इस वर्ष मार्च में अरविंद केजरीवाल को शराब लाइसेंस देने के मामले में भ्रष्टाचार करने और धनशोधन के संदेह में गिरफ्तार किया गया था। लोक सभा चुनाव करीब थे। केजरीवाल भारत में पद पर रहते हुए गिरफ्तार होने वाले पहले मुख्यमंत्री बने। दिल्ली में विशाल प्रदर्शन जुलूस का नेतृत्व कर रहे राज्य सरकार के मंत्रियों आतिशी (अब दिल्ली की मुख्यमंत्री) और सौरभ भारद्वाज को अन्य प्रदर्शनकारियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। आईटीओ पर घट रहे नाटकीय दृश्यों में सबने देखा कि आतिशी को पुलिस ने घसीटकर एक बस में डाला, जो प्रदर्शनकारियों को निकटवर्ती पुलिस थाने ले जा रही थी।
सुरक्षा के लिए एहतियात बरतते हुए पुलिस ने आम आदमी पार्टी (आप) मुख्यालय की ओर जा रहे सभी रास्ते बंद कर दिए। भाजपा मुख्यालय की ओर जाने वाले मार्गों पर वाटर कैनन (प्रदर्शनकारियों पर पानी की बौछार करने के लिए) और अर्द्धसैनिक बलों को तैनात कर दिया गया। आईटीओ मेट्रो स्टेशन भी बंद कर दिया गया। यह सब दिल्ली में हो रहा था।
उधर पंजाब के अमृतसर में सब कुछ सामान्य था। न तो वहां कोई वाटर कैनन थी, न प्रदर्शन हो रहे थे। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते थे कि पंजाब में जिस पार्टी की सरकार है, उसके संस्थापक प्रमुख को जेल में डाल दिया गया है। पंजाब के किसी और इलाके में भी गिरफ्तारी की गूंज सुनने को नहीं मिल रही थी। इससे चर्चा शुरू हो गई कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप प्रमुख केजरीवाल के बीच सब कुछ ठीक नहीं है।
यह चर्चा इस सप्ताह दोबारा छिड़ गई, जब पंजाब सरकार ने 30 महीनों के अपने कार्यकाल में चौथी बार मंत्रिमंडल में फेरबदल किया। केजरीवाल की रिहाई के कुछ ही दिन के भीतर हुए इस फेरबदल ने चर्चा को जन्म दिया कि मान नहीं बल्कि पार्टी प्रमुख ही फैसले ले रहे हैं।
आम आदमी पार्टी ने मार्च 2022 में पंजाब में सरकार बनाई थी और उसने कई वादे भी किए थे। इनमें मुफ्त बिजली, रोजगार, भ्रष्टाचार मुक्त सरकार, विश्वस्तरीय विद्यालय, स्वास्थ्य सुविधाएं, हर वयस्क महिला को प्रति माह 1,000 रुपये की राशि, वृद्धावस्था पेंशन को बढ़ाकर 2,500 रुपये मासिक करना, पुरानी पेंशन योजना को बहाल करना और पंजाब से नशे को खत्म करना जैसे वादे शामिल थे।
इनमें से कुछ ही वादे पूरे हुए। उदाहरण के लिए पुरानी पेंशन योजना की वापसी का निर्णय अब तक लागू नहीं हो सका है और पेंशनभोगियों के संगठनों ने 2 अक्टूबर को राज्यव्यापी आंदोलन की चेतावनी दी है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है। हरियाणा में 5 अक्टूबर को चुनाव होने वाले हैं और आप को वहां जीत की उम्मीद है।
एक वादा जो पूरा नहीं किया गया, वह है भ्रष्टाचार से मुक्त सरकार। मंत्रिमंडल में हालिया फेरबदल के बाद खनन विभाग को चौथा मंत्री मिला। इससे पहले तीन मंत्रियों को पद से हटाया जा चुका है। पंजाब सरकार को खनन से सालाना तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये की कमाई होनी चाहिए थी और आम आदमी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में इसका वादा भी किया था। मगर स्थानीय मीडिया और विपक्षी दलों का आरोप है कि राजस्व बढ़ने के बजाय अवैध खनन माफिया और सरकार के बीच गठजोड़ के कारण राजस्व का भारी नुकसान हुआ है और सालाना केवल 300 करोड़ रुपये ही मिल सके हैं।
प्रदेश की आम आदमी पार्टी की सरकार की आलोचना विपक्षी कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल भी कर रहे हैं। मगर सरकार को भीतर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पुलिसकर्मी से विधायक बने अमृतसर उत्तर के विधायक कुंवर विजय प्रताप ने विधान सभा में अपनी ही सरकार की आलोचना की। उन्होंने 2015 में गुरु ग्रंथ साहब के साथ बेअदबी के मामलों से निपटने के सरकार के तरीके की आलोचना ही नहीं की बल्कि अमृतसर में गंदे पानी के प्रबंधन तथा जलापूर्ति जैसे मसलों पर भी सरकार को आड़े हाथ लिया। उन्होंने विधान सभा में आरोप लगाया कि राज्य में एक जूनियर इंजीनियर मुख्यमंत्री से अधिक ताकतवर है। उनका इशारा सरकार के उन आदेशों की तरफ था जिनकी स्थानीय प्रशासन ने अनदेखी की।
अलबत्ता पार्टी ने जुलाई में जिस तरह जालंधर पश्चिम विधान सभा उपचुनाव में जीत हासिल की उससे पता चलता है कि पंजाब के मतदाता अब भी आम आदमी पार्टी को पसंद कर रहे हैं। उस सीट से आप के विधायक शीतल अंगुराल लोक सभा चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उपचुनाव में उन्हें उम्मीदवार बनाया, लेकिन यह बड़ी चूक साबित हुई। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने जालंधर में बाकायदा किराये पर घर लिया और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मोहित भगत की जीत को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बनाते हुए जीत सुनिश्चित भी की। अंगुराल 35,000 से अधिक मतों से चुनाव हार गए, जो विधान सभा चुनाव के लिहाज से बहुत बड़ा अंतर है।
एक तरह से भाग्य ने पलटी मारी थी। लोक सभा चुनाव में मान और आप ने 13 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल करने का दावा किया था, लेकिन उन्हें केवल तीन सीटें मिलीं। 2022 के विधान सभा चुनाव में पार्टी को 42 फीसदी मत मिले थे। लोक सभा चुनाव में यह मत प्रतिशत घटकर 26 फीसदी रह गया। लोक सभा चुनाव में भाजपा के मत प्रतिशत में इजाफे से संकेत मिलता है कि दूसरे राजनीतिक दल हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं।
अब पड़ोसी राज्य हरियाणा में विधान सभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान जोर पकड़ रहा है, मान पहले से अधिक नजर आ रहे हैं और दिखा रहे हैं कि मतदाताओं के बीच उनका कितना आकर्षण है। परंतु पंजाब सरकार का प्रदर्शन कमतर रहा है। अगर इसके साथ पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के प्रति मान की निजी महत्त्वाकांक्षाओं को शामिल कर दिया जाए तो शायद कुछ दुरुस्त करने की जरूरत लगती है। भगवंत मान को और कुछ करने से पहले पंजाब में शासन बेहतर करना चाहिए।