दिल्ली में तीन युवाओं की हुई मौत ने पूरे शहर को झकझोर कर रख दिया है। ये तीनों युवा ओल्ड राजेंद्र नगर के एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी में डूब गए क्योंकि उस इलाके में जल-निकासी व्यवस्था नहीं थी या पर्याप्त तरीके से काम नहीं कर रही थी। करीब एक साल पहले, दिल्ली विश्वविद्यालय के पास के इलाके मुखर्जी नगर में एक ऐसे ही संस्थान का वीडियो, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
उस वक्त वहां आग लगी थी और बच्चों को इमारत की ऊपरी मंजिल से कूदते और मौत को गले लगाते देखा गया क्योंकि इमारत पूरी तरह से आग की लपेट में आ चुकी थी और वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। हवा के संचार के लिए पर्याप्त व्यवस्था न होने से कार्बन मोनोऑक्साइड जहरीली गैस बन गई जिसके कारण भी कई मौतें हुई हैं।
उसी इलाके में अवैध निर्माण की वजह से घरों की नींव कमजोर पड़ने से कई मकान गिरने की घटनाएं भी हुई हैं। ये सभी घटनाक्रम दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) और दिल्ली सरकार के अधिकारियों की मिलीभगत, भ्रष्टाचार या लापरवाही की ओर इशारा करते हैं। सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसा फिर से हो सकता है।
आम आदमी पार्टी (आप) एमसीडी को नियंत्रित करती है। यह तथ्य है कि आप और एमसीडी के अधिकारियों, खासतौर पर अफसरशाहों की एक-दूसरे से नहीं बनती है। वर्ष 2018 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी और तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर आप के समर्थकों द्वारा किए गए हमले को लेकर अदालती लड़ाई चली जिसमें प्रकाश को आंशिक जीत मिली थी।
अफसरशाहों का एक वर्ग जो आप से सहमत नहीं होता है उसे दिल्ली के उपराज्यपाल के कार्यालय में अपील करने का एक तैयार मंच मिल जाता है। इससे आप के इस तर्क को बल मिल जाता है कि जो उनके साथ नहीं हैं वे उसके खिलाफ हैं। वैसे भी बेहतर शासन के लिए सत्ता के दो केंद्र ठीक नहीं होते हैं।
वर्ष 2022 में, आप ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से एमसीडी का नियंत्रण छीन लिया और इस तरह एमसीडी में भाजपा का 15 साल का कार्यकाल खत्म हो गया। आप को 134 वार्ड मिले लेकिन भाजपा 104 वार्ड के साथ काफी पीछे भी नहीं थी। इसके अलावा वोट के मामले में सिर्फ तीन प्रतिशत का अंतर था। यह सब तब हुआ जब भाजपा ने दिल्ली की स्थानीय शासन योजना का प्रयोग करते हुए बदलाव किया।
वर्ष 2012 में शीला दीक्षित ने भाजपा को कमजोर करने की उम्मीद में स्थानीय सरकार को तीन हिस्सों में बांट दिया था, हालांकि इसकी भी अपनी समस्याएं थीं और ये सब 2017 में सामने आने लगीं जब भाजपा ने एमसीडी चुनावों में 270 में से 181 वार्ड जीतकर भारी जीत दर्ज की। आप वर्ष 2015 से ही दिल्ली विधानसभा में भारी जीत के साथ सत्ता में बनी थी लेकिन 2017 के चुनावों ने ये साबित कर दिया कि इसकी जड़ें भी कमजोर हैं और यह केवल 49 वार्ड ही जीत सकी। हालांकि 2022 के चुनावों के बाद सब ठीक हुआ। वर्ष 2022 के चुनावों से ठीक पहले भाजपा ने तीन जोन को एक इकाई में मिला दिया लेकिन इसे फिर से चुनाव में आप के सामने हार का मुंह देखना पड़ा।
यह सब क्यों महत्त्वपूर्ण है? भ्रष्टाचार, लापरवाही और शहरी प्रशासन से जुड़ी समस्याओं के अलावा एमसीडी की कार्यप्रणाली में राजनीति केंद्र में है। पिछले वर्ष एमसीडी में चुनाव की स्थायी समिति को लेकर मारपीट की नौबत आ गई।
आप और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच पानी की बोतलें फेंकने के साथ ही गुत्थम-गुत्थी तक शुरू हो गई। इसके अलावा मेयर का चुनाव भी समान रूप से विवादास्पद रहा। आप यह पूछ सकते हैं जब वे हर वक्त लड़ते रहते हैं तब इन पार्षदों को काम करने का वक्त कब मिलता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी यही सवाल पूछा है। दिल्ली के उपराज्यपाल ने भी दबाव बनाते हुए आरोप लगाया है कि जब दिल्ली सरकार को नालियों की सफाई कराने के लिए कहा गया तब इसने उस प्रस्ताव पर कोई कदम क्यों नहीं उठाए। वहीं आप का कहना है कि जब दिल्ली सरकार काम करना चाहती हैं तब उपराज्यपाल कार्यालय काम नहीं देते।
आप यह सोच रहे होंगे कि इन बातों के मद्देनजर दिल्ली में भाजपा के उभार की पूरी गुंजाइश बन सकती है जिस पार्टी में कभी मदन लाल खुराना जैसे दिग्गज नेता थे और उन्होंने कभी दिल्ली का नेतृत्व किया था। पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष, वीरेंद्र सचदेवा ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कराए और आप के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन का नेतृत्व भी किया।
लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन में भीड़ सीमित ही रही। पार्टी से इतर सामान्य मतदाताओं तक पहुंच बनाने में पार्टी सफल नहीं रही है जो रोष में हैं। भाजपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो अरविंद केजरीवाल के कद का हो। सुधांशु त्रिवेदी या बांसुरी स्वराज पार्टी में नया जोश भर सकते हैं जिसकी राजधानी दिल्ली में जरूरत है।
भारत में कोई भी शहर इतना नहीं बदल रहा है जितनी दिल्ली बदल रही है। दूसरे राज्यों से आए लोग इसका मजबूत आधार हैं। लेकिन10 साल पहले जिस उम्र, क्षेत्र और पृष्ठभूमि के लोग यहां आ रहे थे, उसमें अब बहुत अंतर है। दिल्ली की नई राजनीति-अर्थव्यवस्था दरअसल आप के उभार का नतीजा रही। भाजपा को खुद को इस यथार्थ के अनुरूप खुद को ढालना होगा।