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हामिद के जीन में है अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना

Last Updated- December 05, 2022 | 4:56 PM IST

पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट एक ऐसा फैसला दिया, जिससे देश के पेटेंट नियमों की दशा और दिशा ही बदल सकती है।


उसने सिप्ला को फेफड़ों के कैंसर की अहम दवा इरलॉन्टीनिब को बनाने को अंतरिम रूप से हरी झंडी दे दी, जबकि इसका पेटेंट स्विस कंपनी रॉस के पास है। सिप्ला की दवा की कीमत रॉस की दवा की तुलना में एक तिहाई है। इस मामले को सिप्ला के चैयरमैन यूसुफ हामिद की जीत मानी जा सकती है।


हामिद ने लंबे समय से जीवन रक्षक दवाओं पर विदेशी कंपिनयों के वर्चस्व के खिलाफ जंग छेड़ रखी है। हाईकोर्ट के फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया देने  काफी सधी सी थी। उनका कहना कि,’कोर्ट के निर्णय के बारे में कोई भी राय बनाना जल्दबाजी होगी।


अन्याय के लिए विरोध करना तो हामिद के जीन में है। उन्होंने 1927 में बर्लिन से अपनी डॉक्टरेट की उपाधि ली और एक सपना के साथ भारत लौट आए। उन्होंने 1935 में सिप्ला की स्थापना की थी। 2000 में उनके बेटे ने यह  घोषणा हंगमा मचा दिया था कि सिप्ला काफी सस्ते में एवीआर दवाएं बेचेगी।

First Published - March 23, 2008 | 11:13 PM IST

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