पंजाब के इस्पाती शहर मंडी गोबिंदगढ़ में जंग लग रही है। इस शहर में मौजूद 350 छोटी और मझोले आकार की इकाई स्टील की कीमतों में बार-बार हो रहे उतार-चढ़ाव से पहले ही परेशान थीं।
उस पर से टैक्स बढ़ता बोझ ने कोढ़ में खाज की तरह का काम किया है। यह तो सच है कि हाउसिंग और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेगमेंट में डिमांड काफी तेजी से बढ़ा है, लेकिन इसका फायदा पंजाब के स्टील उद्योग को नहीं मिल पाया है।
वजह है, कच्चे माल की कमी और राज्य सरकार द्वारा लादे गए टैक्स।
मंडी गोबिंदगढ़ की जानी-मानी स्टील कंपनी मॉडर्न स्टील के चेयरमैन का कहना है कि,’इस शहर की ज्यादातर इकाईयां कच्चे माल के रूप में विदेशों से आने वाले स्टील कबाड़ का इस्तेमाल करती हैं।
राज्य सरकार ने बाहर से आने वाले किसी भी उत्पाद पर चार फीसदी का आगमन शुल्क लगाया है। यह तो संविधान की भावना के खिलाफ है।
यह कदम तो संविधान की धारा 286 के खिलाफ है। इस धारा के मुताबिक आप किसी सूबे की सरकार को विदेशों से आने वाले माल पर किसी भी प्रकार का टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है।
साथ ही, हमें और दूसरे स्टील उत्पादकों को यहां चार फीसदी वैट भी चुकाना पड़ता है। इसे घटाकर दो फीसदी करना चाहिए।’
दूसरी तरफ, स्टील के कबाड़ की बढ़ती कीमतें भी यहां के स्टील उत्पादकों के लिए मुसीबत का सबब बन गया है। तीन माह पहले एक मीट्रिक टन स्टील कबाड़ की कीमत 150 डॉलर हुआ करती थी। अब उसी के लिए उत्पादकों को 200 डॉलर चुकाने पड़ते हैं।
इससे कारोबार पर काफी असर पड़ा है। शहर में इस वक्त स्टील के 300 री-रोलिंग मिल और करीब 70 इंडक्शन फरनेस हैं। लेकिन मंदी का आलम यह है कि ये सभी इस वक्त अपनी क्षमता से काफी नीचे काम कर रहे हैं।
शहर के स्टील उत्पादक का कहना है कि इसी मंदी की वजह से तो पिछले कुछ महीनों में दर्जन भर उत्पादकों ने शहर को अलविदा कह पूर्वी भारत की राह पकड़ ली है।
दरअसल, उस हिस्से में लौह अयस्क और कोयले भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं। स्टील के चढ़ते-उतारते दाम की वजह से यहां धंधा करना मुश्किल होता जा रहा है।
शहर के एक स्टील उत्पादक आर.के. स्टील एंड अलॉयज के रविकांत शर्मा का कहा है कि, ‘पंजाब में इन दिनों कंस्ट्रक्शन सेक्टर काफी तेजी से बढ़ रहा है।
आज तो सूबे के बड़े शहरों को तो छोड़ दीजिए, छोटे शहरों में भी धड़ल्ले से शॉपिंग मॉल्स, मल्टीप्लेक्स और बैंक्वेट हॉल बने रहे हैं। इसलिए यहां टीएमटी स्टील की काफी डिमांड है।
पिछले कुछ दिनों के दौरान ही राज्य में इस स्टील की मांग की गुना हो चुकी है। लेकिन बदकिस्मती से हम इस मौके का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। वजह है, यहां की बदतर व्यवस्था। यहां कच्चे माल की कीमत आसमान छू रही है।
ऊपर से, बिजली की समस्या इतनी जबरदस्त है कि यहां उत्पादन संभव ही नही है। यहां हमें हफ्ते में पांच दिन ही बिजली मिलती है और उसमें भी काफी कटौती होती है।
ऐसे में धंधा कर पाना नामुमकिन है।’ वैसे उद्यमियों को आशा है कि अगले हफ्ते विधानसभा में पेश किए जाने राज्य सरकार के बजट से उन्हें राहत मिलेगी।