facebookmetapixel
Bonus Stocks: अगले हफ्ते कुल चार कंपनियां बांटेगी बोनस, निवेशकों को मिलेगा सीधा लाभDividend Stocks: निवेशकों की बल्ले-बल्ले! अगले हफ्ते तीन कंपनियां बांटेगी अपना मुनाफा, देखें लिस्टअमेरिका में नई इमिग्रेशन नीति: अब ट्रंप प्रशासन नाबालिगों को 2500 डॉलर देकर वापस घर भेजेगी!Income Tax Rule: कंपनी से Diwali पर मिले गिफ्ट्स और बोनस पर भी लग सकता है टैक्स, जानें नियम के बारे मेंदिवाली से पहले इस राज्य के कर्मचारियों और पेंशनरों को मिला तोहफा! सरकार ने DA में 3% बढ़ोतरी कीशेयर खरीद का मौका- 4: ACC पर दांव लगाना क्यों बन सकता है मुनाफे का सौदाशेयर खरीद का मौका- 3: थर्मैक्स में पैसा लगाना क्यों हो सकता है फायदेमंदशेयर खरीद का मौका- 1: मौजूदा लेवल पर Trent क्यों लग रहा है आकर्षकशेयर खरीद का मौका- 2: JSW Energy में क्यों बन रही हैं BUY की संभावनाएंशेयर खरीद का मौका- 5: कोलगेट-पामोलिव हो सकता है निवेश का दमदार विकल्प

सियासी हलचल: क्या राजनीतिक अस्तित्व को बचा पाएंगे पवार!

पवार धड़े के राकांपा नेता जितेंद्र आव्हाड ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमें पहले से मालूम था कि ऐसा होने जा रहा है। आज अजित ने राजनीतिक रूप से पवार का गला घोंट दिया है।

Last Updated- February 13, 2024 | 9:35 PM IST
क्या राजनीतिक अस्तित्व को बचा पाएंगे पवार!, Political turmoil: Will Pawar be able to save his political existence?

शरद पवार ने जिस घर को खून, पसीने और मेहनत से तैयार किया था वह एक वाक्य के साथ एक झटके में धराशायी हो गया। पिछले हफ्ते भारत के निर्वाचन आयोग का यह आदेश अप्रत्याशित नहीं था कि याची अजित अनंतराव पवार के नेतृत्व वाला गुट ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) है और वह इसका नाम और इसके चुनाव चिह्न घड़ी का इस्तेमाल करने की हकदार है।

पवार धड़े के राकांपा नेता जितेंद्र आव्हाड ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हमें पहले से मालूम था कि ऐसा होने जा रहा है। आज अजित ने राजनीतिक रूप से पवार का गला घोंट दिया है। इसके पीछे सिर्फ अजित का हाथ है। इस पूरे प्रकरण में किसी को शर्मिंदा होना चाहिए तो वह निर्वाचन आयोग है। पवार उस अमरपक्षी की तरह हैं जो अपनी राख से भी उठेंगे। हमारे पास अब भी ताकत है क्योंकि हमारे पास पवार हैं।’

पवार गुट उच्चतम न्यायालय गया और इस खेल (इस महीने होने वाले राज्य सभा चुनाव) में बने रहने के लिए इसने खुद को एक नए नाम से पंजीकृत कराया है। इसे अस्थायी रूप से राकांपा (शरदचंद्र पवार) कहा जाएगा। चुनाव आयोग ने अभी तक पार्टी को कोई चुनाव चिह्न नहीं दिया है। पार्टी को उगते सूरज (तमिलनाडु का सत्तारूढ़ दल द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम ऐसे ही चुनाव चिह्न के एक संस्करण का इस्तेमाल करता है), चश्मे की एक जोड़ी (भारतीय राष्ट्रीय लोक दल के चुनाव चिह्न का एक संस्करण है), और बरगद के पेड़ के बीच चुनाव करना है। पवार आखिरी चुनाव चिह्न के पक्ष में हैं।

लेकिन इसका मतलब यह है कि 84 साल की उम्र में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री और राकांपा के संस्थापक शरद पवार एक बार फिर वहीं आ खड़े हैं जहां से उन्होंने शुरुआत की थी। उन्होंने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर राकांपा का गठन इस आधार पर किया था कि वह उस पार्टी का समर्थन नहीं कर सकते हैं जिसका नेतृत्व किसी ‘विदेशी मूल’ के व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

उनके नेतृत्व में राकांपा ने व्यापक राजनीतिक जमीन तैयार की। अब जब वह अपनी ही पार्टी के खंडहरों के बीच खड़े हैं, तब उनके पास दो विकल्प हैं कि वह फिर से लड़ सकते हैं, अपनी खोई हुए राजनीतिक को फिर से पाने का दावा करते हुए अपने संगठन का निर्माण करें या फिर वह अपने ऊर्जावान भतीजे के सामने झुक जाएं और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हाथ मिलाकर कुछ बेहतर की उम्मीद करें।

ठाकरे परिवार से जुड़ी एक किताब के लेखक और महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वाले धवल कुलकर्णी का कहना है, ‘पवार एक योद्धा हैं। वह इसका मुकाबला करेंगे।’ हालांकि ऐसा बहुत मुश्किल है क्योंकि इस बात का अंदाजा नहीं लग पा रहा है कि यह कैसे संभव होगा।

