यह बात उत्साह बढ़ाने वाली है कि वाणिज्य मंत्रालय ने मई में चिंतन शिविर का आयोजन किया ताकि भविष्य के मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) के लिए होने वाली वार्ताओं के लिए रणनीतियां और मानक परिचालन प्रक्रिया तैयार की जा सकें। यह समय पर की गई पहल है क्योंकि यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ गहन मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर होने वाली वार्ताएं बार-बार टल रही हैं। इसके अलावा आसियान समेत अन्य मुक्त व्यापार समझौतों को भी लंबी पहल के बाद अंजाम दिया जाना है।
इस संदर्भ में भारत के लिए यह उपयोगी होगा कि वह अपनी एफटीए रणनीति तैयार करे और अतीत के सीमित व्यापार उदारीकरण की तुलना में जरूरी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए गहन व्यापार समझौतों पर अपना ध्यान केंद्रित करे।
विभिन्न सीमाओं के परे मध्यवर्ती वस्तुओं के आवागमन को सुविधाजनक बनाने वाले उपायों के रूप में गहन एफटीए की समझ बनाने और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) के साथ एकीकरण से भविष्य में एफटीए वार्ताओं में बेहतर नतीजे हासिल करने में मदद मिलेगी।
देश की एफटीए वार्ताओं में अब तक अतीत के उन अनुभवों की अहम भूमिका रही है जहां एफटीए साझेदार देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार घाटे में इजाफा हुआ है। इसके चलते भारत की एफटीए वार्ताओं में एक किस्म की शंका साथ चलती है।
इसके बजाय हमारे पहले के एफटीए से उचित अनुभवजन्य सीख यह होनी चाहिए थी कि एफटीए में दिए जाने वाले तरजीही मार्जिन को कम किया जाए और विनिर्माण क्षेत्र की निर्यात प्रतिस्पर्धी क्षमता को बढ़ाया जाए। वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक तरजीही देशों का औसत टैरिफ 0-5 फीसदी है जो यह सुनिश्चित करता है कि अधिकांश देशों के साथ एफटीए में तरजीही मार्जिन नाम मात्र का हो।
इसकी तुलना में भारत का सर्वाधिक तरजीही देशों (एमएफएन) से संबंधित टैरिफ अपेक्षाकृत अधिक है और वह धीरे-धीरे बढ़ रहा है। खासतौर पर विनिर्माण क्षेत्र में उच्च तरजीही मार्जिन की गुंजाइश बनती है और इस प्रकार द्विपक्षीय व्यापार एफटीए साझेदार के पक्ष में होता है। ऐसे में देश में विनिर्माण क्षेत्र में औसत लागू एमएफएन टैरिफ में कमी और उन्हें उभरते बाजारों वाली अर्थव्यवस्थाओं के अनुरूप बनाना भविष्य की एफटीए वार्ताओं के लिए जरूरी व्यापार नीति में सुधार हो सकता है।
इसे एफटीए में प्रस्तुत किए गए सावधानीपूर्वक आकलित तरजीही टैरिफ के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि जीवीसी के क्षेत्रों को लाभ हो सके। काम के स्तर पर तुलनात्मक लाभ, भागीदार देश, सदस्य अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादन नेटवर्क में संभावित पूर्तिकर्ताओं के साथ मिलकर एफटीए में टैरिफ वरीयता की सीमा और समय को आकलित करने का आधार बनना चाहिए।
विनिर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्धी क्षमता को भी एफटीए में गहरी भागीदारी की मदद से बढ़ाया जा सकता है क्योंकि इससे जीवीसी में घरेलू उत्पादन में मजबूती लाने में मदद मिल सकती है। गहन एफटीए व्यापार में वस्तु एवं सेवाओं के उदारीकरण के अलावा नियामकीय मुद्दे भी शामिल होते हैं। वे मोटे तौर पर निवेश के उदारीकरण, बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण और पर्यावरण, सामाजिक और संचालन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इन क्षेत्रों में किए गए प्रावधान विश्व व्यापार संगठन में जताई गई प्रतिबद्धताओं के अलावा हैं यानी विस्तारित हैं।
भारत को अब तक निवेश उदारीकरण और ईएसजी के मामले में गहन प्रावधानों पर वार्ता में मुश्किल हुई है। यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ एफटीए वार्ताओं को यह बात सीमित कर रही थी। ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच 2022 में आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता हुआ था। उसमें भी निवेश वाला हिस्सा शामिल है।
