साल खत्म हो रहा है और अमेरिका में नई सरकार शासन संभालने जा रही है। दुनिया बदल रही है। ऐसे में भारत के लिए दक्षिण एशिया में क्या संभावनाएं हैं?
कई लोगों का कहना है कि भारत ने साल भर अपने पड़ोस में दोस्तों को दुश्मन बनाने के अलावा कुछ भी नहीं किया। वे भूटान की ओर इशारा करते हैं, जहां यह मांग जोर पकड़ रही है कि हर चीज के लिए भारत पर ही निर्भर नहीं रहा जाए।
नेपाल में नई सरकार बन चुकी है और माना जा रहा है कि वह भारत के बिल्कुल खिलाफ है। नेपाल के पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत से न्योता ‘नहीं मिलने पर’ नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली दिसंबर के अंत में चीन जाएंगे और उसके बाद भारत आएंगे। ऐसा हुआ तो पुरानी परंपरा टूट जाएगी।
सत्तापलट की शिकार हुई प्रधानमंत्री शेख हसीना इस समय बांग्लादेश की सबसे बड़ी दुश्मन मानी जा रही हैं। उन्हें शरण देकर भारत ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है।
पाकिस्तान (Pakistan) के साथ गतिरोध इतना बढ़ चुका है कि अनुभवी राजनयिक भी पूछ रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान में दोबारा कभी दोस्ती हो भी पाएगी या नहीं।
श्रीलंका के नए राष्ट्रपति अनुरा कुमार दिसानायके घोषित रूप से भारत विरोधी हैं और वैचारिक रूप से चीन के करीब हैं। इसलिए उस मोर्चे पर भी हमें कुछ हासिल होता नहीं दिखता। ‘इंडिया आउट’ अभियान के साथ भारत ने मालदीव में मैत्रीपूर्ण स्वीकार्यता पूरी तरह खो दी है। दक्षिण एशिया में भारत की कूटनीति में गड़बड़ी है और चीन का दबदबा है। सरसरी तौर पर देखने पर लगता है कि भारत फंसा हुआ है लेकिन क्या वाकई हालात इतने खराब हैं?
इस वर्ष अक्टूबर में भारत, बांग्लादेश और नेपाल ने 40 मेगावॉट बिजली के व्यापार के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए। नेपाल पहली बार किसी अन्य देश को बिजली बेच रहा है क्योंकि अभी तक भारत ही खरीदार रहा है। अब नेपाल भारत को बिजली भेजगा और भारत उतनी ही बिजली बांग्लादेश को भेजेगा।
यह पहला मौका है, जब भारत ईमानदारी से बिचौलिये की भूमिका निभाएगा। यह 1997 से बहुत अलग है, जब भारत और नेपाल के बीच बिजली व्यापार समझौता वहां की संसद में पेश तक नहीं हो सका था क्योंकि उसे भारी राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा था।
नेपाल का संविधान कहता है कि नेपाल के प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित विदेशी समझौतों को संसद द्वारा दो तिहाई बहुमत से मंजूर करना होगा और उस समय भारत पर शंकाओं का बाजार गर्म था। केवल 40 मेगावॉट की इजाजत मिली, लेकिन शुरुआत तो हुई।
श्रीलंका में जब इस साल सितंबर में दिसानायके राष्ट्रपति चुने गए थे तब नीतियों में आमूल-चूल बदलाव होने के गंभीर अनुमान जताए गए थे। उनका और उनकी पार्टी का अतीत मार्क्सवाद, लेनिनवाद, त्रॉत्सकीवाद से जुड़ा रहा है और बाद में उसका संबंध अति राष्ट्रवादी सिंहल बौद्ध विचारधारा से भी रहा है। इसी वजह से भारत-श्रीलंका रिश्तों पर बहुत बुरा असर पड़ने के अनुमान लगाए जा रहे थे। अब तक तो ऐसा नहीं हुआ है।
यह सच है कि सरकारी विमानन कंपनी श्रीलंकन एयरवेज का निजीकरण टाल दिया गया है और सरकारी सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में भी निजीकरण के बजाय सुधारों पर जोर दिया जाएगा। परंतु अदाणी-जॉन कील्स होल्डिंग्स (जेकेएच) के संयुक्त उपक्रम वेस्ट कंटेनर टर्मिनल का पहला चरण 2024-25 की पहली तिमाही में शुरू हो जाएगा।
लाल सागर में बाधा उत्पन्न होने के कारण कोलंबो के रास्ते काफी कारोबार हो रहा है और अच्छी कमाई हो रही है। वहां की सरकार इस कंटेनर टर्मिनल का राष्ट्रीयकरण करने भी नहीं जा रही है।
मालदीव में शोर-शराबे को ताक पर रखकर कूटनीति अपना काम कर रही है। मालदीव में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी के कारण वहां इंडिया आउट का नारा बुलंद हुआ था लेकिन अक्टूबर में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू की भारत यात्रा के बाद वह व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी पर सहमत हो गया है, जिसमें रक्षा क्षेत्र भी शामिल है।
अक्टूबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान गए, जो पिछले 12 साल में किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली पाकिस्तान यात्रा थी। शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांगों के बावजूद बांग्लादेश की नई सरकार यह स्वीकार करती दिख रही है कि वहां के लोगों की दुश्मनी शेख हसीना से है भारत से नहीं। करीब 50 फीसदी बिजली आपूर्ति बंद होने के बाद बांग्लादेश ने अदाणी पॉवर का बकाया चुका दिया है।
कंपनी अपने झारखंड संयंत्र से बांग्लादेश को बिजली देती है। इस तरह बांग्लादेश ने साफ कर दिया है कि वह राजनीति को व्यापार के रास्ते में नहीं आने देगा। ऊपर बताया गया त्रिपक्षीय बिजली समझौता चल ही रहा है।
यकीनन दक्षिण एशिया में चीन की अनदेखी मुश्किल है। परंतु पड़ोस में उसे रोकने की रणनीति पर काम चल रहा है, जो ऐप्लिकेशंस पर प्रतिबंध से भी आगे जाती है। भारत ने नेपाल से कहा है कि वह उन सरकारी या निजी कंपनियों से बिजली नहीं खरीदेगा, जिनमें चीन का निवेश है।
नेपाल के निवेशकों ने चीन की कंपनियों को टालना शुरू कर दिया है। बांग्लादेश तो शेख हसीना के कार्यकाल में भी चीन का शत्रु नहीं था लेकिन अभी यह कहना मुश्किल है कि भविष्य में उसका रुख क्या होगा।
भूटान के पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री शेरिंग तोपगे ने चुनावों के बाद इस वर्ष के आरंभ में अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए भारत को ही चुना, जबकि देश के राजनीतिक कुलीनों का विचार था कि देश केा अपनी भू-राजनीतिक प्राथमिकताओं पर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
असम-भूटान सीमा पर भारत नया शहर ‘गेलेफू’ बनाने में मदद कर रहा है, जिसे भविष्य का शहर कहा जा रहा है। बयानबाजी से कुछ भी लगे मगर हकीकत यही है कि पड़ोस में अभी तक भारत का असर भी है और दोस्त भी हैं।