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परंपरागत ज्ञान के आधुनिक रहनुमा

Last Updated- December 06, 2022 | 12:43 AM IST

राष्ट्र का निर्माण कई तरह की कोशिशों की बदौलत होता है। कुछ महान संस्थानों की स्थापना और उनका सही संचालन भी राष्ट्र रूपी इमारत के निर्माण में बेहद मददगार साबित होता है।


ऐसे सस्थानों के निर्माण और संचालन के बारे में किसी तरह का शॉर्ट-कट नहीं अपनाया जा सकता। आज से 15 वर्ष पहले बेंगलुरु के नजदीक ऐसी ही एक संस्था की नींव रखी गई थी, जिसने स्थानीय स्वास्थ्य परंपराओं को नए नजरिए से देखा। इसके संस्थापक, प्रेरणास्रोत और मुखिया दर्शन शंकर ने हाल ही में संस्था की कमान अपने डिप्टी हेड डी. के. देव को सौंप दी है। देव पहले इंजीनियर थे, जिन्होंने बाद में जंगल के मसलों पर काम करना शुरू कर दिया।


इस संस्था की बुनियाद रखे जाने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। 80 के दशक के आखिर में दर्शन शंकर की मुलाकात सैम पित्रोदा से हुई। इस मुलाकात में दोनों के मानसिक क्षितिज का आपसी एकाकार हो गया। देश में आधुनिक टेलिकॉम क्रांति के अगुआ सैम पित्रोदा उस मुलाकात को कुछ इस अंदाज में याद करते हैं – ‘हम दोनों में न के बराबर आपसी समानता थी, पर हम एक-दूसरे से विचारों से काफी प्रभावित हुए।’


80 के दशक के शुरू में जब दर्शन शंकर तटीय महाराष्ट्र के इलाके में ठाकुरों के बीच काम कर रहे थे, तो उन्होंने पाया कि स्थानीय जनजातियों की एक बेहद मजबूत स्वास्थ्य परंपरा थी। इसी से प्रभावित होकर उन्होंने 1986 में ‘लोक स्वास्थ्य परंपरा संवर्ध्दन समिति’ की स्थापना की, जो गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ), मेडिकल कॉलेजों और शोध केंद्रों का सामूहिक नेटवर्क बना।


1993 से लेकर अब तक इस समिति ने काफी कुछ किया है। इसने औषधीय गुणों के वाले भारतीय पौधों का इलेक्ट्रॉनिक डेटाबेस तैयार किया है। जैव विविधता की रक्षा के लिए समिति ने 84 फॉरेस्ट जीन बैंक स्थापित किए हैं। अपने कैंपस में इसने ऐसी 900 प्रजातियों के पौधे उगाए हैं, जिनका वजूद खतरे में है। इसी तरह, इसके कैंपस में औषधीय महत्व वाले 2,700 पौधे भी लगाए गए हैं।


यह संस्था अब तक मुख्य रूप से रिसर्च से जुड़ी रही है। पर अब यह अपने को बहुआयामी बनाने की कवायद में जुट गई है। इसके तहत इसके टीचिंग और बिजनेस के दो नए अवतार देखने को मिलेंगे। टीचिंग का काम शुरू करने के लिए यह 100 बिस्तरों वाला एक शैक्षणिक अस्पताल खोलने जा रही है, जिसका नाम होगा – इंडियन इंस्टिटयूट फॉर आयुर्वेद ऐंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन।


समिति अपने कारोबारी कदम को भी तैयार है। इसके तहत इसने इंडियन हेल्थ सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी बनाई है, जो देश भर में आयुर्वेद और योग से संबंधित स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करेगी। इसके लिए समिति को टाटा ट्रस्ट की ओर से शुरुआती आर्थिक समर्थन भी मिला है।


गौरतलब है कि इस समिति को पहले से भी डेनमार्क सरकार, फोर्ड फाउंडेशन, यूएनडीपी और भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की ओर से आर्थिक मदद हासिल होती रही है। समिति और इसके प्रमुख दर्शन शंकर को नॉर्मन बोरोलॉग पुरस्कार और संयुक्त राष्ट्र के पुरस्कारों समेत कई दूसरे तरह के सम्मान भी हासिल हो चुके हैं।


