हरियाणा में आगामी एक अक्टूबर को होने जा रहे विधान सभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया तेज हो गई है और इसमें कुछ दिलचस्प रुझान देखने को मिल रहे हैं। हरियाणा चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया 12 सितंबर को समाप्त हो रही है। प्रत्याशी बनने के लिए एक फॉर्म भरना होगा। कांग्रेस विधान सभा चुनाव के लिए एक फॉर्म के बदले 20,000 रुपये का शुल्क ले रही है। हालांकि, अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को केवल 5,000 रुपये में फॉर्म दिया जा रहा है। अब तक कांग्रेस को 2,556 आवेदन मिल चुके हैं इसलिए माना जा सकता है कि उसने इससे अधिक फॉर्म बेचे हैं। पार्टी को अनुमान है कि अकेले फॉर्म बेचकर वह 3.5 करोड़ रुपये जुटा चुकी है।
कांग्रेस की ओर से सबसे अधिक लोगों ने नीलोखेड़ी सीट से उम्मीदवारी जताई है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट से अब तक 88 लोग आवेदन कर चुके हैं। सबसे कम यानी महज एक उम्मीदवार ने गढ़ी सांपला किलोई क्षेत्र से चुनाव लड़ना चाहा है और वह हैं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा। उम्मीदवारों को केवल फॉर्म भर कर प्रतीक्षा नहीं करनी है बल्कि उन्हें एक साक्षात्कार में भी पास करना है जो पार्टी के केंद्रीय नेताओं के छोटे समूहों द्वारा लिया जाएगा। रोजाना करीब 100 प्रत्याशियों के साक्षात्कार लिए जा रहे हैं।
दूसरी तरफ, केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार में हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि भाजपा की ओर से हर सीट के लिए 25 से 30 दावेदार हैं। राज्य भाजपा अध्यक्ष एम एल बड़ौली कहते हैं कि पार्टी ने करीब 3,000 संभावित नामों पर विचार किया और हर सीट के लिए संभावित प्रत्याशियों का पैनल बनाया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों आंकड़ों में से कौन-सा सही है। पार्टी द्वारा कितने फॉर्म बेचे गए इस बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जहां तक प्रत्याशियों की उपयुक्तता की बात है तो भाजपा ने आंतरिक सर्वेक्षण किया है और वह हर जिले में पार्टी के जिला स्तरीय नेताओं की राय पर चल रही है।
इसके बाद जाति का भी मसला है जो कि हमेशा ही होता है। 2014 में जब भाजपा सत्ता में आई और खट्टर मुख्यमंत्री बने तब राज्य में गैर जाट जाति समूहों को मुखर होने का अवसर मिला। खट्टर का परिवार पश्चिमी पाकिस्तान से था और विभाजन के समय भारत आया था। उन्होंने जाटों के दबदबे को समाप्त करने के लिए एक विविधतापूर्ण गठबंधन तैयार किया।
खासतौर पर उन जातियों को साथ लिया जो जाटों के हाथों पीड़ित माने जाते थे, मसलन अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियां। हरियाणा में जाटों की आबादी 22 से 27 फीसदी के बीच है लेकिन जमीन और पूंजी तक इस जाति की पहुंच राजनीतिक सत्ता का मार्ग बनी है। हरियाणा का गठन 58 वर्ष पहले किया गया था और वहां 33 साल तक जाट मुख्यमंत्री रहे। साल 2019 में भी जाट नेता दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी ने भाजपा को सत्ता में वापसी में मदद पहुंचाई।
ऐसे में दस साल के भाजपा शासन और जातीय प्रतिष्ठा में कमी ने जाटों को शक्तिहीनता का एहसास करा दिया है। साल 2016 में हुए दंगे इसी हताशा के परिचायक थे। मामला जाट आरक्षण के आह्वान के साथ और इस मांग के माध्यम से आरंभ हुआ था कि उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग के समान माना जाए। परंतु जल्दी ही यह रेलवे सुविधाओं और सरकारी दफ्तरों के रूप में सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने में बदल गया।
परंतु यह इकलौती दिक्कत नहीं है। भाजपा सत्ता विरोधी लहर का भी सामना कर रही है जो अलग-अलग ढंग से सामने आ रही है। खट्टर ने एक सख्त, अनुशासनप्रिय और संस्थागत भ्रष्टाचार के कड़े विरोधी के रूप में ख्याति अर्जित की थी। इसी अभियान के तहत हरियाणा सरकार ने 2023 में पंचायत स्तर के कामों के लिए ई-निविदा को अपनाया था। कई लोगों ने इसका सख्त विरोध किया। विरोध करने वालों में खट्टर के सहयोगी नायब सिंह सैनी भी थे जो बाद में उनकी जगह मुख्यमंत्री बने।
नीतिगत रूप से यह जरूरी बना दिया गया था कि सरपंचों को दो लाख रुपये से अधिक की परियोजनाओं के लिए हरियाणा इंजीनियरिंग वर्क्स पोर्टल के जरिये ही निविदा जारी करनी होगी। इसका विरोध करते हुए सरपंचों ने कहा कि ई-निविदा व्यवस्था के कारण गांवों में विकास कार्य की गति धीमी हो रही है जबकि सरकार ने जोर देकर कहा कि यह व्यवस्था काम में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए बनाई गई थी। जब सैनी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस व्यवस्था में संशोधन किया। अब 21 लाख रुपये तक के कामों के लिए ई-निविदा की आवश्यकता नहीं है।
जाटों का कहना है कि दुष्यंत चौटाला का भविष्य अच्छा नहीं है। भिवानी के एक जाट चंदर पाल जो उत्तर प्रदेश में डेरी चलाते हैं, वह कहते हैं कि अगर चौटाला ने खापों से साल 2019 में यह कहा होता कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा इसलिए वह भाजपा के साथ जा रहे हैं तो अनिच्छा से ही सही समुदाय उनका साथ देता। परंतु उन्होंने तो पाला बदलकर गैर जाटों को मजबूत किया और जाटों को हल्के में ले लिया। वह कहते हैं कि अब चौटाला को अपनी विश्वसनीयता दोबारा हासिल करने में कई साल लग जाएंगे।
जाट और गैर जाट दोनों कहते हैं कि भाजपा सरकार की कई पहल अच्छी हैं लेकिन किसान मुद्दों से निपटने और हरियाणा की महिला पहलवानों की प्रतिष्ठा से जुड़े मसलों से निपटने में पार्टी कामयाब नहीं रही। 31 अगस्त को दिल्ली-हरियाणा शंभू बॉर्डर पर किसानों के एकत्रित होने के 200 दिन पूरे हो जाएंगे। यहां से निकले कुछ संदेश एक अक्टूबर को मतदान करने वालों तक भी पहुंचेंगे।