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एनपीएस बनेगी निवेश का उम्दा विकल्प

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:18 PM IST

नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) की परिकल्पना 1990 के दशक के उत्तराद्र्ध में की गई थी। इस परिकल्पना में कई बातें भविष्योन्मुखी थीं। इनमें कोष प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण पहलू था। निवेश की अवधि कई दशकों तक रखने से विभिन्न शेयरों में निवेश करने के कई लाभ हैं। हालांकि इससे कर्मचारियों के लिए अधिक जोखिम भी पैदा हो जाता है। शेयरों में निवेश से इसलिए अधिक प्रतिफल मिलता है कि इनके साथ जोखिम भी उसी अनुपात में अधिक होता है। युवा लोगों को भविष्य में पेश होने वाले जोखिमों को ध्यान में रखते हुए अपने निवेश में विविधता रखनी चाहिए। निवेश की अवधि बड़ी होने से चक्रवृद्धि ब्याज के लाभ के साथ प्रतिफल में छोटे स्तर पर बदलाव से बाद में अधिक लाभ मिलता है।
फीस एवं खर्चों पर नियंत्रण किया जा सकता है। हरेक ग्राहक वित्तीय कंपनियों को फीस के रूप में कुछ रकम का भुगतान करता है। 1990 के दशक के उत्तराद्र्ध में भारत में इक्विटी फंड प्रबंधन सक्रिय आधार पर होता था और विभिन्न श्रेणियों में निवेश करने से ग्राहकों को प्रत्येक वर्ष 150 आधार अंक का नुकसान सहना पड़ रहा था।
एनपीएस लाने के पीछे एक बड़ी सोच यह थी कि शेयर बाजार प्रतिफल देने में एक सीमा तक ही सक्षम है और फंड प्रबंधक भी एक निश्चित सीमा तक ही निवेश पर अधिक से अधिक लाभ देने में सफल हो सकते हैं। एक मकसद यह भी था कि नॉन-डिस्क्रेशनरी ‘इंडेक्स फंड’ प्रबंधन से काफी कुछ हासिल किया जा सकता है। डेरिवेटिव ट्रेडिंग, अल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग और अधिक तरलता के साथ शेयरों की कीमतें दमदार हो जाती हैं। इंडेक्स फंडों में निवेश करने वाले निवेशक सक्रिय कारोबारियों की मेहनत से कीमतों से जुड़ी संभावनाओं का लाभ उठाते हैं।
इंडेक्स फंड प्रबंधन में लागत तय होती है। प्रबंधनाधीन परिसंपत्ति (ऐसेट अंडर मैनेजमेंट) में इजाफा होने के साथ ही प्रतिशत के रूप में खर्च कम हो जाता है। एक मोटे सिद्धांत के रूप में अमेरिका में थोक बाजार में 1 अरब डॉलर का इंडेक्स फंड प्रबंधन प्रति वर्ष 1 आधार अंक अधिक प्रतिफल की पेशकश कर खरीदा जा सकता है। वहां इंडेक्स फंड प्रबंधन में कोष प्रबंधक शेयर उधार देने से अतिरिक्त कमाई करते हैं।
विभिन्न प्रबंधकों द्वारा चलाए जाने वाले इंडेक्स फंडों के बीच में कोई अंतर नहीं होता है। लिहाजा हमें सबसे कम फीस और व्यय वाले इंडेक्स फंड का चयन करना चाहिए। एनपीएस में इंडेक्स फंड प्रबंधक की सेवा लेने के लिए एक नीलामी का प्रावधान है। 1 जनवरी, 2004 से सभी नए कर्मचारियों के लिए एनपीएस ने परंपरागत पेंशन प्रणाली की जगह ले ली थी। उस समय एनपीएस की कई संकल्पना सैद्धांतिक ही लग रही थी। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार-1 और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार-1 की इस बात के लिए सराहना की जानी चाहिए कि वे ये कठिन सुधार लेकर आईं और यह व्यवस्था जारी रही। पेंशन परिसंपत्तियां धीमी गति से मगर अधिक प्रतिफल के साथ बढ़ती है। एनपीएस परिसंपत्तियां अब करीब 7 लाख करोड़ रुपये या 100 अरब डॉलर हो गई हैं। इस समय हम इसका लाभ उठा सकते हैं।
