सात महीनों के लंबे इंतजार के बाद सकारात्मक खबरें आनी शुरू हुई हैं। कोविड-19 संक्रमण के रोजाना सामने आने वाले नए मामलों में गिरावट आनी शुरू हुई है और कुल सक्रिय मामलों में तेजी से कमी आई है। मृत्यु के मामलों में भी गिरावट देखने को मिली है। अचानक लागू किए गए लॉकडाउन ने देशव्यापी स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया और लाखों लोग इसके कारण परेशानी में पड़े। विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में सुधार हो रहा है। यह सुधार पिछले महीने, पिछली तिमाही और कई मामलों में पिछले साल की तुलना में नजर आ रहा है। शेयर बाजार भी प्रचुर नकदी और माहौल के उत्साह से प्रफुल्लित हैं। सेंसेक्स अभी भी पिछले उच्चतम स्तर से नीचे है लेकिन ज्यादा नहीं।
इसका यह अर्थ नहीं है कि वृहद आर्थिक स्थिति में अचानक बदलाव आ गया है। इस बात को रिजर्व बैंक के वृद्धि के कठोर पूर्वानुमान से भी समझा जा सकता है। ऐसे में चर्चिल की उस बात को याद करना उचित होगा जो उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत के तीन वर्ष बाद अल अलामेन में ब्रिटेन की जीत पर कही थी, ‘यह अंत नहीं है, यह अंत की शुरुआत भी नहीं है। परंतु यह शायद शुरुआत का अंत है।’ महामारी के सात महीने बाद, शायद आम लोगों और कारोबारों के लिए हालात ऐसे भी नहीं हों।
मान लेते हैं कि अर्थव्यवस्था में गिरावट तब तक समाप्त नहीं होती है जब तक निम्र आधार प्रभाव शुरू नहीं होता। कोविड पूर्व के स्तर का सुधार न्यूनतम 2022 तक ही आ पाएगा। कई क्षेत्रों में गहन संकट बरकरार है। मिसाल के तौर पर वित्तीय तंत्र और पर्यटन कारोबार। कारोबारी जगत की नाकामी का पूरा स्तर अभी कुछ समय तक सामने नहीं आएगा। इसके बावजूद जुलाई-सितंबर तिमाही के कारोबारी नतीजों में यकीनन पिछली तिमाही की तुलना में सुधार नजर आएगा और सकारात्मक खबरों से कारोबारी मिजाज में सुधार आएगा।
मानव मस्तिष्क की बुनावट ऐसी है कि वह कष्ट को याद रखता है, हालांकि दर्द खत्म होने पर शरीर को तत्काल आराम मिल जाता है। यदि कारोबार में सुधार होता है और रोजगार वापस आ जाते हैं तो भी स्मृति में घाव बरकरार रखेंगे: अचानक आय और रोजगार जाने से झटका लगा है, लोग महीनों पैदल चलकर बेबसी में घरों को लौटे हैं, भविष्य को लेकर अनुमानों में कटौती की गई है और समृद्ध शहरों में काम करने वाले श्रमिकों को ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत काम करना पड़ रहा है। बचत जब निवेश की गति को पीछे छोड़ देगी तो उपभोक्ताओं में बचत की प्रवृत्ति बढ़ेगी और चालू खाते का अधिशेष होगा। बैंक भी जोखिम उठाने में बचेंगे। दूसरी ओर, कई लोगों को पुरानी आजीविका वापस मिल रही है और कुछ कंपनियां पुराने कर्मचारियों को बुलाने के लिए प्रोत्साहन की पेशकश कर रही हैं।
फिलहाल सरकार के कदम कितने विश्वसनीय नजर आ रहे हैं? सरकार के अर्थशास्त्रियों ने अब तक उसका बचाव ही किया है लेकिन महामारी और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अंतिम नतीजों पर नजर डालें तो हम पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों से बुरी स्थिति में हैं। प्रवासी श्रमिकों की स्थिति और रोजगार गंवाने वाले लाखों लोगों के खर्च को समर्थन देने में नाकामी का बचाव करना मुश्किल है।
सरकार की बात करें तो वह दीर्घावधि के मुद्दों में व्यस्त रही। उसने आत्मनिर्भरता पैकेज तैयार किया, उत्पादन को प्रोत्साहन दिया और संरक्षणात्मक शुल्क दरें तय कीं। यह रुख विभिन्न देशों के अनुभवों और उस सिद्धांत के खिलाफ है जो बेहतर साबित हुआ है। आयात प्रतिस्थापन के लिए हमेशा कुछ गुंजाइश रहती है। ऐसे में निवेश में कमी के बीच अच्छी खबरें भी आ रही हैं। फैक्टरियां चीन से भारत आ रही हैं। सैमसंग कंपनियों का भरोसा टूटने का उदाहरण है। उसने भारत से कारोबार समेटकर वियतनाम का रुख किया था और वहां से भारत को निर्यात आरंभ किया था। अब वह वापस आ रही है।
कृषि विपणन और कार्य परिस्थितियों को लेकर की गई घोषणाओं में अवसर हैं। खनन और रक्षा विनिर्माण नीतियां बदली गई हैं जबकि डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए भी नियम बनाए जा रहे हैं। पहले दौर के दुस्साहसों के बाद ये मोदी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर उठाए गए अहम नीतिगत और विधायी कदम हैं। नतीजों को लेकर अनिश्चितता रहेगी क्योंकि काफी कुछ प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है लेकिन हमें सर्वश्रेष्ठ की आशा करनी चाहिए।
