facebookmetapixel
Gold-Silver Price Today: रिकॉर्ड हाई के बाद सोने के दाम में गिरावट, चांदी चमकी; जानें आज के ताजा भावApple ‘Awe dropping’ Event: iPhone 17, iPhone Air और Pro Max के साथ नए Watch और AirPods हुए लॉन्चBSE 500 IT कंपनी दे रही है अब तक का सबसे बड़ा डिविडेंड- जान लें रिकॉर्ड डेटVice President Election Result: 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में चुने गए सीपी राधाकृष्णन, बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिलेनेपाल में सोशल मीडिया बैन से भड़का युवा आंदोलन, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफापंजाब-हिमाचल बाढ़ त्रासदी: पीएम मोदी ने किया 3,100 करोड़ रुपये की मदद का ऐलाननेपाल में हिंसक प्रदर्शनों के बीच भारत ने नागरिकों को यात्रा से रोका, काठमांडू की दर्जनों उड़ानें रद्दUjjivan SFB का शेयर 7.4% बढ़ा, वित्त वर्ष 2030 के लिए मजबूत रणनीतिStock Market Update: सेंसेक्स 400 अंक ऊपर, निफ्टी 25,000 के पास; IT इंडेक्स चमका, ऑटो सेक्टर कमजोरGST कटौती से ऑटो सेक्टर को बड़ा फायदा, बाजार पूंजीकरण 3 लाख करोड़ बढ़ा

चुनौती से भरा होगा तेज वृद्धि को बरकरार रखना

भारत को 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब किस्मत हमारा साथ दे और उसके साथ-साथ हमारे पास स्पष्ट रूप से रेखांकित योजनाएं और नीतियां हों।

Last Updated- March 27, 2024 | 9:03 PM IST
चुनौती से भरा होगा तेज वृद्धि को बरकरार रखना, Sustaining rapid growth is challenging

हाल के महीनों में हमें भारत के 2047 तक विकसित देश बनने के बारे में काफी कुछ सुनने को मिला। यह निश्चित तौर पर बहुत महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है जो न केवल आर्थिक विकास का लक्ष्य सामने रखता है बल्कि समग्र सामाजिक विकास के कई अन्य पहलू भी इससे जुड़े हुए हैं। आर्थिक विकास के संकीर्ण पहलू से भी सोचें तो इस बात को लेकर काफी बहस और अस्पष्टता है कि विकसित अर्थव्यवस्था कैसे बनती है।

कुछ लोगों ने इसका अर्थ उच्च आय वाले देश से निकाला जैसा कि विश्व बैंक विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय के आधार पर निर्धारित करता है। इस नजरिये से इसका अर्थ होगा ऐसा देश जो मौजूदा मूल्य और विनिमय दर पर 14,000 डॉलर की न्यूनतम प्रति व्यक्ति आय वाला हो।

यह समझना और इस बात की सराहना करना आवश्यक है कि वर्तमान समय के विकासशील देशों में से कई देशों के लिए मौजूदा स्तर से उच्च आय वाले देश में रूपांतरण बहुत लंबा और कठिन होने वाला है। हां, यह राह आसान हो सकती है अगर उनके पास तेल या महत्त्वपूर्ण खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधन हों।

इतिहास भी यही बताता है। सन 1950 के बाद के 74 वर्षों में पश्चिम एशिया के तेल की प्रचुरता वाले कुछ देशों को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम देश ऐसा बदलाव हासिल कर पाए हैं। इनमें लैटिन अमेरिका के चिली और अर्जेन्टीना जैसे कुछ देश और दक्षिणी यूरोप के ग्रीस और पुर्तगाल जैसे देश शामिल हैं।

ये देश 1950 के दशक में ही उच्च आय वाला स्तर पाने के करीब थे। हां, पूर्वी एशिया के देश मसलन दक्षिण कोरिया, ताइवान, सिंगापुर, मलेशिया और चीन भी इसमें शामिल हैं। सही मायनों में इस अंतिम श्रेणी ने ही दो-तीन दशकों के दौरान तेज और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि का उदाहरण प्रस्तुत किया है। अन्य विकासशील देशों को भी इसका अनुकरण करने की आवश्यकता है।

गरीब देशों को तेज आर्थिक वृद्धि हासिल करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उनका अहसास मुझे सबसे पहले 1970 के दशक में विश्व बैंक में एक पेशेवर अर्थशास्त्री के रूप में अपने करियर के शुरुआती दौर में हुआ था। मेरा पहला आर्थिक मिशन 1971 में सूडान का था। वहां बिताए छह सप्ताह में मैंने पाया कि वहां पूंजी, कौशल, तकनीक, उद्यमिता और यहां तक कि शांति और नागरिक व्यवस्था तक की कमी है। सूडान में नीली और सफेद नील नदियां बहती हैं और वे राजधानी खार्तूम में मिलती हैं। इस बात ने आशावाद जगाया कि सूडान एक ऐसा देश है जिसमें दीर्घकालिक वृद्धि संभावना थी।

बहरहाल 50 वर्ष बाद ऐसा लगता है कि ऐसा नहीं हो सका क्योंकि वहां दशकों तक हिंसक गृह युद्ध छिड़ा रहा और उसके बाद दक्षिणी सूडान के अलग होने से भी उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। 2023 में सूडान की प्रति व्यक्ति आय के 500 डॉलर से कुछ अधिक होने की उम्मीद थी और वह दुनिया के सबसे कम आय वाले देशों में से एक था। कुछ दिन पहले संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी थी कि आने वाले कुछ महीनों में करीब 50 लाख लोग खाद्य असुरक्षा के शिकार हो सकते हैं।