इस समिति ने परंपरागत भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान को आपस में जोड़ने की भी पहल की है। रसायन शास्त्र और बोयो-एक्टिविटी के इस्तेमाल जरिये संस्था ने यह जानने की कोशिश की है कि कोई फिजिशियन पौधों में किन चीजों की तलाश करता है। दर्शन शंकर कहते हैं – ‘हमारी कोशिश आधुनिक बायो-साइंस (जिसकी प्रकृति संस्थागत है) और आयुर्वेद (जिसका तेवर पवित्रता लिए हुए है) के बीच तालमेल बिठाने की रही है।


हमारे सामने चुनौती यह है कि समग्रता और उसके हिस्से में किस तरह सामंजस्य कायम किया जा सके। हमारा मतलब भारतीय और पश्चिमी या आधुनिक तरीकों में तालमेल बिठाने से है।’दरअसल, दर्शन शंकर ‘मेडिकल बहुलवाद’ के समर्थक हैं, जो उनके मुताबिक भविष्य के हेल्थकेयर की मुख्य विशेषता होगी।


वह मानते हैं कि आने वाले दिनों में दुनिया भर के लोग किसी एक हेल्थ सिस्टम से नहीं, बल्कि एक साथ कई हेल्थ सिस्टम को अपनी सेहत की देखभाल का जरिया बनाएंगे। इस मामले में भारत काफी मजबूत स्थिति में हैं, क्योंकि यहां पहले से ही 5 तरह के हेल्थ सिस्टम को कानूनी मान्यता हासिल है। ये 5 सिस्टम हैं – आयुर्वेद, सिध्द, यूनानी, होमियापैथी और तिब्बती मेडिसिन। इन पांचों के अलावा पश्चिमी एलोपैथी तो सबसे ज्यादा मशहूर है ही।


समिति चाहती है कि वह एक ऐसा रिसर्च सिस्टम विकसित करे, जिसकी बदौलत अलग तरह के हेल्थ नॉलेज सिस्टम के बीच की खाई पाटी जा सके। दर्शन शंकर के मुताबिक, इस मामले में सबसे बड़ा काम यह है कि शास्त्र से साइंस की ओर कैसे जाया जाए। यूं कहें कि परंपरागत हेल्थ सिस्टम की वैज्ञानिक व्याख्या कैसे की जाए।


सैम पित्रोदा का मानना है कि परंपरागत ज्ञान की परख वैज्ञानिक कसौटी पर होनी चाहिए और ऐसी चीजों को सिर्फ इसलिए सही नहीं मान लिया जाना चाहिए, क्योंकि ‘हमारी दादी मां ऐसा कहा करती थीं’।


आखिरकार संस्था के कामकाज की दिशा क्या होगी? इस बारे में दर्शन शंकर कहते हैं – ‘हमारी संस्था परंपरागत ज्ञान पर आधारित हर्बल ड्रिंक, खाद्य पदार्थ और तेल आदि के वाणिज्यिक उत्पादन के लिए तकनीक विकसित करेगी।’ मिसाल के तौर पर संस्था ने पानी को साफ करने के लिए एक उपकरण विकसित किया है, जिसका नाम रखा गया है – जल बंधु।


इस उपकरण के जरिये शून्य लागत पर पानी को साफ किया जा सकता है। संस्था ने अपनी कोशिशों के जरिये 6 अलग-अलग तरह के उपकरण विकसित कर इनके पेटेंट के लिए आवेदन दिए हैं।


ज्यादातर कामयाब एनजीओ के साथ एक समस्या यह होती है कि शुरुआती रहनुमाओं के बाद उन्हें रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं होता। पर लोक स्वास्थ्य परंपरा संवर्ध्दन समिति और खुद दर्शन शंकर ने एक ऐसी संस्थागत व्यवस्था तैयार कर दी है, जिससे आने वाले दिनों में ऐसी किसी तरह की समस्या से समिति को दो-चार होना नहीं पड़ेगा।

First Published - April 29, 2008 | 11:53 PM IST

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