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महामारी के बीच सफेदपोश पेशेवरों में बढ़ती बेरोजगारी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 1:51 AM IST

हमने मार्च अंत से लागू लॉकडाउन में गंवाई नौकरियों का ब्योरा दर्ज किया है। हमारी संस्था सीएमआईई की तरफ से जारी साप्ताहिक श्रम आंकड़ों में श्रम भागीदारी दर, बेरोजगारी दर और रोजगार दर के व्यापक अनुपात होते हैं। इन आंकड़ों ने हमें लॉकडाउन के पहले पखवाड़े में ही श्रम बाजार की हालत बेहद खराब होने के संकेत दे दिए थे। साप्ताहिक आंकड़ों में निरपेक्ष मूल्य नहीं होते हैं और इन्हें मासिक आंकड़ों में शामिल किया जाता है। मासिक आंकड़ों में श्रम शक्ति, बेरोजगारी एवं रोजगार के निरपेक्ष मूल्य दिए जाते हैं और उनका उम्र, लिंग, व्यवसाय, धर्म और जाति जैसी व्यापक श्रेणियों में अलग-अलग ब्योरा भी होता है। इनसे पता चला कि अप्रैल में करीब 12.1 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए थे लेकिन अगस्त आने तक इनमें से अधिकतर लोगों को फिर से काम मिल गया। लेकिन तनख्वाह पर काम करने वाले कर्मचारियों की हालत लगातार खस्ता होती चली गई है।
सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड परिवार सर्वे के 20वें दौर के आंकड़ों से वेतनभोगी रोजगार में आई इस गिरावट को गहराई से समझा जा सकता है। हर चार महीनों पर इस सर्वे के आंकड़े जारी किए जाते हैं। सीएमआईई की तरफ से परिवारों की स्थिति को दर्ज किए जाने वाले इस सर्वे के 20वें दौर को पूरी तरह से लॉकडाउन के दौरान ही अंजाम दिया गया। इसमें मई से लेकर अगस्त तक के विस्तृत आंकड़े दर्ज हैं लेकिन सबसे भयावह महीने अप्रैल का ब्योरा नहीं है। अप्रैल 2020 के आंकड़े 19वें दौर के सर्वे में शामिल थे। वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच सबसे ज्यादा नौकरियां गंवाने वाले सफेदपोश पेशों में काम कर रहे थे। इनमें सॉफ्टवेयर एवं अन्य क्षेत्रों में कार्यरत इंजीनियर, डॉक्टर, अध्यापक, अकाउंटेंट और विश्लेषक जैसे पेशेवर शामिल थे। ये पेशेवर कुशल लोग निजी या सरकारी संगठनों का हिस्सा थे। इस आंकड़े में इन पेशों के वे लोग शामिल नहीं थे जो निजी स्तर पर प्रैक्टिस करते थे। यह सर्वे 2016 में शुरू होने के समय से ही सफेदपोश पेशेवर कर्मचारियों एवं अन्य कर्मचारियों की श्रेणी में रोजगार लगातार बढ़ रहा था। जनवरी-अप्रैल 2016 में हुए पहले दौर के सर्वे में 1.25 करोड़ सफेद पेशेवर कर्मचारियों को रोजगार मिला हुआ था। मई-अगस्त 2019 की अवधि में यह संख्या बढ़कर 1.88 करोड़ हो गई थी। सितंबर-दिसंबर 2019 के दौरान यह संख्या थोड़ी गिरावट के साथ 1.87 करोड़ पर आ गई थी। लेकिन जनवरी-अप्रैल 2020 के सर्वे में सफेदपोश कर्मचारियों की संख्या घटकर 1.81 करोड़ रह गई। इसकी वजह यह है कि इस दौर के कुछ हिस्से में कोविड महामारी का आंशिक असर था। लेकिन मई-अगस्त 2020 में हुए 20वें दौर के परिवार सर्वे में सफेदपोश पेशेवर कर्मचारियों की संख्या बड़ी गिरावट के साथ 1.22 करोड़ पर आ गई। यह सर्वे शुरू होने के बाद से यह पेशेवर नौकरियों का सबसे बुरा आंकड़ा है। बीते चार वर्षों में इन पेशेवरों के रोजगार में जो भी बढ़त हुई थी, वह लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह गायब हो गई।
