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भारतीय अर्थव्यवस्था की वापसी में उपभोक्ता धारणा की भूमिका

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 7:51 AM IST

भारतीय अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में लगे सख्त लॉकडाउन से उबरकर विश्लेषकों एवं निवेशकों दोनों को समान रूप से अचंभित किया है। पहली तिमाही में जो आर्थिक वृद्धि 23.9 फीसदी ऋणात्मक रही थी वह दूसरी तिमाही में 7.5 फीसदी ऋणात्मक पर आ गई और तीसरी तिमाही में इसके धनात्मक हो जाने की संभावना जताई जा रही है।  
सबसे तेज वापसी कंपनियों के मुनाफे में हुई है। आपूर्ति से जुड़े तीव्र आवृत्ति वाले कई कारक- मसलन, फसल उपज, बिजली उत्पादन, मालढुलाई और जीएसटी संग्रह की पुरानी स्थिति का यह सिलसिला तीसरी तिमाही में भी जारी रहने के पुख्ता संकेत देते हैं। वहीं मांग वाले पहलू पर गैर-पेट्रोलियम एवं गैर-कीमती आयात में दिसंबर एवं जनवरी के दौरान बढ़त देखी गई और दोपहिया वाहनों एवं ट्रैक्टरों की बिक्री हाल में काफी अच्छी रही है। इक्विटी बाजार आर्थिक गतिविधियों में आई इस तेजी का जश्न मनाता दिखा है। भारत को यह बहाली मुफ्त में ही मिल गई है। इसके लिए उसने  भारी राजकोषीय व्यय नहीं किया है। उसने कर्ज लेने या ब्याज चुकाने का दर्द नहीं सहा है। सरकार या निजी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर निवेश की भी जरूरत नहीं पड़ी। यह अपने आप में असाधारण बात है। अब इस बढ़त को मजबूत करना और यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि तेजी का सिलसिला कायम रहे।
बहाली की स्थिति तभी कायम रखी जा सकती है जब परिवारों को अपनी हालत सकारात्मक महसूस होने लगे। जहां अतीत में भारत की वृद्धि दर में तेजी के साथ अंतरराष्ट्रीय कारोबार का जुड़ाव रहा है, वहीं इस बार की बहाली मुख्यत: घरेलू अर्थव्यवस्था पर ही आधारित रही है। भारत की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जरूरी है कि इसके विशाल उपभोक्ता बाजार में अपनी बुनियादी जरूरतों से अधिक खर्च करने की चाह पैदा हो। दोपहिया वाहनों की बिक्री एक साल पहले की तुलना में 10 फीसदी बढ़ रही है और ट्रैक्टरों की बिक्री तो साल भर पहले की तुलना में 40 फीसदी से भी अधिक है। यह उपभोक्ताओं के सशक्त विवेकाधीन खर्चों को बयां करते हैं। लेकिन यह भारतीय बाजार के एक बेहद छोटे तबके के खर्च संबंधी फैसलों को दर्शाते हैं। अब हमें समूचे घरेलू क्षेत्र की धारणाओं के एक पैमाने की जरूरत है। सीएमआईई का उपभोक्ता धारणा सूचकांक (सीएसआई) भारत में परिवारों की मनोदशा परखने का उपयोगी मापदंड है। सीएसआई ने नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद देश की मनोदशा को सकारात्मक बताया था। दिसंबर के महीने में भी आशावादी नजरिया कायम था। लेकिन जनवरी 2017 में यह सूचकांक तेजी से गिरा था क्योंकि लोगों को लगने लगा था कि नोटबंदी अपने इरादों को पूरा करने में नाकाम हो रही है। अप्रैल 2020 में सख्त लॉकडाउन लगने के बाद सीएसआई में 53 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई थी। उसके पहले भी इस सूचकांक में मासिक बदलाव शायद ही एक अंक से ऊपर थे। इस लिहाज से अप्रैल 2020 में 53 फीसदी की भारी गिरावट एक तरह से उपभोक्ता धारणा का विध्वंस ही था। मार्च 2020 में 97 पर रहा सूचकांक अप्रैल 2020 में 46 पर लुढ़क गया था। उस पतन के बाद उपभोक्ता धारणा में बहुत मामूली सुधार ही आया है। जनवरी 2020 में यह सूचकांक 54 पर रहा है।
