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बेटियों के लिए उत्तराधिकार की राह अब आसान

अंबानी इस साक्षात्कार के लिए पूरी तैयारी के साथ आए और उन्हें यह पता था कि वह क्या बोलने वाले हैं और अंततः वह अपने एजेंडे पर कायम भी रहे।

Last Updated- October 04, 2023 | 9:02 PM IST
Behind the rise of India Inc's daughters

कई वर्ष पहले मैंने एक दफा मुकेश अंबानी का साक्षात्कार किया था और उस दौरान हंसी-मजाक करने की मेरी सारी कोशिश धरी की धरी रह गई। अंबानी इस साक्षात्कार के लिए पूरी तैयारी के साथ आए और उन्हें यह पता था कि वह क्या बोलने वाले हैं और अंततः वह अपने एजेंडे पर कायम भी रहे। सार्वजनिक तौर पर उनकी शख्सियत कुछ ऐसी ही रही है। वह अपने एजेंडे पर कायम रहते हैं जिसमें किसी भी तरह की निरर्थक बातचीत की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती है।

यह रणनीति निश्चित रूप से अंबानी के लिए व्यक्तिगत स्तर पर काफी बेहतर साबित हुई है। लेकिन हाल ही में 28 अगस्त को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की वार्षिक आम बैठक में उन्हें थोड़ा भावुक होते हुए देखना नया अनुभव था। उन्होंने अपने बच्चों को निदेशक मंडल में शामिल किए जाने की जानकारी देते हुए 46 साल पहले कंपनी के निदेशक मंडल में अपने शामिल होने वाले समय को भी याद किया।

उन्होंने कहा, ‘यह मेरे लिए भावुक क्षण है क्योंकि यह मुझे 1977 के उस दिन की याद दिला रहा है जब मेरे पिता ने मुझे रिलायंस के निदेशक मंडल में शामिल किया था। तब मैं सिर्फ 20 साल का था। आज, मैं अपने पिता और खुद में ईशा, आकाश और अनंत को देखता हूं। मैं इन सभी में धीरूभाई की लौ को चमकते हुए देखता हूं।’

धीरूभाई ने जो भी किया या जो करने में सक्षम थे उनके मुकाबले मुकेश अंबानी ने उत्तराधिकार के अपने दृष्टिकोण को ज्यादा व्यापक किया है। वर्ष 2002 में 70 साल की उम्र में जब उनके पिता का निधन हुआ तब उनकी संपत्ति की कोई वसीयत नहीं थी। इस वजह से मुकेश अंबानी और उनके भाई, अनिल अंबानी के बीच का झगड़ा सार्वजनिक हो गया और आखिरकार उनकी मां ने हस्तक्षेप कर धीरुभाई अंबानी के औद्योगिक साम्राज्य का विभाजन कर दिया।

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70 साल की उम्र वाले पड़ाव की ओर बढ़ रहे अंबानी धीरे-धीरे अपने तीन बच्चों, ईशा और आकाश (जुड़वा, 31 वर्ष) और अनंत (28 वर्ष) को नेतृत्वकर्ता की भूमिका के लिए तैयार कर रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में एक दिलचस्प बात उनकी बेटी ईशा को लेकर उभरती है। अंबानी जब अपने बच्चों में अपने पिता और खुद को देखने के बारे में बात कर रहे थे तब उन्होंने अपने बेटों से पहले ईशा का जिक्र किया।

कुछ समय पहले, न्यूयॉर्क टाइम्स के एक साक्षात्कार में भी उन्होंने ईशा का जिक्र करते हुए कहा था कि कैसे वह उनके कारोबारी विकल्पों पर सवाल उठाती हैं। विशेष रूप से प्लास्टिक के क्षेत्र में उनकी कंपनी की मौजूदगी पर ईशा को एतराज है क्योंकि इससे प्रदूषण फैलता है। मैकिंजी में काम कर चुकी और येल यूनिवर्सिटी से स्नातक करने वाली ईशा को उनके अपने भाइयों के समान ही नेतृत्व के लिए तैयार किया गया है। कुछ लोग तो उन्हें उनके भाइयों से पहले ही रखते हैं।

उनके हिस्से वाला रिटेल कारोबार भी आजकल सुर्खियां बटोर रहा है। वर्ष 2021 में, फॉर्च्यून पत्रिका के भारतीय संस्करण में उन्हें ‘अपने काम में मुस्तैद उत्तराधिकारी’ के तमगे से नवाजा गया था। इसमें यह कहा गया कि ईशा ने ही भारत की धीमी गति वाले इंटरनेट पर विचार करना शुरू किया जिससे जियो के डेटा वाली योजना साकार हुई।

कई औद्योगिक घराने की पुरानी पीढ़ी की बेटियों की शादी, दूसरे औद्योगिक घराने में हो जाती थी और बेटियां कंपनी की बागडोर नहीं संभाल पाती थीं। आप सबसे मशहूर औद्योगिक घराने के परिवार पर नजर डालें तो आपको अंदाजा होगा कि उन परिवारों की बेटियों या बहिनों का जिक्र पारिवारिक पीढ़ी के तौर पर किया जाता है लेकिन व्यावसायिक संगठन में उनका नाम कहीं नहीं होगा। वे आमतौर पर परिवार की देखभाल करती हुई दिखेंगी या थोड़ा बहुत परोपकारिता का काम करती हुई नजर आएंगी।

