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GSTAT के गठन में पिछले अनुभवों से सबक लेने की जरूरत

इस समय जिस अपील पंचाट का गठन किया जा रहा है उसके लिए पिछले अनुभवों से सबक लिया जाना चाहिए ताकि विवादों का समय पर और तेज गति से निपटारा किया जा सके। बता रहे हैं के पी कृष्णन

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के पी कृष्णन   
Last Updated- November 01, 2023 | 11:22 PM IST

वित्त विधेयक 2023 के जरिये जीएसटी कानून में संशोधन और जीएसटी परिषद की जून 2023 की बैठकों के बाद बहुप्रतीक्षित वस्तु एवं सेवा कर अपील पंचाट (जीएसटीएटी) शीघ्र ही परिचालन आरंभ कर सकता है। यह सही समय है जब हम उच्च गुणवत्ता वाली पंचाट के गठन के बारे में विचार करें।

एक उदार लोकतांत्रिक देश में न्यायिक समीक्षा की संभावना रहनी चाहिए। भारत में कुछ मामलों में पंचाटों में अपील करने का अवसर दिया जाता है जिसमें आय कर अपील पंचाट (1941) और केंद्रीय उत्पाद और सेवा कर अपील पंचाट (सीईएसटीएटी) की व्यवस्था रही है। वहां से जीएसटीएटी तक का विकास स्वाभाविक है लेकिन हमें जीएसटी के विशिष्ट गुणों को ध्यान में रखना होगा। यह एक साथ केंद्रीय और राज्य कर दोनों है।

जीएसटीएटी की जरूरत जहां कर प्रशासन के क्षेत्र से उत्पन्न हुई है, वहीं इसका क्रियान्वयन विधिक व्यवस्था के दायरे में है। बीते एक दशक के दौरान न्यायालयों और पंचाटों के काम में सुधार को लेकर नई उल्लेखनीय जानकारियां सामने आई हैं। जीएसटीएटी का गठन एक ऐसा अवसर है जिसका लाभ लेकर विधिक ज्ञान का बेहतरीन इस्तेमाल किया जा सके।

हम शुरुआत इन चिंताओं के साथ करते हैं कि न्यायालयों के बरअक्स पंचाटों की निर्णय क्षमता क्या होगी। आपातकाल के दौरान संविधान में शामिल अनुच्छेद 323ए और 323बी ने संसद को यह अधिकार प्रदान किया है कि वह कराधान जैसे विषयों पर निर्णय लेने के लिए पंचाटों का गठन करे। उच्च न्यायपालिका जहां संवैधानिक रूप से स्वतंत्र है, वहीं पंचाटों में कार्यपालिका का हस्तक्षेप होता है या इसके हस्तक्षेप की आशंका बनी रहती है।

‘पंचाटीकरण’ की दिशा में यह जोर इसलिए भी था कि पीठ में विशिष्ट ज्ञान लाया जा सके और न्यायपालिका पर मामलों का बोझ कम किया जाए। पंचाटों के साथ जुड़ा अनुभव कई कठिनाइयों से भरा हुआ है। यह विडंबना ही है कि अदालतों में मामलों का बोझ कम करने के लिए गठित पंचाटों पर खुद भारी बोझ है।

कई पंचाटों में भारत सरकार भी एक पक्ष है। कई बार विवाद से जुड़ा एक पक्ष सरकार का वही विभाग होता है जो पंचाट का प्रभारी होता है। इस बात ने निष्पक्षता को लेकर कई प्रश्न उत्पन्न किए हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा है कि पंचाटों को कार्यपालिका से उतनी ही स्वायत्तता हासिल है जितनी कि न्यायपालिका को। इसके लिए सदस्यों के चयन, पंचाटों के घटक तथा सेवा शर्तों और संदर्भ में खास स्पष्टता बरतने की आवश्यकता है। परंतु अब इनमें अंतर दिख रहा है। सर्वोच्च न्यायालय की अनुशंसा यह भी थी कि पंचाटों से संबंधित सभी प्रशासनिक मसलों का प्रबंधन कानून मंत्रालय द्वारा किया जाए न कि संबंधित मंत्रालय द्वारा।

हाल ही में रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने बहुमत से दिए निर्णय में कहा कि सभी पंचाटों का न्यायिक प्रभाव आकलन किया जाना चाहिए। इसके पीछे नजरिया यह है कि उनके प्रभाव का आकलन किया जा सके और उनमें सुधार के तरीके तलाश किए जा सकें।

