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आगामी बजट में रक्षा क्षेत्र पर हो विशेष ध्यान

वर्ष 2025 के बजट में रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए संसाधनों के आवंटन की दिशा में निर्णायक बदलाव होना चाहिए। विस्तार से बता रहे हैं आर जगन्नाथन

Last Updated- January 03, 2025 | 9:35 PM IST
Budget 2025-26 must prioritise defence and security over welfare schemes आगामी बजट में रक्षा क्षेत्र पर हो विशेष ध्यान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पास इस बार पहले जैसा या एक ही लीक पर चलने वाला बजट पेश करने का विकल्प नहीं है। वृद्धि, रोजगार, बुनियादी ढांचे और राजकोषीय संतुलन पर जोर तो हमेशा ही बना रहेगा मगर 2025-26 के बजट में उस पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसे बहुत पहले तवज्जो मिल जानी चाहिए थी: बाह्य और आंतरिक सुरक्षा।

रक्षा के लिए यूं तो बजट का आठवां हिस्सा रखा जाता है मगर यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का शायद 2 से 2.4 फीसदी ही होता है। इसमें 2.4 फीसदी का आंकड़ा 2023 के लिए स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष के लिए इसमें एक अंक का मामूली इजाफा महंगाई से निपटने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। संक्षेप में कहें तो रक्षा क्षेत्र के लिए 6.21 लाख करोड़ रुपये के आवंटन के बाद भी हम काफी पीछे हैं क्योंकि हमारे पड़ोस में सुरक्षा संबंधी चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं।

बीते कुछ सालों में बाहरी सुरक्षा को खतरे बढ़े हैं मगर हमारी क्षमता या तो उतनी ही रही हैं या कम हो गई हैं। लद्दाख में गश्त के अधिकार पर चीन के साथ समझौता हुआ है मगर वह देश बड़ा खतरा बना हुआ है। वह उन्नत लड़ाकू विमानों में तेजी से निवेश कर रहा है और हमारे हवाई रक्षा बेड़े की मजबूती कम हो रही है। चीन के युद्धपोत भी जल्दी ही हिंद महासागर में मंडराने लगेंगे और हमारे लिए खतरा बनेंगे।

पाकिस्तान इस बीच चीन का पिछलग्गू बना हुआ है लेकिन पूर्व दिशा में हमारे लिए बड़ी चुनौती खड़ी हुई है। बांग्लादेश में शायद अमेरिका की शह पर सत्ता परिवर्तन हआ है, जिससे समूचे पूर्वोत्तर भारत में घुसपैठ और जिहादी आतंकवाद का खतरा बढ़ गया है। सैन्य बल पहले ‘ढाई मोर्चे’ (पाकिस्तान, चीन और आंतरिक सुरक्षा के खतरे) पर युद्ध के लिए तैयारी कर रहे थे मगर अब बढ़े खतरे को देखकर हमें ‘साढ़े तीन मोर्चे’ (बांग्लादेश को मिलाकर) पर लड़ने की तैयारी रखनी होगी।

यह सब तब हो रहा है जब वैश्विक भूराजनीति अप्रत्याशित होती जा रही है और भारत के भरोसेमंद दोस्त कम हो रहे हैं। जो बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका दोगली बातें करता रहा है। वहां एक धड़ा भारत के साथ बेहतर रक्षा संबंधों की बात करता है और दूसरा धड़ा कहता है कि इसकी जरूरत ही नहीं।

कुछ बातों पर विचार कीजिए: तेजस लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिकी इंजनों की आपूर्ति में बेवजह देर हुई है। अमेरिका ने भारतीय खुफिया विभाग के एक हिस्से पर आरोप लगाया कि उसने अमेरिका की धरती पर एक खालिस्तानी आतंकवादी को मारने की कोशिश की। उसी आतंकवादी ने हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के खिलाफ अमेरिका में मुकदमा दायर कर दिया, जिस कारण वहां जाने पर उनकी गिरफ्तारी का अंदेशा है।

उसी अमेरिका की अगुआई वाली फाइव आईज खुफिया साझेदारी व्यवस्था कनाडा सरकार को यह बताने में जुटी है कि भारतीय एजेंसियां संभवत: एक अन्य आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में लिप्त रही हैं। इससे पता चलता है कि भारतीय राजनयिक पत्राचार की भी पूरी जानकारी उसे रहती है।

अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग ने एक भारतीय कारोबारी को उस ‘अपराध’ के लिए निशाना बनाया है, जिसमें शिकार (अगर कोई है) का अमेरिका से कोई लेना देना नहीं है। यूक्रेन और पश्चिम एशिया में चल रही दो जंगों की बदौलत अमेरिका और एशिया (मुख्य रूप से रूस के) में सैन्य उद्योग के पास इतने ठेके आ गए हैं, जितने वह पूरे भी नहीं कर सकता। रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की आपूर्ति बहुत देर से हो रही है।

आंतरिक स्तर पर हम देख ही चुके हैं कि पिछले दिनों दो चुनौतियों के सामने हमारी साइबर क्षमताएं कितनी कमजोर साबित हुई हैं। बम की झूठी अफवाहों के कारण हमारी एयरलाइंस और दिल्ली के स्कूलों को आर्थिक नुकसान हुआ मगर हम पता भी नहीं लगा सके कि ये फोन किसने और कहां से किए थे। अगर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की पहुंच से दूर बैठा कोई हमें आर्थिक नुकसान पहुंचा दे और उसका बाल भी बांका न हो पाए तो हम कितने कमजोर हैं।

