गई थी। ऐसे में सर्वेक्षकों को भी आत्मालोचन की आवश्यकता है।
बीते सात में से छह चुनावों की तरह संभावना यही है कि डेमोक्रेटिक पार्टी को रिपब्लिकन पार्टी से अधिक मत मिलें। इसके बावजूद जनवरी 2021 से व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति पद पर कौन आसीन होगा यह अब तक तय नहीं है। अमेरिका की निर्वाचन और सत्ता हस्तांतरण प्रणाली में खामियां हैं। कुछ अन्य लोकतांत्रिक देशों में भी मतदाताओं की प्राथमिकता और सत्ता पर काबिज होने वालों में ऐसा ही भेद देखने को मिला है। वर्तमान चुनाव में भी सत्ता का सीधा हस्तांतरण मुश्किल नजर आ रहा है।
एक बड़ी दिक्कत यह है कि अमेरिका में चुनाव नियमों के चलते अत्यधिक विकेंद्रीकृत हैं। हर राज्य में और कुछ जगह तो डिस्ट्रिक्ट में भी मतदान और मतगणना के नियम अलग हैं। उदाहरण के लिए पेंसिल्वेनिया जैसे अहम राज्य में कुछ काउंटी डाक से आए मतपत्रों की गणना सामान्य मतों के साथ कर रही हैं तो कुछ ने कहा है कि वे चुनाव का एक दिन बीतने के बाद ही उनकी गणना शुरू करेंगी। सन 2000 में दुनिया के सबसे शक्तिशाली राज्य प्रमुख का निर्वाचन मयामी में मतगणना करने वालों निर्भर था जो एक-एक मत को हाथ में लेकर देख रहे थे कि वह सही ढंग से पंच किया गया है या नहीं। इस वर्ष यह फिलाडेल्फिया के मतगणना करने वालों पर निर्भर हो सकता है वे देखें कि डाक मत पत्रों के लिफाफों पर तारीख की सील वैध है या नहीं। यह चुनाव कराने का तरीका नहीं है। अमेरिका के चुनाव जनता की राजनीतिक इच्छा का सही संकेत नहीं प्रकट करते, ऐसे में उसका लोकतांत्रिक विश्व का नेता होने का दावा मजबूत नहीं है। वहां चुनाव की प्रक्रिया धीमी, जटिल और एक हद तक खामीयुक्त भी है।
चुनाव ने यह भी दिखाया है कि अमेरिका आंतरिक रूप से कितना विभाजित है और वहां पहचान की राजनीति किस कदर मजबूत है। एक हद तक इसके लिए बढ़ती असमानता भी उत्तरदायी है, हालांकि यह विचित्र है कि सर्वाधिक अमीर और कुछ अत्यंत गरीब श्वेत रिपब्लिकन हैं। अमेरिका में विविध नस्लों के लोग बढ़ रहे हैं। महज चार साल में श्वेत मतदाताओं की हिस्सेदारी 71 फीसदी से घटकर 65 फीसदी रह गई है। यह बात भी विभाजन बढ़ाने वाली है।