अगले वर्ष मैं बैंक के मिशन के साथ फेडरल रिपब्लिक ऑफ यूगोस्लाविया गया। जब हम राजधानी बेलग्रेड, जाग्रेब, ल्युबियाना और सरायेवो जैसी समृद्ध प्रांतीय राजधानियों में घूम रहे थे तब हम वहां की विकसित शहरी अधोसंरचना को देखकर चकित थे। वहां लोगों का जीवन स्तर भी काफी बेहतर था। सन 1970 के दशक के आखिर तक वह यूरोप के सबसे तेजी से विकसित होते देशों में शुमार था।

इस बीच वहां के आर्थिक प्रतिष्ठान में बदलाव आया और समाजवादी योजना के बजाय बाजार आधारित समाजवाद को अपनाया गया। यह बदलाव वहां के राष्ट्रीय नायक रहे मार्शल जोसिप ब्रॉज टीटो के सामने हुआ। सन 1980 में उनके निधन के बाद देश बंट गया क्योंकि वहां के गणराज्यों में कड़ी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिली।

इसके साथ ही वहां हिंसक जातीय संघर्ष आरंभ हो गया और 1990 के दशक के युद्ध के हालात तैयार हो गए। वहां के प्रांतीय गणराज्य सर्बिया, क्रोएशिया, स्लोवेनिया, मोंटेनेग्रो, बोस्निया, मैसेडोनिया और कोसोवो सभी देश बन गए। आज ये सभी उच्च आय वाली श्रेणी में हैं लेकिन यूगोस्लाविया का अस्तित्व नहीं है।

सन 1970 के दशक के मध्य में मैंने दो वर्षों तक तंजानिया मे काम किया जो पूर्वी अफ्रीका के सबसे गरीब देशों में से एक है। वहां समाजवाद और ग्रामीण अर्द्ध समग्रता का प्रयोग चल रहा था। पचास वर्ष बाद कई उतार-चढ़ाव के पश्चात 2023 में उसकी प्रति व्यक्ति आय अनुमानत: 1,300 डॉलर थी जो निम्न मध्य आय वाली श्रेणी में निचले स्तर पर है।

तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो सन 1950 से भारत की विकास यात्रा बेहतर रही है। सन 1980 के दशक तक के तीन दशकों में जब देश समाजवाद के साथ प्रयोग कर रहा था और विकास की दृष्टि अंतर्मुंखी थी तब आर्थिक वृद्धि धीमी थी और वह औसतन चार फीसदी से भी कम था। सन 1990 के दशक के आरंभिक सुधारों के बाद वृद्धि ने गति पकड़ी और विगत 30 वर्षों में औसतन छह फीसदी से अधिक वृद्धि हासिल हुई।

2002-03 से 2010-11 के बीच करीब आठ फीसदी की दर से वृद्धि हासिल हुई। परंतु जैसा कि मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने हाल ही में जोर देकर कहा भी, ऐसी वृद्धि टिकाऊ नहीं थी। बहरहाल अगर हमें 2047 तक आर्थिक क्षेत्र में विकसित देश का दर्जा पाना है तो ऐसा विकास हासिल करना होगा।

रिजर्व बैंक के एक अध्ययन समेत कई अध्ययन बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था को अगर उच्च आय वाले देशों के अनुरूप 14,000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय का लक्ष्य हासिल करना है तो उसे 2022 से 2047 के बीच 8 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करनी होगी। अगर अगले 10 वर्षों तक 8 फीसदी की दर बरकरार रखी जा सकी तो हमारी प्रति व्यक्ति आय इंडोनेशिया की आय के मौजूदा स्तर तक पहुंच जाएगी।

अगले 10 वर्षों के बाद हम ब्राजील की आय का स्तर पार कर जाएंगे और 2047 तक 14,000 डॉलर का आंकड़ा भी छू लेंगे। यह तो हुई गणित की बात। अर्थव्यवस्था की वास्तविक गति वैश्विक आर्थिक और भूराजनीतिक संदर्भों, तकनीकी प्रगति और जलवायु परिवर्तन, जल संकट, ऊर्जा की उपलब्धता जैसे कारकों पर बहुत हद तक निर्भर करेगी। सबसे बढ़कर दीर्घावधि में हमारा आर्थिक प्रदर्शन हमारी आर्थिक और सामाजिक नीतियों की गुणवत्ता और मजबूती पर निर्भर करेगा।

इसमें राजकोषीय और वित्तीय प्रबंधन, विदेश व्यापार, शिक्षा और स्वास्थ्य, रोजगार, उद्योग, कृषि, अधोसंरचना, शहरीकरण तथा कानून व्यवस्था आदि की अहम भूमिका होगी। इतिहास बताता है कि टिकाऊ रूप से तेज आर्थिक विकास एक जटिल काम है और उसे हासिल करने में किस्मत और हालात की भी अहम भूमिका होती है। इसी परिदृश्य में हमें सरकार की दीर्घकालिक योजनाओं और नीतियों की प्रतीक्षा करनी होगी जिनकी बदौलत वह 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

(लेखक इक्रियर के मानद प्राध्यापक और भारत सरकार के पूर्व मुख्य आ​र्थिक सलाहकार हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)

First Published - March 27, 2024 | 9:03 PM IST

संबंधित पोस्ट