हालांकि लॉकडाउन की मार सफेदपोश पेशों के क्लर्कों पर नहीं पड़ी। सेक्रेटरी एवं ऑफिस क्लर्क से लेकर बीपीओ में काम करने वाले एवं डेटा एंट्री ऑपरेटर तक इससे अछूते रहे। संभवत: उनका काम ‘वर्क फ्रॉम होम’ में तब्दील हो गया। वैसे इस श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या में 2016 से ही कोई बढ़त नहीं देखी गई है। असल में, इनकी संख्या 2018 से ही लगातार गिरावट पर है। उस समय इस श्रेणी में 1.5 करोड़ रोजगार मिला था जो 2020 तक घटकर 1.2 करोड़ हो गया। वैसे लॉकडाउन के दौरान क्लर्क स्तरीय सफेदपोश रोजगार में कोई और गिरावट नहीं हुई। लॉकडाउन ने औद्योगिक कामगारों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। एक साल पहले की तुलना में सफेदपोश पेशेवर कर्मचारियों की संख्या 66 लाख तक कम हुई है। सभी वेतनभोगी कर्मचारियों के बीच यह एक साल में हुआ सबसे बड़ा नुकसान है। दूसरा सर्वाधिक नुकसान उठाने वाला समूह औद्योगिक कामगारों का है। एक साल पहले की तुलना में उद्योग जगत में काम करने वाले लोगों की संख्या 26 फीसदी की तीव्र गिरावट के साथ 50 लाख तक गिर गई है। मई-अगस्त की सर्वे अवधि में अप्रैल-जून तिमाही का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के मुताबिक अप्रैल-जून तिमाही में एक साल पहले की समान अवधि के मुकाबले औद्योगिक क्षेत्र के वास्तविक सकल मूल्यवद्र्धन (जीवीए) में 36 फीसदी की बड़ी गिरावट देखी गई है। इससे पता चलता है कि औद्योगिक कामगारों की संख्या में बड़ी गिरावट आने के बावजूद उत्पादन पर उसका अधिक असर नहीं पड़ा है। लेकिन इन दोनों आंकड़ों की तुलना करने में दो समस्याएं हैं। पहली, दोनों के समय मेल नहीं खाते हैं। यह जीवीए अनुमान में तीव्र गिरावट की बेहतर तरीके से व्याख्या करता है क्योंकि इसमें लॉकडाउन के सबसे बुरे असर वाले महीने अप्रैल के आंकड़े भी शामिल हैं। इसके अलावा इसमें असर के काफी हद तक कम हो चुके जुलाई-अगस्त महीनों के आंकड़े शामिल नहीं हैं।
तुलना में दूसरी समस्या यह है कि पिरामिड परिवार सर्वे का रोजगार आंकड़ा सभी तरह के छोटे-बड़े उद्योगों को शामिल करता है। दूसरी तरफ तिमाही जीवीए गणना बुनियादी तौर पर कहीं बड़ी संगठित कंपनियों पर निर्भर करता है। निस्संदेह, जीवीए में गिरावट का मतलब बड़ी कंपनियों में आई गिरावट से है।
सूचीबद्ध कंपनियों के तिमाही नतीजों पर आधारित सीएमआईई की गणना से पता चलता है कि विनिर्माण कंपनियों का मुद्रास्फीति समायोजित जीवीए पहली तिमाही में 41 फीसदी तक गिर गया। लेकिन उन कंपनियों का वास्तविक वेतन बिल महज 15 फीसदी ही गिरा है। इससे पता चलता है कि बड़ी औद्योगिक कंपनियों में रोजगार क्षति समग्र औद्योगिक रोजगार में आई 26 फीसदी की गिरावट से कहीं कम रहेगी। लिहाजा औद्योगिक कामगारों के रोजगार में गिरावट काफी हद तक छोटी औद्योगिक इकाइयों में ही होने की संभावना है। यह हाल में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम औद्योगिक इकाइयों पर बने दबाव को भी दर्शाता है।

First Published : September 16, 2020 | 11:53 PM IST