एक और दिलचस्प बात यह है कि भारत के कारोबारी घराने में पिता-पुत्र के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे हैं और इसमें नियंत्रण को लेकर बेहद खराब स्तर के मतभेद के उदाहरण भी हैं। फिर भी, कारोबारी घराने के संरक्षक आमतौर पर अपने बेटों या भतीजों को उत्तराधिकार सौंपते हैं, खासतौर पर तब जब उनके बेटे नहीं होते या उन्होंने शादी नहीं की होती है। कुछ ही मामले में बेटी को जिम्मेदारी दी जाती है लेकिन वैसी स्थिति में भी पेशेवर लोग ही कंपनी की जिम्मेदारी संभाल रहे होते हैं।

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ईशा, भारत के कंपनी जगत की उन कई बेटियों में से एक हैं जो पारिवारिक कारोबार को चलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। गोदरेज समूह के संरक्षक आदि गोदरेज की दो बेटियां और उनके बेटे ने कारोबार संभाला है। निसाबा गोदरेज ही गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स की कार्यकारी चेयरपर्सन हैं और उनकी बहन तान्या दुबाश गोदरेज इंडस्ट्रीज की कार्यकारी निदेशक हैं।

उनके भाई, पिरोजशा, गोदरेज प्रॉपर्टीज के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। टीवीएस के मानद अध्यक्ष, वेणु श्रीनिवासन की बेटी लक्ष्मी वेणु और उनके भाई सुदर्शन कंपनी के निदेशक मंडल में शामिल हैं। इसके अलावा, लक्ष्मी टैफे मोटर्स ऐंड ट्रैक्टर्स लिमिटेड में उप प्रबंध निदेशक हैं।

बेटे-बेटियों को समान तरीके से उत्तराधिकार देने के पथप्रदर्शकों में ल्यूपिन के संस्थापक देशबंधु गुप्ता को माना जा सकता है। कुछ वर्ष पहले, उन्होंने उत्तराधिकार योजना तय की कि उनकी बेटी विनीता सीईओ (मुख्य कार्य अधिकारी) बनीं और उनके भाई निलेश प्रबंध निदेशक हैं।

वहीं अनलजित सिंह के मैक्स इंडिया को देखें तो उनकी बेटी तारा सिंह वचानी ने अंतरा सीनियर लिविंग की शुरुआत कर अपनी एक नई राह तैयार की है। औद्योगिक घरानों में बेटियों के उभरने और अपनी एक जगह बनाते हुए सफलता पाने की कई मिसाल है जहां उनके भाई भी कारोबार में अपनी जगह बना रहे हैं।

कारोबारी घरानों के जाने-माने विशेषज्ञ कविल रामचंद्रन कहते हैं कि इसका शिक्षा से काफी संबंध है। उन्होंने कहा, ‘लड़कियों की शिक्षा का स्तर बेहतर होने के साथ ही दुनिया से जुड़ा उनका अनुभव भी व्यापक हुआ है। पहले ऐसे हालात थे कि कई पारंपरिक कारोबारी घरानों की लड़कियों ने विश्वविद्यालय स्तर से पहले ही पढ़ाई बंद कर दी और उनकी शादी कर दी गई। इन औद्योगिक घरानों में लड़कों को कारोबार चलाने के लिए तैयार किया गया और लड़कियों से यह उम्मीद की गई कि वे परिवार चलाएंगी। पहले लड़कियों की शिक्षा इत्तफाक से होती थी लेकिन अब लड़कियां पढ़ने के लिए विदेश जाती हैं।’

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लेकिन अब एक और महत्त्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है। अब कारोबार में एकल परिवार का उदय हो रहा है। उदाहरण के तौर पर मुकेश अंबानी के परिवार में अब उनकी पत्नी और बच्चे हैं। उनके भाई अनिल अंबानी अब इस परिवार का हिस्सा नहीं हैं। प्रोफेसर रामचंद्रन कहते हैं, ‘एक एकल परिवार में लोगों का रिश्ता बेहद करीबी होता है क्योंकि इसमें कम सदस्य होते हैं और माता-पिता का ध्यान लड़कों और लड़कियों पर कमोबेश बराबर होता है।’ इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में वास्तव में बड़ा बदलाव देखा जाता है।

प्रोफेसर का कहना है, ‘एक संयुक्त परिवार में पितृसत्ता अधिक प्रबल होती है। महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे परिवार की देखभाल करें या परोपकारिता से जुड़े काम में अपना वक्त दें। कई चीजें परंपरागत स्तर पर होने लगती हैं और कारोबार में युवा पीढ़ी की उतना दखल नहीं है, जितनी वरिष्ठ पीढ़ी की है। इसके अलावा निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी है और किसी एक की अकेली आवाज दब जाती है।’

यदि आप विरोधाभास की मिसाल देखना चाहते हैं, तो मुरुगप्पा समूह में वल्ली अरुणाचलम के संघर्ष को ही देख लें। पूर्व परमाणु वैज्ञानिक और मुरुगप्पा समूह के पूर्व अध्यक्ष दिवंगत एम वी मुरुगप्पन की सबसे बड़ी बेटी को अपने पारिवारिक कारोबार में महिलाओं की अहम भूमिका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। एक तरह से यह उनकी अकेली आवाज थी।

First Published - October 4, 2023 | 9:02 PM IST

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