गत 14 अगस्त को राकेश झुनझुनवाला का महज 62 वर्ष की आयु में अचानक निधन हो गया। उनकी मौत चौंकाने वाली थी क्योंकि पिछले कुछ महीनों से लगातार अस्पताल जाने के बावजूद ऐसा लग नहीं रहा था कि वह अधिक बीमार हैं। यह एक विराट व्यक्तित्व के धनी जीवन का त्रासद अंत है।
मैं उन्हें आरजे कहकर बुलाता था और वह मेरे बहुत अच्छे मित्र थे। गत 20 वर्षों से अधिक की मित्रता में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। हम उनके घर या दफ्तर में अक्सर दोपहर के भोजन पर मिला करते और बाजार, कंपनियों, भारत के भविष्य को लेकर हमारे सोच तथा उनकी नवीनतम परियोजना के बारे में बात किया करते। वह अक्सर मुझे बाजार में अपने शुरुआती दिनों तथा शुरुआती फायदे और नुकसान के बारे में बताते। वह बीते कुछ दशकों के सभी प्रमुख बाजार प्रतिभागियों के बारे में कमाल की अंतर्दृष्टि रखते थे। इन मुलाकातों पर बेहतरीन भोजन तो मिलता ही था, इसके अलावा इन बैठकों के दौरान अक्सर यह अवसर भी मिलता था कि उनसे कुछ सीखा जाए। ऐसा इसलिए कि कंपनियों और बाजारों को लेकर उनका नजरिया वाकई विशिष्ट था। हमारे पोर्टफोलियो मेल नहीं खाते थे लेकिन हम अक्सर यह समझने का प्रयास करते थे कि हम अपने पसंदीदा निवेश को लेकर असहमत क्यों रहते। वह अक्सर यह जानने को उत्सुक रहते कि वैश्विक निवेशक भारत को लेकर क्या सोचते हैं।
राकेश की सफलता की कहानी असाधारण थी। उन्होंने सबकुछ खुद किया और अपने जीवनकाल में ही 5,000 रुपये की संपत्ति को 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंचाया। टाइटन, लुपिन, क्रिसिल और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी का आकार और अवधि अद्भुत थी। इन निवेश के बारे में उनकी एकदम विशिष्ट राय थी और उन्होंने इन कंपनियों में एक दशक से अधिक समय तक अपना निवेश बनाये रखा। उन्होंने भारतीयों और संपूर्ण विश्व को यह दिखा दिया कि कैसे भारतीय शेयर बाजार में वैध तरीके से इतना अधिक धन कमाया जा सकता है। कहा जा सकता है कि उन्होंने वित्तीय बाजारों के बारे में भारत में एक पूरी पीढ़ी के सोच को बदल दिया। वह भारतीय बाजार की तेजी पर कट्टर यकीन करते थे। उन्हें विश्वास था कि अंतत: भारत का वक्त आ गया है और आने वाला दशक देश के लिए असीम वृद्धि और संपत्ति लेकर आएगा।
वह चाहते थे कि भारत के लोग अपने देश पर यकीन करें और बाजारों में निवेश करें। वह नहीं चाहते थे कि हमारी वृद्धि से केवल विदेशी पूंजी लाभान्वित हो। भारत को लेकर उनका विश्वास अडिग था। जब भी मैं किसी नीतिगत भ्रम या अल्पकालिक चुनौती को लेकर हताशा जताता वह धैर्य रखने और बड़े फलक पर नजर रखने की सलाह देते। भारत के बारे में प्रतिकूल राय रखने वाले लोगों से खुशी-खुशी भिड़ जाते थे फिर चाहे वे देसी हों या विदेशी।
उनके जैसा जोखिम उठाने वाला व्यक्ति मुझे दूसरा कोई नहीं मिला लेकिन वह जोखिम की अच्छी समझ रखते थे। उन्हें बाजार की बहुत अच्छी समझ थी। राकेश इसलिए भी विशिष्ट थे क्योंकि वह किसी शेयर को लेकर एक दिन के हालात और पांच साल के परिदृश्य का विश्लेषण एक साथ कर सकते थे। दोनों परिस्थितियों और दो कालखंडों को एक साथ ध्यान में रखकर कारोबार करना बहुत दुर्लभ गुण है। अल्पावधि और दीर्घावधि, दोनों तरह के कारोबार में सफल रहना तो और भी मुश्किल काम है। राकेश में यह काबिलियत थी कि वह दोनों में कामयाब रहते थे। वह अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटते थे।
