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सियासी हलचल: नीतीश के फैसले से भाजपा के दांव अब मजबूत!

Bihar Politics: अगर आप गौर से देखें तो बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। हालांकि दूसरे दलों की स्थिति बदल गई है।

Last Updated- February 02, 2024 | 11:08 PM IST
Nitish Kumar

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले सप्ताह जो कदम उठाए, उनको लेकर नागरिक समाज में चिंता है। उनके इस फैसले पर रोष जताने के साथ ही उन पर उंगलियां भी उठाई जा रही हैं। इन सारी आलोचना का केंद्र नीतीश कुमार हैं। किसी को नहीं लगता कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी उतना ही दोषी माना जाना चाहिए, जो बिहार में हुए सियासी उलटफेर के लिए उतनी ही जिम्मेदार है।

अगर आप गौर से देखें तो बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। हालांकि दूसरे दलों की स्थिति बदल गई है। जिस रात यह बदलाव हुआ उसके बाद सोशल मीडिया पर हर जगह मजाक बनने लगा। सोशल मीडिया पर लोगों ने भाजपा से व्यंग्यात्मक लहजे में पूछना शुरू कर दिया कि पार्टी जल्द फैसला कर बताए कि वह नीतीश का समर्थन कर रही है या नहीं ताकि ‘हम यह फैसला कर सकें कि बिहार में जंगलराज है या नहीं।’

नीतीश ने ऐसा क्यों किया, इसकी कहानी अब धीरे-धीरे सामने आ रही है। डिजिटल समाचार और विचार मंच, सत्य हिंदी पर हुई एक चर्चा में कुछ दिलचस्प तथ्य सामने आए। नीतीश कुछ समय से अपने तत्कालीन गठबंधन सहयोगी लालू प्रसाद और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव पहले कराने की बात रणनीतिक रुप से उठा रहे थे।

दोनों साझेदार गठबंधन से अलग-अलग मांग कर रहे थे और कई हफ्तों से उनके बीच तनाव दिखने लगा था। लालू प्रसाद चाहते थे कि तेजस्वी जल्द से जल्द मुख्यमंत्री बनें और नीतीश के साथ अंतिम समझौते पर मुहर लगने के साथ ही उत्तराधिकार योजना लागू हो जाए।

नीतीश लगभग छह महीने से इस दबाव को टाल रहे थे (वह यह जान रहे थे कि जिस वक्त वह मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे, जदयू का आधा हिस्सा राजद में शामिल हो जाएगा और दूसरा भाजपा में)। इसके बजाय वह राजद से कह रहे थे कि जातिगत जनगणना जैसे प्रस्ताव और महागठबंधन (राजद, जदयू, वामपंथी दल और कांग्रेस) जैसे सामाजिक गठबंधन का इस्तेमाल विधानसभा चुनाव में उनके लिए कारगर हो सकता है।

एक उम्मीद यह भी थी कि क्या पता यह पत्ता लोकसभा चुनाव में भी चल जाए और फायदा हो जाए। लेकिन अब वार का समय आ गया था। हालांकि इस पर चर्चा करने के लिए आयोजित की गई एक कैबिनेट बैठक महज 12 मिनट में ही खत्म हो गई। राजद ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।

हालांकि भाजपा भी मौके का इंतजार कर रही थी। अक्टूबर में उसके कान तब खड़े हो गए जब मोतिहारी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं के साथ अपनी लंबी दोस्ती का जिक्र किया।

नीतीश ने वहां मौजूद भाजपा नेताओं की ओर इशारा करते हुए सपाट शब्दों में कहा, ‘हम चाहे कहीं भी हों, हम दोस्त रहेंगे। जब तक मैं जिंदा हूं, भाजपा वालों के साथ मेरी दोस्ती जारी रहेगी।’ इसके बाद दिसंबर में पटना में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में बेहतर प्रेजेंटेशन के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तत्कालीन मंत्री संजय झा की सराहना की थी। हालांकि शाह कम ही तारीफ करने के लिए जाने जाते हैं। इस तरह झा भाजपा-जदयू में होने वाली बातचीत के एक मुख्य वार्ताकार बन गए।

शनिवार, 27 जनवरी की रात करीब 11 बजे भाजपा नेता और अब उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने एक बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि ये सब अटकलें हैं और न तो किसी ने समर्थन वापस लिया है और न किसी ने समर्थन दिया है। कुछ घंटों के लिए ऐसा लगा कि जदयू और राजद यानी लालू और नीतीश ने अपने झगड़े सुलझा लिए और भाजपा को दूर करते हुए दोनों ने मेलमिलाप कर लिया।

हालांकि यह बयान भी रणनीतिक ज्यादा रहा होगा और अगले ही दिन नीतीश ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। कुछ ही घंटों में भाजपा ने राजद द्वारा छोड़ी गई जगह ले ली। इस तरह करीब 72 वर्ष की उम्र में नीतीश ने साबित कर दिया कि वह अपने से आधी उम्र के तेजस्वी से ज्यादा तेज हैं।

पहले भी जदयू और भाजपा के बीच गठबंधन हमेशा सुचारू नहीं रहा है क्योंकि नीतीश को भाजपा जैसी पार्टी से सहयोगी दल और प्रतिद्वंद्वी दोनों ही रूप में निपटना पड़ा है, खासतौर पर तब जब अपने दूसरे कार्यकाल (वर्ष 2005-10) के दौरान जदयू ने राज्य के गरीब मुसलमानों तक अपनी पहुंच का दायरा व्यापक करने की पूरी कोशिश की थी।

जब भाजपा ने सरकारी स्कूलों में ‘वंदे मातरम’ गाना अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया तो नीतीश ने इसे तुरंत खारिज कर दिया। दूसरी तरफ जब सच्चर समिति की सिफारिशों की समीक्षा के लिए केंद्र की एक टीम बिहार आई तो नीतीश ने उनसे मिलने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस मामले में किसी दबाव में नहीं आएंगे।

इस बार, सरकार के फैसलों में भाजपा का दखल संभवतः अधिक होगा। बिहार में अगला संघर्ष सम्राट चौधरी और तेजस्वी यादव के बीच हो सकता है। लगता है कि अब मेलमिलाप की गुंजाइश खत्म हो गई है।

First Published - February 2, 2024 | 11:08 PM IST

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