बहरहाल विश्व स्तर पर गहन व्यापार समझौतों और गहरे प्रावधानों की तादाद पिछले दशक में बढ़ी है। यूरोपीय संघ और अमेरिका जहां इस मामले में अग्रणी रहे हैं, वहीं पूर्वी एशियाई देशों ने भी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी यानी आरसेप और कॉम्प्रिहेंसिव ऐंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (सीपीटीपीपी) के जरिये इस क्षेत्र में तरक्की की है।
भारत का इन नीतिगत क्षेत्रों को गैर कारोबारी मुद्दों में श्रेणीबद्ध करना और इन पर वार्ता से इनकार करना पुराना और अनुत्पादक रुख है। ऐसी तमाम जानकारियां मौजूद हैं जो बताती हैं कि गहन व्यापारिक समझौते मध्यवर्ती वस्तुओं, जीवीसी के व्यापार को सुविधाजनक बनाते हैं। यह अभी भी वैश्विक वस्तु व्यापार का अहम घटक बना हुआ है। ऐसे में भारत के लिए अहम है कि वह गहन व्यापार समझौतों में भागीदारी पर ध्यान केंद्रित करे और उसे जीवीसी के साथ संबद्धता बढ़ाने के नजरिये से करना चाहिए। वह विनिर्माण और निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ाने तथा उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं को सफल बनाने को ध्यान में रखकर भी ऐसा कर सकता है।
जीवीसी के नेतृत्व वाले व्यापार में मध्यवर्ती वस्तुएं अलग घटक होती हैं। इनमें से प्रत्येक का विशिष्ट उपयोग होता है और उन्हें खरीदार की जरूरत के हिसाब से तैयार किया जाता है। ऐसे में जीवीसी से संबंधित निवेश जिसमें सीमा पार लेनदेन शामिल है, उसे विशिष्ट अनुबंध दायित्वों, सुरक्षा उपायों और नियमों तथा मानकों की आवश्यकता होती है जिसके लिए सभी भागीदार देशों को बातचीत करनी होती है। व्यापार नीति, निवेश और बौद्धिक संपदा अधिकार के संरक्षण को देखते हुए एक समन्वित और पूरक रुख तैयार करना जरूरी है।
विश्लेषण दिखाते हैं कि निवेश उदारीकरण, सुविधा, आईपीआर और जीवीसी के लिए आवश्यक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर निवेशक संरक्षण को लेकर अतिरिक्त प्रावधानों के बीच सकारात्मक संबंध हैं।
समुचित डिजाइन वाला निवेश और संबंधित नियामकीय प्रावधान न केवल निवेश की आवक और तकनीक हस्तांतरण में मदद करते हैं बल्कि वे घरेलू नियामकीय ढांचे में भी उन्नयन का संकेत देते हैं। ऐसे में वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार उदारीकरण के साथ देखा जाए तो गहन एफटीए में निवेश संबंधी प्रावधान कारोबारी सुगमता की लागत कम करने और कई स्थानों पर संचालित हो रही बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कारोबारी लागत कम करने में मदद करते हैं। इसकी तुलना में अलग-थलग द्विपक्षीय निवेश संधियां कहीं अधिक प्रतिबंधात्मक होती हैं और एफडीआई आवक पर इनके प्रभाव को लेकर स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं।
अपने एफटीए में निवेश प्रावधानों को लेकर चर्चा करने के लिए भारत को समुचित निवेशक संरक्षण व्यवस्था पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। अधिकांश देशों ने निवेशक-राज्य विवाद निस्तारण और राज्य-राज्य निवेशक संरक्षण व्यवस्था को अपना लिया है। जबकि बीआईटी 2016 के मॉडल के आधार पर घरेलू उपायों को अपनाने पर जोर देता है।
बहरहाल आगे चलकर यह कठिन साबित हो सकता है क्योंकि सीपीटीपीपी पहले ही प्रभावी है और आसियान तथा यूनाइटेड किंगडम दोनों उसके सदस्य हैं। इससे निवेशक बिना घरेलू प्रक्रियाओं के मध्यस्थता की प्रक्रिया आरंभ कर सकते हैं। यूरोपीय संघ ने अपने एफटीए विवाद निस्तारण के लिए बहुपक्षीय न्यायालय जैसे विकल्प का प्रस्ताव रखा है लेकिन इसकी पुष्टि होनी अभी शेष है।
ऐसे में एफटीए वार्ताएं पहले की तरह नहीं चल सकतीं। बड़े निकायों की जीवीसी में विविधता लाने की नीति में एक आकर्षक वैकल्पिक निवेश केंद्र बनने के लिए तथा इसके जरिये अपनी विनिर्माण और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए हमें गहन व्यापार समझौतों को जल्दी पूरा करने का लक्ष्य लेकर चलना होगा।
(लेखिका सीएसईपी की सीनियर फेलो और जेएनयू में प्रोफेसर (अवकाश पर) हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)