जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले को एक महीने से अधिक समय बीत चुका है। इस आतंकी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान एवं उसके कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों पर हमले हवाई हमले किए। इसके बाद दोनों देशों में सैन्य झड़प शुरू हो गई जिसमें भारत ने पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकाने तबाह कर दिए। हालात खतरनाक स्तर तक पहुंचे इससे पहले दोनों देश किसी तरह युद्ध विराम पर सहमत हो गए। भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के माध्यम से पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि आतंकवाद किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यानी भारत ने पाकिस्तान के लिए एक स्पष्ट लकीर खींच दी है। हालांकि, एक बड़ा सवाल यह है कि भारत की कार्रवाई से क्या पाकिस्तान आतंकवाद को समर्थन देने से पीछे हटेगा और कितने समय तक?
सुरक्षा विश्लेषकों ने पहलगाम हमले के पीछे कई संभावित कारण गिनाए हैं। उनके अनुसार जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन की बहाली में बाधा डालने के साथ ही पाकिस्तान संभवतः बाह्य और आंतरिक कारणों से भी भारत के साथ तनाव बढ़ाना चाह रहा था। वैश्विक मामलों में पाकिस्तान की कोई व्यावहारिक भूमिका नहीं रह गई है इसलिए उसने कश्मीर का मुद्दा उठाया और दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कोशिश की। अंदरूनी स्तर पर भारत के साथ तनाव बढ़ाने से पाकिस्तान के नागरिक एवं सैन्य प्रशासन को लोगों का समर्थन हासिल हो सकता है। याद रहे कि इमरान खान सरकार को अस्थिर करने और मौजूदा सरकार को सत्ता पर काबिज कराने में पाकिस्तान की सेना की अहम भूमिका रही है। पाकिस्तान बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में भी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है मगर इसकी सबसे बड़ी समस्या सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था है। तो भारत के साथ तनाव बढ़ाकर इस गंभीर समस्या से लोगों का ध्यान हटाना भी पाकिस्तान का एक मकसद हो सकता है।
आर्थिक चुनौती: ज्यादातर विश्लेषक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अधिक महत्त्व नहीं देते हैं इसलिए एक वृहद आकलन के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के आंकड़े और विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित सामग्री ही ठोस विकल्प बचते हैं। पाकिस्तान काफी हद तक आईएमएफ की मदद पर आधारित है। आईएमएफ ने हाल में पाकिस्तान को कर्ज देने संबंधी शर्तें कड़ी कर दी हैं। पाकिस्तान पर आईएमएफ की रिपोर्ट, 2024 में कहा गया है, ‘पाकिस्तान के साथ जुड़े जोखिम और इसके समक्ष चुनौतियां बेहद गंभीर बनी हुई हैं। कठिन कारोबारी माहौल, कमजोर शासन और कारोबार एवं उद्योग जगत में सरकार का आवश्यकता से अधिक हस्तक्षेप निवेश को प्रभावित करता है। पाकिस्तान में करदाताओं की संख्या एवं कर राजस्व कर में पारदर्शिता लाने, राजकोषीय मजबूती सुनिश्चित करने और सामाजिक एवं विकास संबंधी खर्चों की रकम जुटाने के लिए काफी नहीं है।’
इस रिपोर्ट में ढांचागत चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है। इसमें आगे कहा गया है, ‘1980 में पाकिस्तान में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानता या पीपीपी के संदर्भ में) कई क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक था मगर तब से वहां जीवन स्तर लगातार गिरता रहा है।’ यह पाकिस्तान में बदलती प्राथमिकताओं की तरफ संकेत है। इस अवधि में पाकिस्तान ने भारत और अन्य देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया।