बांग्लादेश और म्यांमार के साथ हमारी सीमाओं के काफी हिस्से पर निगरानी ही नहीं है। म्यांमार के बड़े हिस्से का नियंत्रण वहां की सरकार के हाथ से निकलकर जातीय सेनाओं के पास पहुंच  गया है। इसलिए ऐसी बिना निगरानी की सीमाएं आंतरिक सुरक्षा के लिए एक और खतरा हैं क्योंकि मादक पदार्थ, हथियार और घुसपैठिए आसानी से उन्हें लांघ सकते हैं। समूचे पूर्वोत्तर में विदेशी हस्तक्षेप और विदेश द्वारा अशांति फैलाए का खतरा है। भारत अपनी  अर्थव्यवस्था को तेजी से डिजिटल बना रहा है मगर साइबर सुरक्षा में पर्याप्त निवेश नहीं कर रहा है, इसलिए वित्तीय धोखाधड़ी भी देश के आर्थिक भरोसे को चोट पहुंचा सकती है।

ऐसी स्थिति में आ रहे 2025-26 के बजट में प्राथमिकताएं नए सिरे से तय की जानी चाहिए। आर्थिक के बजाय अन्य प्राथमिकताओं को प्राथमिकता देने का सही समय इस बार का अगली बार का बजट ही है। तीन क्षेत्रों – रक्षा, आंतरिक पुलिस व्यवस्था और साइबर तथा हाइब्रिड रक्षा (एवं युद्ध) क्षमताओं में भारी संसाधन लगाने की जरूरत है। इसका अर्थ है कि अगले पांच से 10 साल तक जीडीपी में रक्षा और आंतरिक सुरक्षा की हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए ताकि वर्तमान कमी से निपटा जा सके। आगामी बजट में वित्त मंत्री को रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए 1-1.5 लाख करोड़ रुपये का आवंटन और करना चाहिए।

इसके लिए कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च घटाया जा सकता है या निजीकरण की रफ्तार बढ़ाई जा सकती है। रक्षा व्यय में जीडीपी के 0.2 से 0.25 फीसदी तक सालाना इजाफा आज की कमजोरी को 2030 के दशक के शुरुआती सालों तक चाक-चौबंद बनाने के लिए जरूरी है। अमेरिका और रूस से रक्षा आपूर्ति का भरोसा नहीं रह गया है और हो सकता है कि इन उपकरणों के लिए पुर्जे चीन जैसे प्रतिकूल राष्ट्र दे रहे हों (रूस के कई उपकरणों में अब चीन या यूक्रेन के पुर्जे लगते हैं), इसलिए हमारे सामने विकल्प यही है कि अपनी रक्षा अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाया जाए और अहम रक्षा परियोजनाओं के लिए देसी आपूर्तिकर्ता तैयार किए जाएं।

अपने लड़ाकू विमानों के इंजन तैयार करना हमारी शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। उसी तरह समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए जरूरी है कि हम देश के भीतर उत्पादन बढ़ाकर अपने नौसैनिक बेड़े का विस्तार करें। आंतरिक पुलिस व्यवस्था के लिए भी बजट काफी बढ़ाने की जरूरत है ताकि अपराधों का समय पर पता लग सके तथा साइबर चुनौतियों और आतंकवाद की रोकथाम की जा सके।

जिस असुरक्षित दुनिया में कथित लोकतांत्रिक ‘मित्र’ उपकरणों और कलपुर्जों के रूप में मदद करने के बदले अपने एजेंडा हम पर थोपते हों और हमारे शत्रु अपनी रक्षा क्षमताएं नाटकीय रूप से बढ़ा रहे हों वहां अपनी ताकत बढ़ाना ही इकलौता विकल्प है। विदेशी शक्तियों के इशारों पर नाचने वालों के खतरे से बेहतर तरीके से निपटने की जरूरत है और इनमें प्रौद्योगिकी कंपनियां भी शामिल हैं।

अपने लोगों को बाहरी खतरों और भीतरी नुकसान से बचाना किसी भी सरकार की पहली और बुनियादी जिम्मेदारी है। 2025-26 के बजट में इस जिम्मेदारी को पूरा करने पर ध्यान देना होगा। रक्षा पर ज्यादा बजट व्यय के लिए इस समय राजनीतिक माहौल भी सही है। 2025 में केवल दिल्ली और बिहार में चुनाव हैं।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दिल्ली के चुनावों को भूल सकती है और बिहार चुनाव में अभी बहुत वक्त है। 2026 में पांच विधानसभाओं (असम, तमिलनाडु, पुदुच्चेरी, केरल और पश्चिम बंगाल) में चुनाव होने हैं, मगर इनमें भी भाजपा का कुछ दांव पर लगा होगा तो वह असम में ही होगा। इसलिए मुफ्त की रेवड़ी बांटने के राजनीतिक दबाव से बचा जा सकता है और रक्षा को उसका हिस्सा मिल सकता है। रक्षा और सुरक्षा का व्यय अगले दो बजट में ही बढ़ाना होगा। उसके बाद ज्यादा अहम चुनाव आएंगे और इसके लिए गुंजाइश खत्म होती जाएगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

First Published - January 3, 2025 | 9:35 PM IST

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