चुनाव आयोग ने अपने फैसले का आधार इस तथ्य को बनाया है कि 53 विधानसभा सदस्यों में से 41 विधायकों वाला गुट ही असली राकांपा है जिसका नेतृत्व अजित कर रहे हैं। अजित, राकांपा सदस्यों से कहते रहे हैं कि उनके दरवाजे ‘हर उस व्यक्ति के लिए खुले हैं जो आना चाहते हैं।’ उन्होंने पिछले हफ्ते पुणे में भी यही बयान दोहराया था। हालांकि पवार के वफादार इसे खारिज करते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि पिछले कुछ वर्षों में अजित लगातार संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।

यहां तक कि परिवार के गढ़ बारामती में भी अजित पवार की छाप हर जगह है। इसका ताजा सबूत जुलाई में राकांपा के विभाजन के बाद हुए पंचायत चुनावों का नतीजा था। पवार गुट ने वह चुनाव नहीं लड़ा और बारामती तालुका की 32 ग्राम पंचायतों में से 30 पर जीत हासिल करते हुए अजित की राकांपा ने शानदार जीत दर्ज की। हालांकि ये चुनाव पार्टी लाइन पर नहीं लड़े जाते हैं और उम्मीदवार एक या दूसरे राजनीतिक दल के साथ गठबंधन करते हैं।

राजनीतिक चुनौती की एकमात्र मिसाल बारामती नगर परिषद के पास लगाई गई एक होर्डिंग थी। शरद पवार की तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा था, ‘हम इस 80 वर्षीय योद्धा के साथ हैं।’ स्थानीय मीडिया के अनुसार कुछ घंटे बाद इसे हटा लिया गया।

पवार के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने की रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी थी, हालांकि वह अपनी सेहत के कारण मजबूर हो रहे हैं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी है और वह सब जगह फोन घुमाने के साथ ही अजित समूह द्वारा किए गए कब्जे को रोकने के लिए पश्चिमी महाराष्ट्र में सहकारी निकायों के पदाधिकारियों को फोन कर रहे हैं। फरवरी के अंतिम सप्ताह में वह सड़क पर भी उतरेंगे जब वह पूरे महाराष्ट्र में जनसभाएं और रैलियां करते देखे जा सकते हैं।

कुलकर्णी कहते हैं, ‘उनके एक वफादारों ने मुझसे कहा कि लोगों की सहानुभूति शरद पवार के साथ है। अगर वह बैठकें करते हैं, कुछ नहीं भी कहते हैं और सिर्फ हाथ जोड़कर खड़े रहते हैं तब भी लोग उन्हें वोट देंगे।’ 

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष, अशोक ढवले चार दशकों से अधिक समय से महाराष्ट्र के इस क्षेत्र पर अपनी बारीक नजर बनाए हुए हैं और वह इस बात से सहमत हैं। उन्होंने कहा, ‘पवार को बट्टे खाते में मत डालिए। भाजपा ने जिस तरह से न केवल उनकी पार्टी बल्कि उद्धव ठाकरे की पार्टी को बांट दिया, उसके खिलाफ लोगों में सहानुभूति है, यहां तक कि गुस्सा भी है। लोग देख सकते हैं कि कई विधायक जो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच में फंस रहे थे उन्होंने इस उम्मीद में भाजपा का दामन थामना बेहतर समझा ताकि सत्तारूढ़ दल का पक्ष लेने पर ईडी की जांच का खतरा खत्म हो जाएगा।’

ढवले कहते हैं कि महाराष्ट्र विकास आघाडी (एमवीए), गठबंधन जिसमें पवार की राकांपा भी एक भागीदार दल रही है और इसने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर व्यापक चर्चा की है। उन्होंने कहा, ‘हम कुछ दिनों में एक समझौते को अंतिम रूप देंगे। उसके बाद, एमवीए के सभी सहयोगी एकनाथ शिंदे-भाजपा गठबंधन को हराने के लिए काम करना शुरू कर देंगे। पवार अकेले नहीं होंगे।’ 

वफादारी की असली परीक्षा, बारामती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में होगी जो क्षेत्र फिलहाल पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खाते में हैं जिसके कारण उनके चचेरे भाई अजित ने पार्टी तोड़ी है। पिछले हफ्ते अजित ने अपने चाचा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि जो लोग कहते हैं कि यह उनका ‘आखिरी’ चुनाव है, इस बात का शायद ही कोई मतलब है। उन्होंने मतदाताओं को भावनाओं में न बहकने और व्यावहारिक समझदारी दिखाने की सलाह दी। पवार ने पलटवार करते हुए कहा, ‘क्या वह मेरी मृत्यु की कामना कर रहा है?’ लेकिन दुविधा स्पष्ट है।

पवार को नैतिक जीत दिखाने के लिए बारामती में जीत सुनिश्चित करनी होगी। हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव और आखिरी चुनाव के बीच, सुले ने सीट पर अपनी जीत के अंतर में 100,000 से अधिक मतों का सुधार किया, ऐसा इसलिए था कि चचेरे भाई अजित उनके पक्ष में थे। हालांकि अब वह इनके साथ नहीं हैं।

मुमकिन है कि वह अपनी पत्नी सुनेत्रा या बेटे पार्थ को इस सीट से चुनावी मैदान में उतारें। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पवार इस सीट से चुनाव लड़ेंगे या सुले। आगे जो भी हो लेकिन यह सच है कि पवार अपने अस्तित्व और राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए अपने जीवन की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं।

First Published - February 13, 2024 | 9:35 PM IST

संबंधित पोस्ट