इस मामले में अल्पसंख्यक मत (देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश उसका हिस्सा थे) यह था कि राष्ट्रीय पंचाट आयोग या अखिल भारतीय पंचाट सेवा का गठन किया जाए। इसने पंचाट में पर्याप्त अधोसंरचना और विशेषज्ञ कर्मचारियों की जरूरत पर भी बल दिया।

सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे आदेशों में से ज्यादातर का अभी कार्यपालिका के काम में उतरना बाकी है। ऐसे में जीएसटीएटी को सही तरीके से लागू करना आवश्यक होगा। न्यायालय एक सेवा संस्थान है और सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके आधुनिक प्रक्रियागत इंजीनियरिंग के चमत्कार इसमें लागू किए जा सकते हैं।

दस्तावेजों को मजमा करने, शेड्यूल करने, वर्तमान मामलों की जानकारी तक पहुंचने और ऑर्डर तथा संबंधित सामग्री को जारी करने के लिए हॉटस्पॉट बहुत आवश्यक है। न्यायालयों की सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था में ऐप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का प्रदर्शन आवश्यक है। यही विविध प्रतिस्पर्धी उपयोगकर्ता इंटरफेस की जमीन तैयार करेगा तथा वादी, अधिवक्ता, अर्द्धन्यायिक कर्मचारी, रजिस्ट्री कर्मचारी, न्यायाधीश, शोधकर्ता तथा आम जनता आदि सभी इनका लाभ ले सकेंगे।

इस तरह का महत्त्वपूर्ण काम इन दिनों केरल और कर्नाटक में चल रहा है। वहां अदालतें शोध संस्थानों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। पंचाटों के कामकाज को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के अनुपालन के क्रम में एक मजबूत जीएसटीएटी लाने के लिए इन क्षमताओं का विकास आवश्यक है।

पारंपरिक पंचाट में हमेशा ऐतिहासिक रूप से लंबित मामलों की एक श्रृंखला होती है। ये प्रबंधन में बदलाव की समस्या को जटिल बनाते हैं। जीएसटीएटी एक साफ-सुथरी स्लेट की तरह है। ऐसे में शायद तमाम अपीलों को दो वर्ष के लिए उच्च न्यायालय भेजा सकता है जिसके भीतर एक मजबूत जीएसटीएटी की स्थापना हो सकती है।

इस सफर की शुरुआत के लिए कानूनी व्यवस्था में ​प्रक्रिया डिजाइन करने और आईटी सिस्टम को बनाने और चलाने के लिए निजी क्षेत्र से अनुबंध की क्षमता होनी चाहिए। न्यायालयों और पंचाटों में इन मामलों में अधिक क्षमता नहीं है। यहां हम बात करेंगे वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी, 2013) की जिसने वित्तीय क्षेत्र अपील पंचाट यानी एफएसएटी के गठन की बात कही थी जहां सभी वित्तीय नियामकों के खिलाफ अपीलों की सुनवाई की जाए। भारत सरकार ने 2015 में एफएसएटी कार्य बल का गठन किया था और इसकी अध्यक्षता प्रतिभूति अपील पंचाट के पूर्व प्रमुख न्यायमूर्ति एन के सोढ़ी को सौंपी थी।

इस कार्य बल ने विधिक ढांचे के भीतर न्यायिक और प्रशासनिक कार्यों को अलग-अलग करने पर बल दिया। प्रशासनिक कार्यों में वित्तीय और कार्मिक प्रबंधन, सरकारी खरीद, प्रबंधन और आईटी व्यवस्था आदि शामिल हैं। एक बार इन्हें मजबूती मिलने के बाद मामलों की सूची बनाने, केस आवंटन, शेड्यूलिंग, केस प्रबंधन, मशीन से पढ़े जाने लायक निर्णय और संबंधित केस दस्तावेज, एपीआई पहुंच आदि में बहुत मदद मिलेगी।

ऐसी विशिष्ट संस्था जो न्यायालयों और पंचाटों का प्रशासन चलाती हो, केवल विकसित देशों में मौजूद है। हम पासपोर्ट व्यवस्था में संप्रभु जवाबदेही और प्रशासनिक जवाबदेही को अलग-अलग करने के लाभ देख चुके हैं। इससे पता चलता है कि अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा करना संभव है। यदि ऐसी संस्था बनाई जा सकी तो यह भारतीय न्याय व्यवस्था में एक अहम कदम होगा।

(लेखक पूर्व लोक सेवक, सीपीआर में मानद प्रोफेसर एवं कुछ लाभकारी एवं गैर-लाभकारी निदेशक मंडलों के सदस्य हैं)

First Published : November 1, 2023 | 11:22 PM IST