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वृद्धि के इंजन में ठहराव

Last Updated- December 12, 2022 | 12:52 AM IST

क्या निजी खपत पर आधारित मांग, खासतौर पर आम परिवारों से उत्पन्न मांग महामारी के बाद भारत की वृद्धि को बहाल करने में मददगार हो सकती है? इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है। सकल घरेलू उत्पाद के ताजा आंकड़ों (अप्रैल-जून 2021 तिमाही) के मुताबिक निजी खपत का व्यय स्थिर रहा है। यह वृद्धि के 55 फीसदी से अधिक हिस्से के लिए उत्तरदायी रहा जबकि 2021 की दूसरी तिमाही में यह 55.1 फीसदी तथा पिछले वर्ष की समान तिमाही में 55.4 फीसदी था। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं टिकाऊ उपभोक्ता ऋण तथा वाहन ऋण जुलाई 2021 में जून 2021 तथा जुलाई 2020 दोनों की तुलना में बेहतर रहे। इसके बावजूद निजी खपत मांग का दीर्घावधि का नजरिया थोड़ा परेशान करने वाला है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने हाल ही में अखिल भारतीय ऋण एवं निवेश सर्वे (एआईडीआईएस) जारी किया जिससे पता चलता है कि आम परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है। वर्ष 2012 से 2018 के बीच ग्रामीण परिवारों का औसत कर्ज 84 फीसदी बढ़कर करीब 60,000 रुपये हो गया। शहरी परिवारों के लिए यह उच्च आधार से करीब 42 फीसदी बढ़ा और 1.20 लाख रुपये पर पहुंच गया। असंगठित क्षेत्र को लगे नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर क्रियान्वयन के दोहरे झटकों के बीच इस अवधि में शहरी क्षेत्र के स्वरोजगार करने वालों का कर्जा अधिक तेजी से बढ़ा। भारतीय स्टेट बैंक के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि बाद के वर्षों में महामारी के चलते इसमें और इजाफा हुआ है क्योंकि एआईडीआईएस के आंकड़े 2018 में संग्रहीत किए गए थे। महामारी के कारण लोगों की आय कई क्षेत्रों में कम हुई। 2012 से 2018 के बीच ऋण और परिसंपत्ति अनुपात में भी तेजी से गिरावट आई। इससे संकेत मिलता है कि आम परिवारों की स्थिति प्रभावित हुई है।
चूंकि 2011-12 में निजी निवेश में कमी आई थी इसलिए स्पष्ट है कि निजी निवेश देश की विकास गाथा का प्रमुख वाहक है। इसके बावजूद आम परिवारों पर कर्ज का बोझ बढऩे से यह असुरक्षित रही। परंतु इस अवधि में भी निजी खपत व्यय की वृद्धि दर 2004-05 और 2011-12 के बीच की अवधि की तुलना में धीमी रही। इस पूरी अवधि में यह लगातार गति भी खोती रही। तब से विकास के इस इंजन को अलग-अलग झटके लगे हैं। उदाहरण के लिए गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट ने आम परिवारों के ऋण का एक प्रमुख जरिया प्रभावित किया। आरबीआई के उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण से संकेत मिला कि शहरी क्षेत्रों की आय को लेकर अवधारणा में 2011-12 के बाद से गिरावट आई है। आम परिवारों पर निर्भर वृद्धि की गति बचत के समाप्त होने तथा कर्ज के बढऩे से निरंतर अस्थायी रही है। ऐसा लगता है कि महामारी ने देश को ऐसी स्थिति में ला दिया है जहां आम परिवारों के कर्ज की बदौलत हासिल वृद्धि आगे नहीं बढ़ सकती है। शोध बताते हैं कि महामारी ने उन लोगों को अधिक प्रभावित किया जो आय के वितरण के निचले स्तर पर थे। अमीरों पर इसका प्रभाव कम हुआ है। इसका असर मांग पर हुआ क्योंकि गरीब तबका अपनी आय का बड़ा हिस्सा खपत पर व्यय करता है। बिना उपभोक्ता मांग से अपेक्षा के निजी निवेश में भी सुधार होने की संभावना नहीं दिखती।
सरकार को निजी खपत, आम परिवारों की बचत तथा कर्ज को लेकर इन जानकारियों के सामने आने के बाद अपनी व्यापक विकास नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि वृद्धि के नए इंजन तलाशने होंगे। ये या तो सरकारी व्यय से आने चाहिए या फिर बाहरी मांग से। परंतु सरकारी व्यय भी राजकोषीय स्थितियों से प्रभावित है। ऐसे में व्यापार तथा नए व्यापारिक समझौतों को नीतिगत प्राथमिकता में शामिल किया जाना चाहिए।

First Published - September 21, 2021 | 8:45 PM IST

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