अब हम उस स्थिति में पहुंच गए हैं जहां कर्मचारियों से लिया जाने वाला प्रत्येक 1 आधार अंक 0.7 अरब रुपये या 70 करोड़ रुपये के बराबर होता है। अब एनपीएस के लिए शायद 5 आधार अंक खर्च की व्यापक प्रणाली पर दांव खेलना मुनासिब लग रहा है। इस लागत व्यवस्था में एनपीएस प्रणाली में 350 करोड़ रुपये या 3.5 अरब रुपये अर्जित किए जाते हैं। यह खर्च एनपीएस का हिस्सा बनने वाले सभी संगठनों (सीआरए, पीओपी और पीएफएम) को होने वाले भुगतान के बराबर होता है। उपयोगकर्ताओं के लिए यह मूल्य स्तर एक उत्कृष्ट सौदा होता है।
आने वाले समय में एयूएम हरेक पांच वर्षों में दोगुना हो सकता है। इस मामले में कुल व्यय 2022 में 350 करोड़ रुपये से बढ़कर 2027 में 700 करोड़ रुपये तक हो जाता है। इस स्तर पर कीमतों का 4 आधार अंक तक नीचे जाना संभव हो जाता है। परंपरागत म्युचुअल या हेज फंड उद्योग लागत के मामले में इतने किफायती नहीं हो सकते हैं। एनपीएस का ढांचा तैयार होने के 24 वर्षों बाद आंकड़े सबसे सामने हैं और यह सभी की वित्तीय योजना के लिए फायदेमंद हो सकता है।
उपभोक्ता बाजार से जुड़े लोगों का कहना है कि ‘वित्तीय योजनाएं बेची जाती हैं, न कि खरीदी जाती हैं’। इसमें यह संदेश छुपा है कि ग्राहकों की दिलचस्पी नहीं होने के बावजूद उन्हें किसी न किसी तरह ये योजनाएं थमा दी जाती हैं। इससे बिक्री पर आने वाली लागत वाजिब ठहराने में मदद मिलती है। इस लागत का भुगतान अंतत: ग्राहकों को करना पड़ता है। एनपीएस और इंडेक्स फंड विभिन्न दृष्टिकोण हैं जिनमें कोई वित्तीय योजनाएं खरीदी जाती हैं, न कि बेची जाती हैं। इन उत्पादों का अधिक से अधिक वितरण इनकी मुख्य विशेषता सार है। 5 आधार अंक के साथ इक्विटी इंडेक्स फंड अच्छे विकल्प हैं। एक ग्राहक के दिमाग में यह बात आते ही यह दूसरे ग्राहकों तक पहुंच जाती है।
अपने शुरुआती वर्षों में एनपीएस एक असहज स्थिति में थी जहां एक वादा था और सारी बातें स्पष्ट थीं मगर एयूएम पर्याप्त प्रतिफल के लिए नाकाफी साबित हो रही थी। व्यावहारिक लोगों के लिए एनपीएस को सैद्धांतिक कह कर खारिज करना आसान था। एमओएफ और पीएफआरडीए ने इन वर्षों के दौरान संतुलित भूमिका निभाई है। उन्होंने कर्मचारियों के लिए कम फीस रखने और विभिन्न सेवा प्रदाताओं के लिए लागत के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए काफी मेहनत की है। अब पहली बार एनपीएस का एयूएम युवा लोगों के लिए 5 आधार अंक के साथ आकर्षक विकल्प बन गया है।
एनपीएस से जुड़ी संभावनाएं बढ़ाने के लिए एनपीएस ट्रस्ट और पीएफआरडीए को कुछ दूसरी दिशाओं में भी प्रयास करने की जरूरत है। इनमें एक सिद्धांत यह हो सकता है कि अगले पांच वर्षों तक कुल प्रणालीगत लागत सालाना 5 आधार अंक रखी जाए। अगर ग्राहक चाहे तो उसे शेयरों में 100 प्रतिशत तक निवेश करने का विकल्प मिलना चाहिए। परिसंपत्ति प्रबंधन भारत से बाहर दूसरे देशों तक भी पहुंचना चाहिए। कम जोखिम को ध्यान में रखते हुए ऐसा किया जा सकता है। परिपक्वता अवधि पूर्ण होने से पहले निकासी का विकल्प समाप्त किया जाना चाहिए। किसी पेंशन प्रणाली का लक्ष्य वस्तुत: सेवानिवृत्ति के लिए एक पर्याप्त कोष तैयार करना है।
ये सभी उपाय होने के बाद देश के लगभग सभी लोग एनपीएस में निवेश करना चाहेंगे। वे स्वयं ऐसा करेंगे, न कि उन्हें एनपीएस में निवेश करने के लिए प्रेरित करने की जरूरत पेश आएगी। कुछ सुधारों के साथ क्रियान्वयन के एक इंजन के तौर पर एनपीएस ईपीएफओ के समक्ष दीर्घ अवधि से पेश आने वाली मुश्किलों का समाधान है।

First Published : February 11, 2022 | 11:04 PM IST