विश्व बैंक द्वारा हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी पाकिस्तान को लेकर ऐसी ही बातों का जिक्र है। इस प्रकाशन के कार्यकारी सारांश के शुरुआती वाक्य में इस बात का बखूबी जिक्र किया गया है, ‘पिछले कई दशकों में कमजोर एवं अनिश्चित विकास दर एवं कम निवेश के बाद पाकिस्तान अपने प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में प्रमुख मानकों पर पिछड़ गया है।’ सामाजिक-आर्थिक स्थिति का एक स्पष्ट संकेतक पाकिस्तान में जन्म दर है, जो प्रति महिला 3.4 है। दक्षिण एशिया में यह सर्वाधिक दर है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘पिछले कुछ वर्षों से वृहद आर्थिक हालात के कुप्रबंधन से राजकोषीय एवं बाह्य अंसतुलन, कर्ज के बढ़ते बोझ और बाहरी सुरक्षा में ह्रास की स्थिति पैदा हो गई है।’ पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा की दशा गंभीर हैं। इसके पास जितनी विदेशी मुद्रा बची है उनसे केवल दो महीने तक आयात किया जा सकता है।
वृहद आर्थिक हालात के प्रबंधन के लिहाज से बात करें तो मुद्रास्फीति दर जरूर कुछ कम हुई है मगर 2022-23 में उपभोक्ता कीमतें लगभग 30 फीसदी और उसके अगले साल लगभग 23 फीसदी बढ़ गई थीं। आईएमएफ के आंकड़ों के अनुसार अमेरिकी डॉलर में वहां की प्रति व्यक्ति जीडीपी 2024 में लगभग 2015 के ही बराबर थी। यानी लगभग पिछले एक दशक से आय में न के बराबर वृद्धि हुई है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था (जीडीपी) भी उठापटक से जूझती रही है। 2023 में पाकिस्तान का जीडीपी (नॉमिनल) 337.75 अरब डॉलर था, जो 2021 में 348.48 अरब डॉलर था। इस पर कुल विदेशी कर्ज बढ़कर जीडीपी का 30 फीसदी से अधिक हो गया है। 2023 में कुल अनुमानित बाह्य ऋण इसके विदेशी मुद्रा भंडार का 13 गुना तक पहुंच गया था।
एक निम्न आय वाला देश जिसकी अर्थव्यवस्था लगभग सुस्त पड़ गई है वह अपने नागरिकों के हितों पर ध्यान दे तो बेहतर होगा। अपने से कई गुना बड़े देश और दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में एक भारत में उत्पात मचाना पाकिस्तान की प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए। मगर अफसोस कि पाकिस्तान एक सामान्य देश नहीं है। इसके एक सामान्य देश नहीं होने के पीछे कई कारण हैं जिनमें एक पाकिस्तान के गठन की बुनियाद भी है। पाकिस्तान में सेना का शुरू से दबदबा रहा है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान पर सेना का ही नियंत्रण रहा है।
निम्न आय वाले देश में संसाधनों पर नियंत्रण की होड़ हमेशा रहेगी। लिहाजा, पाकिस्तान की सेना भी संसाधनों पर कब्जा जमाने के लिए भारत से खतरे का बहाना बनाती रही है। यह अलग बात है कि इसकी नीतियों एवं प्राथमिकताओं ने एक ऐसी वास्तविक चुनौती खड़ी कर दी है जिसे संभाल पाना पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र के लिए मुश्किल हो गया है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इनिशिएटिव के आंकड़ों के अनुसार 2018 में पाकिस्तान में रक्षा पर व्यय उसके जीडीपी का 3.6 फीसदी हिस्सा था और 2023 में यह मामूली कम होकर 2.8 फीसदी रहा। अब खबरें आ रही हैं कि पाकिस्तान की सरकार ने अगले बजट में रक्षा व्यय के मद में 18 फीसदी बढ़ोतरी करने की मंजूरी दे दी है।
पाकिस्तान में बदतर राजनीतिक स्थिति और वहां शासन तंत्र पर कब्जा जमाए लोगों में असुरक्षा की भावना को देखते हुए यह माना जा सकता है कि वह आने वाले समय में भी भारत विरोधी रवैया नहीं छोड़ेगा। भारत अपनी सुरक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है मगर तब भी इसे अपनी आंतरिक सुरक्षा और रक्षा तैयारियों को लेकर लगातार मुस्तैद रहना चाहिए। पिछले कई वर्षों से रावलपिंडी (पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय) की हरकतों से पाकिस्तान की गरीब जनता ही अधिक बदहाल हुई है।