वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद की बैठक 20 महीने बाद शुक्रवार को आयोजित हो रही है। बैठक में परिषद कई विषयों पर विचार कर सकती है लेकिन भौतिक बैठक से एक संकेत यह भी निकलता है कि महामारी के कारण व्याप्त भीषण उथलपुथल के बाद हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं।
चालू वर्ष में राजस्व संग्रह के भी शुरुआती अनुमानों की तुलना में बेहतर रहने की संभावना है क्योंकि महामारी की दूसरी लहर का अर्थव्यवस्था पर सीमित प्रभाव पड़ा है। हालांकि एक और लहर का खतरा बरकरार है लेकिन आर्थिक गतिविधियों और कर संग्रह पर पडऩे वाले असर के सीमित रहने का ही अनुमान है। बीते कुछ सप्ताह के दौरान टीकाकरण की गति तेज हुई है, इससे भी मदद मिलेगी। आर्थिक हालात में सुधार और हाल के महीनों में कुल कर संग्रह में सुधार के साथ अगर परिषद दीर्घावधि के विषयों तथा जीएसटी प्रणाली को मजबूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करे तो बेहतर होगा।
परिषद जिन मसलों को हल कर सकती है उनमें से एक है रेस्टोरेंट द्वारा कर वंचना। ऐसी जानकारी सामने आई है कि ऑनलाइन खाने की आपूर्ति करने वाली कंपनियों से कहा जा सकता है कि वे रेस्टोरेंट की ओर से जीएसटी चुकाएं। अनुमान है कि इस क्षेत्र में करीब 2,000 करोड़ रुपये की कर वंचना की जा रही है।
बहरहाल, खाने की आपूर्ति करने वाली कंपनियों से कर चुकाने को कहने से मामला आंशिक रूप से ही हल होगा। यह मानना सुरक्षित है कि रेस्टोरेंट के राजस्व का बड़ा हिस्सा ऑफलाइन बिक्री से आता है। इसके अलावा इससे रेस्टोरेंट तथा खाने की आपूर्ति करने वाली कंपनियों दोनों के लिए मामला जटिल होगा। ऐसे में शॉर्टकट तलाशने के बजाय परिषद को ऐसा तरीका तलाशना चाहिए जिससे इस क्षेत्र में कर वंचना पर समग्र रूप से अंकुश लगाया जा सके।
परिषद नारियल के तेल को लेकर भी चर्चा कर सकती है। एक पैनल ने सुझाव दिया है कि नारियल तेल के एक लीटर से कम आकार के कंटेनरों को बालों में लगाने के तेल के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जिस पर 18 फीसदी जीएसटी लग सकता है जबकि बड़े कंटेनर में आने वाले तेल को खाद्य तेल मानकर उस पर 5 फीसदी जीएसटी लगाया जा सकता है।
यह इस बात का सटीक उदाहरण है कि कैसे ढेर सारी दरों ने जीएसटी प्रणाली को जटिल बनाया है और इसमें विसंगतियां पैदा की हैं। ऐसे में व्यक्तिगत वस्तुओं के साथ छेड़छाड़ करने के बजाय परिषद को दीर्घावधि के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए दरों को तार्किक बनाने पर काम करना चाहिए और जीएसटी प्रणाली को सहज और मजबूत बनाना चाहिए।
जीएसटी के स्लैब की तादाद कम करनी चाहिए और औसत कर दर को राजस्व की प्रतिपूर्ति करने वाला बनाया जाना चाहिए। जीएसटी प्रणाली इसलिए भी प्रभावित हुई क्योंकि दरों में अपरिपक्व ढंग से कमी की गई जिससे राजकोषीय समस्या पैदा हुईं।
इसके अलावा परिषद राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकार पर भी निर्णय ले सकती है जिसका कार्यकाल नवंबर में समाप्त होगा। यदि परिषद इसे समाप्त होने दे तो बेहतर। यह शुरुआत से ही खराब विचार था और पांच वर्ष बाद इसकी जरूरत नहीं है। यह सुझाव भी बेतुका है कि इसके अधिकार प्रतिस्पर्धा आयोग या किसी अन्य प्राधिकार को सौंप दिए जाएं। इससे बचना चाहिए। सुचारु बाजार अर्थव्यवस्था में इसके लिए कोई जगह नहीं है।
जानकारी है कि परिषद पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में लाने पर भी विचार करेगी। यह जरूरी कदम होगा लेकिन शायद फिलहाल यह उचित न हो क्योंकि ईंधन पर कर अधिक है और राजकोषीय अनिवार्यताएं कुछ और कह रही हैं। इसके बावजूद बिना ढांचे को जटिल बनाए या तोड़ेमरोड़े, मध्यम अवधि में पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की राह तलाशना उचित होगा।