भारतीय अर्थव्यवस्था में कोविड-19 महामारी के कारण जो गिरावट आई थी, वह चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में समाप्त हो गई। ताजा आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर-दिसंबर 2020 तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सालाना आधार पर 0.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। सकल मूल्यवद्र्घन जिसे आर्थिक गतिविधियों का बेहतर पैमाना माना जाता है, उसमें समान अवधि में एक फीसदी का सुधार हुआ। वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में इसमें क्रमश: 22.4 फीसदी और 7.3 फीसदी की गिरावट आई थी। तीसरी तिमाही में आए सुधार में कृषि क्षेत्र में 3.9 फीसदी के सुधार ने भी मदद की, जबकि विनिर्माण क्षेत्र में 1.6 फीसदी की बेहतरी दर्ज की गई। भवन निर्माण क्षेत्र में 6.2 फीसदी की वृद्धि हुई। हालांकि निजी खपत में गिरावट बरकरार रही लेकिन वर्ष की पहली छमाही में भारी गिरावट के बाद निवेश में हल्का सुधार देखने को मिला। उच्च संपर्क सेवाओं में मांग में कमी बरकरार रही और इसने कुल खपत को प्रभावित किया।
राष्ट्रीय आय के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में 8 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है जबकि पहले इसमें 7.7 फीसदी गिरावट का अनुमान जताया गया था। आंशिक तौर पर ऐसा सब्सिडी में भारी इजाफे की वजह से हुआ। चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान में सब्सिडी आवंटन 2.27 लाख करोड़ रुपये बढ़ गया और संशोधित अनुमान में यह 5.95 लाख करोड़ रुपये हो गया। माना जा रहा है कि सब्सिडी का बकाया भुगतान चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था को एक बार फिर गिरावट की दिशा में ले जाएगा। समूचे वर्ष के सकल मूल्यवद्र्घन में 6.5 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है। पहले अग्रिम अनुमान में इसमें 7.2 फीसदी गिरावट आने की बात कही गई थी।
व्यापक स्तर पर देखें तो जहां आर्थिक गतिविधियों में निरंतर सुधार हो रहा है, वहीं कई बातें ध्यान देने लायक हैं। उदाहरण के लिए चूंकि यह वर्ष वास्तव में एक असाधारण वर्ष है इसलिए आंकड़ों में काफी हद तक संशोधन हो सकता है। इसलिए अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति के बारे में अभी कुछ कह पाना मुश्किल है। इसके अलावा सुधार हर क्षेत्र में समान रूप से विस्तारित नहीं दिख रहा है। हालांकि विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर रहा है लेकिन सेवा क्षेत्र के कुछ हिस्से पिछड़े हुए हैं। इन क्षेत्रों में पूरा सुधार टीकाकरण की गति पर निर्भर करेगा। संक्रमण दर में तेजी से न केवल उच्च संपर्क सेवाएं जोखिम में पड़ेंगी बल्कि समग्र आर्थिक सुधार की गति भी प्रभावित होगी। इसके अतिरिक्त कॉर्पोरेट क्षेत्र में तेज सुधार देखने को मिला है जो तीसरी तिमाही के नतीजों में नजर भी आया है। परंतु असंगठित क्षेत्र और छोटे कारोबार इससे बहुत बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं। इसका सीधा असर रोजगार और सुधार में स्थायित्व पर पड़ेगा।
यह जानना अहम है कि 1 अप्रैल से आरंभ होने वाले अगले वित्त वर्ष में प्रमुख आंकड़ों में सुधार दिखेगा लेकिन इसे किसी रुझान के रूप में नहीं देखना चाहिए। बीती कुछ तिमाहियों में मध्यम अवधि की वृद्घि को लेकर चुनौतियां बढ़ी हैं। मसलन केंद्र और राज्य दोनों की वित्तीय स्थिति तनाव में है। परिणामस्वरूप अगले वर्ष केंद्र सरकार के अनुमानित व्यय में मामूली इजाफा ही होगा। बॉन्ड बाजार भी बढ़ी हुई सरकारी उधारी के लगातार जारी रहने से असंतुष्ट नजर आ रहा है। सरकारी वित्त पर यह दबाव वृद्घि बढ़ाने वाले पूंजीगत व्यय पर बुरा असर डाल सकता है। ब्याज दरों में ज्यादा इजाफा निजी क्षेत्र के निवेश और मुनाफे पर असर डाल सकता है। मौद्रिक नीति से मिलने वाली मदद भी सीमित रहेगी। ऐसे में जहां ताजा आंकड़े उत्साहित करते हैं, वहीं मध्यम अवधि में अनिश्चितता नजर आती है।