लोगों की जान जाने और उनके आजीविका गंवाने का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे की क्षमता पहले ही बहुत सीमित थी और अब तो देश भर में वह पूरी तरह चरमरा चुका है। यही कारण है कि एक के बाद एक विभिन्न राज्य लॉकडाउन और अलग-अलग तरह के प्रतिबंध लगा रहे हैं। लोगों के आवागमन पर लगाए जा रहे प्रतिबंध एक बार फिर मांग, आपूर्ति और आय को प्रभावित कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय की ताजा मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि कोविड-19 के बढ़ते मामलों, मौतों और संक्रमण के मामलों ने आर्थिक सुधार की प्रक्रिया के सामने कड़ी चुनौती पेश की है। परंतु इसमें यह भी कहा गया है कि आर्थिक गतिविधियां पहली लहर की तुलना में इस बार कम प्रभावित होंगी। अन्य देशों के अनुभव भी यही दिखाते हैं।
यह सही है कि इस वर्ष देश में आर्थिक गतिविधियों में उतनी गिरावट नहीं आएगी जितनी गत वर्ष आई थी लेकिन यहां दो बातें ऐसी हैं जिन्हें रेखांकित किया जाना जरूरी है। पहली बात, आर्थिक गतिविधियों में मौजूदा गिरावट का आधार अत्यंत कमजोर है। पूर्ण सुधार में अधिक देरी के आर्थिक प्रभाव होंगे जो आम परिवारों पर भी पड़ेंगे। दूसरा, कोविड-19 के अधिक मामले तथा मौतें आर्थिक गतिविधियों पर अधिक बुरा असर डाल सकते हैं। जैसे हालात आज हैं उनमें कुछ उच्च तीव्रता वाले संकेतक सालाना आधार पर काफी सुधार दर्शा रहे हैं, वहीं यह मानना उचित होगा मौजूदा तिमाही में उत्पादन बीती दो तिमाहियों से कमतर रह सकता है। इसका असर व्यक्तिगत आय में सुधार पर भी पड़ेगा।
महामारी के समापन के बाद यह आकलन करने में कई वर्ष लगेंगे कि उसने विभिन्न क्षेत्रों पर क्या असर डाला होगा? परंतु अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट इस बारे में आरंभिक अंतर्दृष्टि प्रदान करती है कि पहली लहर ने अन्य चीजों के अलावा आय और रोजगार को किस तरह प्रभावित किया। अप्रैल-मई 2020 के लॉकडाउन के दौरान करीब 10 करोड़ लोगों के रोजगार गए। हालांकि इनमें से अधिकांश लोगों को दोबारा काम मिल गया लेकिन सन 2020 के अंत तक करीब 1.5 करोड़ लोग बेरोजगार बने रहे।
परंतु यह बात ध्यान देने लायक है कि एक ओर जहां अधिकांश कामगार काम पर लौट आए, वहीं असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले तेजी से बढ़े। करीब आधे वेतनभोगी असंगठित क्षेत्र में काम करने लगे। यही कारण है कि मासिक आय में 17 फीसदी की गिरावट आई। रोजगार और आय के नुकसान ने महिलाओं को काफी प्रभावित किया। अध्ययन में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित न्यूनतम आय से कम कमाने वालों की तादाद बढ़कर 23 करोड़ से अधिक हो गई। इससे गरीबी काफी बढ़ी है। आश्चर्य नहीं कि आम परिवारों ने भोजन में कटौती, परिसंपत्तियों की बिक्री और विभिन्न स्रोतों से उधार लेना शुरू कर दिया।
काफी संभव है कि कोविड मामलों में इजाफे और आर्थिक गतिविधियों में गिरावट के बाद हालात एक बार फिर खराब होने लगे हों। ऐसे में सरकार ने खाद्यान्न पुनर्वितरण योजना दोबारा शुरू करके अच्छा किया है। इससे एक हद तक लोगों का कष्ट कम करने में मदद मिलेगी। परंतु बड़ी तादाद में लोगों के रोजगार गंवाने और गरीबी में इजाफे से नीतिगत चुनौतियां उत्पन्न होंगी। इससे आर्थिक सुधार प्रभावित होगा। श्रम बाजार और वंचित वर्ग के परिवारों को अल्पावधि और मध्यम अवधि में नीतिगत प्रतिक्रिया की आवश्यकता होगी। फिलहाल जरूरत इस बात की है कि महामारी को रोका जाए। भारत इस मामले में संक्रमण में शुरुआती कमी और टीका विनिर्माण केंद्र होने जैसी दो आरंभिक बढ़त गंवा चुका है। यदि आगे नीतिगत अनदेखी हुई तो इससे समस्या बढ़ेगी।
