लेख

CBI के प्रति जनता का भरोसा बहाल करने की नए प्रमुख की चुनौती

Published by
आदिति फडणीस   
Last Updated- May 21, 2023 | 7:18 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनावों की गहमागहमी के बीच, चुनाव परिणामों के साथ एक और मुद्दा सुर्खियों में आ गया है। यह केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के नए निदेशक प्रवीण सूद (59) की नियुक्ति पर विवाद को लेकर है। उनके 2024 में सेवानिवृत्त होने की उम्मीद थी। लेकिन वह अब विस्तार की संभावना के साथ कम से कम 25 मई, 2025 तक सीबीआई निदेशक के पद पर बने रहेंगे।

सूद की नियुक्ति पर न सिर्फ राजनेताओं बल्कि उनके सहकर्मियों और वरिष्ठों द्वारा भी सवाल उठाए जा रहे हैं, लेकिन यह मामला सुर्खियों में इसलिए आया कि सूद भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के 1986 बैच के कर्नाटक कैडर के अधिकारी हैं और कर्नाटक चुनाव परिणाम घोषित होते ही बतौर CBI निदेशक उनकी नियुक्ति की घोषणा की गई।

जोगिंदर सिंह और डी आर कार्तिकेयन के बाद सूद कर्नाटक कैडर से आने वाले तीसरे आईपीएस अधिकारी हैं जिन्हें केंद्रीय जांच एजेंसी का निदेशक बनाया गया है।

सूद का ताल्लुक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से है। इसलिए इस इलाके के लोगों में फिलहाल इस बात की खुशी है कि उनके यहां के एक बच्चे को देश की प्रमुख जांच एजेंसी का नेतृत्व करने का मौका मिला है। लेकिन सूद की शिक्षा काफी हद तक दिल्ली में हुई, और बाद में बेंगलूरु में (उनके पास भारतीय प्रबंध संस्थान से डिग्री है)। इसके बाद उन्होंने अमेरिका में मैक्सवेल स्कूल ऑफ गवर्नेंस, सिरैक्यूज विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क जाकर सार्वजनिक नीति और प्रबंधन का अध्ययन भी किया।

Also Read: साप्ताहिक मंथन: टिकाऊ वृद्धि दर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली से पढ़ाई पूरी करने के बाद 22 साल की उम्र में वह भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गए। मैसूर के लिए सूद के दिल में एक खास जगह है, क्योंकि यह उनकी पहली नियु​क्ति थी। हालांकि, ये उनके करियर को लेकर कुछ जरूरी बातें हैं। असली मुद्दा व्यवस्था से वैधता और सम्मान हासिल करने को लेकर है।

सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी और इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में पूर्व विशेष निदेशक, यशोवर्धन आजाद कहते हैं, ‘प्रवीण सूद कभी भी CBI में नहीं थे और न ही केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर थे। तो क्या कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग द्वारा शॉर्टलिस्ट करने या सूची बनाने का आधार है- अनुभव, वरिष्ठता या समायोजन या बॉस जो भी कहते हैं?’ आजाद का मानना है कि CBI प्रमुख के ‘चयन’ की प्रणाली गलत है और पांच सेवानिवृत्त CBI या IB प्रमुखों के एक पैनल को यह तय करना चाहिए कि CBI प्रमुख कौन होना चाहिए।

उन लोगों की ओर से भी सूद के ऊपर बड़ा आरोप लग चुका है जिनके हाथों में अब कर्नाटक का राजनीतिक नेतृत्व है। कर्नाटक कांग्रेस के प्रमुख डी के शिवकुमार ने कुछ महीने पहले सूद को ‘नालायक’ बताते हुए कहा था कि कर्नाटक में अधिकारियों के रवैये से साफ है कि पुलिस महानिदेशक का मकसद सरकार (उस समय भाजपा सरकार) के राजनीतिक विरोधियों को जेल में डालना है।

शिवकुमार ने कहा था, ‘वह (डीजीपी) पिछले तीन वर्षों से सेवा में हैं। वह और कितने दिन भाजपा कार्यकर्ता बने रहेंगे? उन्होंने कांग्रेस नेताओं के खिलाफ लगभग 25 मामले दर्ज किए हैं और राज्य में भाजपा नेताओं के खिलाफ एक भी मामला दर्ज नहीं किया है।’ शिवकुमार ने चेतावनी देते हुए कहा था, ‘हमारी सरकार आने दीजिए। हम उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।’