उन्होंने सार्वजनिक बाजारों, वेंचर कैपिटल, प्राइवेट इक्विटी, ढांचागत ऋण तथा अन्य परिसंपत्तियों में जमकर निवेश किया था और वह सभी में कामयाब थे। उन्होंने स्टार्टअप में भी निवेश किया था। वह हर उस कारोबार में निवेश करते थे जो उन्हें समझ में आता था। उन्हें जो सही लगता था वह अवश्य करते थे। कोई कृत्रिम बाधा उनकी राह नहीं रोक सकती थी। वह गेमिंग से लेकर बायोटेक और स्वास्थ्य, स्टील, बैंकिंग और वाहन तक हर क्षेत्र में निवेश करते थे। मैंने उतना क्षमतावान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं देखा। राकेश बहुत अधिक पढ़ते और सीखते थे। उनकी रुचि सभी तरह की परिसंपत्तियों और वैश्विक बाजारों में थी। जहां तक मैं जानता हूं, उनका दूसरा कोई शौक नहीं था। उन्हें तो बस निवेश से ही प्यार था। उनके भीतर कंपनियों और कारोबारी नेताओं को लेकर बहुत जिज्ञासा थी।
वह लोगों और उनकी प्रेरणाओं को अच्छी तरह पढ़ लेते थे। कई बार मुझे लगता था कि वह प्रवर्तकों पर बहुत अधिक भरोसा कर रहे हैं लेकिन वह केवल स्वयं के प्रति जवाबदेह थे। कई कंपनियों और प्रवर्तकों को लेकर हम असहमत रहते लेकिन उनके पास अक्सर इस बात को लेकर ठोस धारणा रहती कि किसी खास कंपनी ने अपनी स्थिति क्यों बदली होगी।
राकेश समाज के प्रति अपने दायित्व में यकीन करते थे। वह बहुत उदारतापूर्वक दान किया करते थे। उन्होंने अशोका विश्वविद्यालय से लेकर बच्चों के लिए पालना घर बनाने तक के लिए दान दिया। वह अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा परोपकार के कामों में देने के लिए प्रतिबद्ध थे।
वह एक पारिवारिक व्यक्ति थे और उनके साथ होने वाली हर बातचीत में वह अपनी पत्नी, बच्चों और पिता का जिक्र कई बार करते थे। वह हमेशा अपनी सफलता का श्रेय अपनी पत्नी और माता-पिता को देते थे। उन्हें समाज से जो आदर मिलता उसके लिए भी वह कृतज्ञ रहते थे और उसे कभी हल्के में नहीं लेते थे।
राकेश ने हमेशा लोगों की मदद करने की कोशिश की। न केवल बाजार बल्कि तमाम पेशों में ऐसे तमाम लोग हैं जिनकी शुरुआत और सफलता का श्रेय राकेश झुनझुनवाला को जाता है। मैंने जब 15 वर्ष पहले अपना फंड शुरू किया था तब वह उन शुरुआती लोगों में थे जिन्होंने मेरी मदद की और मेरा उत्साह बढ़ाया। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि मैं कोई बड़ा फंड मैनेजर हूं या छोटा। हम मित्र थे और बस यही बात मायने रखती थी। भारतीय बाजार व्यवस्था पर उनकी छाप को उन्हें दी जा रही श्रद्धांजलियों से आंका जा सकता है। राजनेता हों या उद्योगपति, निवेशक हों या विदेशी मीडिया या फिर खुदरा निवेशक, हर कोई दुखी है। इससे बड़ी श्रद्धांजलि और क्या होगी? सबसे दुख की बात यह है कि भारत के बारे में उन्होंने जो भी अनुमान लगाए वे आने वाले वर्षों में सही साबित होंगे। उनका प्यारा देश अपनी क्षमता के मुताबिक कद हासिल करेगा। जैसा कि वह कहते थे हम दुनिया में अपना उचित स्थान और वैश्विक प्रतिष्ठा और प्रासंगिकता हासिल करेंगे। परंतु एक बार फिर सही साबित होने के लिए वह हमारे बीच नहीं होंगे। राकेश ने अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर बिताई। अलविदा मेरे दोस्त। हम हमेशा आपकी कमी महसूस करेंगे।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)