भले ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की स्थिति सुधरी है लेकिन परिवारों की धारणा बेहतर नहीं हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) का उपभोक्ता भरोसा सर्वे भी कुछ यही रुझान दिखाता है। इस सर्वे में अप्रैल 2020 में आई गिरावट का अनुमान नहीं है। मार्च 2020 में यह सूचकांक 85.6 था और जनवरी 2021 में यह 55.5 पर रहा है। चाहे परिवारों की वर्तमान आर्थिक स्थिति जो भी हो, लेकिन वे अपने भविष्य को लेकर बेहद आशान्वित हैं। आरबीआई का घरों के लिए भविष्य प्रत्याशा सूचकांक मार्च 2020 की तुलना में जनवरी 2021 में कहीं अधिक आशावादी था। मार्च 2020 में यह सूचकांक 115.2 पर रहा था जबकि जनवरी 2021 में 117.2 रहा है। आरबीआई के उपभोक्ता भरोसा सर्वे की एक सीमा है कि यह सिर्फ भारत के शहरी इलाकों को ही कवर करता है और उसमें 5,400 से भी कम घरों के नमूने लिए जाते हैं। इसकी तुलना में सीएमआईई का उपभोक्ता धारणा सूचकांक कहीं बड़े नमूने पर आधारित है और इसमें शहरी एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्र शामिल हैं। यह सूचकांक दर्शाता है कि ग्रामीण उपभोक्ताओं की तुलना में शहरी परिवारों की धारणा अधिक खराब है। जनवरी में ग्रामीण क्षेत्र का सूचकांक 55.8 था जबकि शहरी क्षेत्र में यह 50.3 ही रहा। लेकिन शहरी एवं ग्रामीण दोनों तरह के परिवार अपनी मौजूदा आर्थिक स्थिति से कहीं अधिक भरोसा अपने भविष्य में जता रहे थे।
उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक वर्तमान आर्थिक स्थिति सूचकांक से अमूमन 1.5 फीसदी ऊंचा होता है। लॉकडाउन तक यह सच भी था। अप्रैल 2020 में मौजूदा आर्थिक स्थिति सूचकांक 55.3 फीसदी तक गिर गया था लेकिन उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक के हिसाब से गिरावट 51.2 फीसदी ही थी। मई 2020 में आर्थिक स्थिति सूचकांक 10.3 फीसदी गिरा था लेकिन प्रत्याशा सूचकांक में 8.1 फीसदी की ही गिरावट रही थी। अप्रैल एवं मई 2020 में उपभोक्ता प्रत्याशा सूचकांक वर्तमान आर्थिक परिस्थिति सूचकांक से क्रमश: 6.9 फीसदी और 9.6 फीसदी अधिक था। जुलाई 2020 में यह 15.5 फीसदी अधिक रहा और उसके बाद से यह लगातार ऊपर ही है। दोनों में औसत फासला करीब 11 फीसदी का है। अगर परिवार अपने भविष्य को लेकर आशान्वित हैं तो उनके खर्च करने की संभावना ज्यादा है जिससे बहाली प्रक्रिया को भी मदद मिलेगी। परिवारों के भरोसे को बनाए रखना भी महत्त्वपूर्ण है।
सरकार ने जिस तरह निजी उद्यमों को प्रोत्साहित करना शुरू किया है उसी तरह परिवारों की अहमियत को भी समझना जरूरी है। निजी कंपनियों की तरह परिवारों की धारणा भी मुफ्त में जारी इस बहाली प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए अहम है।  
(लेखक सीएमआईई प्रा लि के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी हैं)

First Published : February 24, 2021 | 11:12 PM IST