Also Read: डिलिवरी कर्मियों को खुद को संगठित करने की दरकार

सूद को कर्नाटक में अलग-अलग जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला है। अपने पहले कार्यकाल के बाद वह फिर से 2004 और 2007 के बीच पुलिस आयुक्त के रूप में मैसूरु लौट आए। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने और उनकी टीम ने 26 अक्टूबर, 2006 की रात को मुठभेड़ के दौरान दो लोगों, कराची के फहद उर्फ मोहम्मद कोया और मोहम्मद अली हुसैन उर्फ जहांगीर (दोनों अल-बद्र समूह के) को गिरफ्तार किया। बाद में इन दोनों को विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए दोषी ठहराया गया था।

जो भी कभी बेंगलूरू गया है वह जानता है कि शहर का यातायात प्रबंधन कितनी दयनीय स्थिति में है। 2008 से 2011 तक सूद बेंगलूरु के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (यातायात) थे। वह प्रौद्योगिकी-संचालित यातायात प्रबंधन के प्रबल समर्थक होने का दावा करते हैं, और कहते हैं कि उन्होंने कर्नाटक की राजधानी में सबसे उन्नत यातायात प्रबंधन केंद्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, बेंगलूरु में यातायात प्रबंधन में अराजकता अभी भी बनी हुई है।

सूद ने चुनौतीपूर्ण समय में CBI की कमान संभाली है। धारणा यह है कि एजेंसी को लगातार केंद्रीय सरकारों द्वारा ब्लैकमेल और डराने-धमकाने का साधन बना दिया गया है। 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने CBI को ‘पिंजरे का तोता’ कहा था। CBI की सजा दिलाने की दर यानी कनविक्शन रेट में गिरावट आई है, जबकि अदालतों में लंबित मामले बढ़े हैं। पिछले चार वर्षों में नौ राज्यों द्वारा CBI को दी गई सामान्य सहमति वापस लेने के बाद इसकी विश्वसनीयता प्रभावित हुई है।

नेतृत्व के लिए अतीत में हुए भारी विवाद के सार्वजनिक होने की वजह से भी एजेंसी की छवि को बड़ा धक्का लगा है। आखिरी बार यह लड़ाई आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच देखने को मिली थी। यह एजेंसी अपने आप किसी के खिलाफ जांच नहीं कर सकती है।

Also Read: जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने की दिशा में अगला कदम

परिणामस्वरूप, सरकार में निचले स्तर के भ्रष्टाचार को कठोर सजा मिलती है लेकिन जब बड़ी मछली की बात आती है तो उसके हाथ बंधे दिखाई देते हैं। किसी विधायक या राज्य सरकार के मंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए CBI को उस राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष या राज्यपाल से मंजूरी की आवश्यकता होती है। जबकि एक सांसद के मामले में लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के उप सभापति से जांच की मंजूरी मिलना जरूरी है।

सूद के खाते में कई उपलब्धियां भी हैं। उनकी अगुआई में ही साइबर अपराध की जांच, प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिए इन्फोसिस फाउंडेशन के साथ मिलकर एक अत्याधुनिक केंद्र स्थापित किया गया। जिसका उद्देश्य साइबर अपराध की जांच और परीक्षण के लिए पुलिस अधिकारियों, अभियोजकों और न्यायपालिका के बीच जरूरी समझ और क्षमता विकसित करना है।

पुलिस आयुक्त, बेंगलूरु शहर के रूप में उन्हें संकट में फंसे लोगों के लिए ‘नम्मा 100’ आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करने का श्रेय भी जाता है। आम सहमति यह है कि इस प्रणाली ने अच्छा काम किया है। अपनी नई जिम्मेदारी में सूद को संभवतः सबसे बड़ी चुनौती खासकर CBI के प्रति जनता का विश्वास और भरोसा बहाल करने की होगी।

First Published : May 21, 2023 | 7:18 PM IST