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कंपनियों की कम कर दर और राजस्व पर असर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 4:37 AM IST

हाल के वर्षों में केंद्र सरकार का कर संग्रह चिंता का विषय रहा है। महामारी आने के पहले ही कर संग्रह में मंदी के संकेत नजर आने लगे थे।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के पांच वर्ष के कार्यकाल में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में केंद्र की सकल कर राजस्व हिस्सेदारी 2014-15 के 10 फीसदी से मामूली बढ़कर 2018-19 में मात्र 11 फीसदी हुई। परंतु 2019-20 में यानी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष में और कोविड-19 के पहले जीडीपी में सकल कर हिस्सेदारी घटकर 9.88 फीसदी रह गई। लॉकडाउन और कोविड-19 के कारण 2020-21 में सकल कर राजस्व घटकर जीडीपी का 9.7 फीसदी रह गया। गत सात वर्षों में से चार वर्षों में कराधान में उतार-चढ़ाव का स्तर एक से कम रहा जबकि शेष तीन वर्षों में यह 1.5 से अधिक रहा।
कॉर्पोरेशन कर राजस्व के रुझान अधिक चिंतित करने वाले हैं। इसका प्रदर्शन समग्र कर संग्रह से खराब रहा। मसलन 2014-15 में कॉर्पोरेशन कर संग्रह केंद्र के सकल कर राजस्व का 34 फीसदी हुआ करता था। सन 2019-20 में यह घटकर 28 फीसदी और 2020-21 में 23 फीसदी रह गया।
कॉपोरेशन कर राजस्व की वार्षिक वृद्घि में कुछ राहत मिल सकती है। इन सात वर्षों में से दो में यह दो अंकों में बढ़ा। इसमें 2017-18 में 18 फीसदी और 2018-19 में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। तीन वर्षों तक यह 6 से 9 फीसदी बढ़ा जबकि शेष दो वर्षों (2019-20 और 2020-21) में इसमें गिरावट आई। चिंता की बात यह है कि जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी हर वर्ष घटते हुए 2014-15 में जीडीपी के 3.4 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 2.28 फीसदी रह गई।
एक वजह यह हो सकती है कि शायद भारतीय कंपनियों का मुनाफा अर्थव्यवस्था की तुलना में बेहतर न रहा हो। बिज़नेस स्टैंडर्ड रिसर्च ब्यूरो के विश्लेषण के मुताबिक बीएसई 500 कंपनियों का संयुक्त मुनाफा घटकर जीडीपी का 2.31 फीसदी रह गया जो अन्य देशों से काफी कम रहा। इस अवधि में भारतीय कंपनियों के इसी समूह का शुद्घ मुनाफा डॉलर के संदर्भ में पांच वर्ष में 15 फीसदी कम हो गया। इसके विपरीत ब्रिटेन को छोड़कर अन्य देशों में दो अंकों में वृद्घि हुई।
विडंबना यह है कि इस अवधि में कारोबारी जगत के बड़े हिस्से को कुछ शर्तों पर कम कर दर की सुविधा मिली। बड़े पैमाने पर कंपनियां कम दर पर कर चुका रही थीं जिसका बुरा असर समग्र कॉर्पोरेशन कर राजस्व पर पड़ा।
उदाहरण के लिए 2016-17 में मार्च 2016 के बाद गठित नई विनिर्माण कंपनियों को यह विकल्प दिया गया कि वे 25 फीसदी कर दर के अलावा अधिभार और उपकर (30 फीसदी कर और अधिभार की जगह) चुकाएं। ऐसा तभी किया जा सकता था जब मुनाफे से संबद्घ या निवेश से संबद्घ रियायत का लाभ अथवा निवेश भत्ता न लिया जाए। इसके अलावा 5 करोड़ रुपये से कम कारोबार वाली कंपनियों के लिए कर दर को घटाकर 29 फीसदी किया गया। इसके साथ अधिभार और उपकर था।
सन 2017-18 में 50 करोड़ रुपये तक के सालाना कारोबार वाले छोटे और मझोले उद्यमों के लिए कर दर घटाकर 25 फीसदी की गई। यानी कर रिटर्न दाखिल करने वाली 96 फीसदी कंपनियां 25 फीसदी कर, अधिभार और उपकर वाली रियायती व्यवस्था में आ गईं। सरकार के मुताबिक इसके कारण 7,200 करोड़ रुपये का सालाना राजस्व नुकसान हुआ जो उस वर्ष संग्रहीत कुल कॉर्पोरेशन कर के 2 फीसदी से भी कम था। 2018-19 में सरकार ने 25 फीसदी कर दर की सुविधा 250 करोड़ रुपये तक के कारोबार वाली सभी कंपनियों तक बढ़ा दिया। इससे सरकार को 7,000 करोड़ रुपये तक के कर राजस्व का नुकसान हुआ।
इन बदलावों से भारतीय कंपनियों का कर बोझ काफी कम हुआ। 2014-15 में करीब 5.80 लाख कंपनियों में से 1,88,000 भारतीय कंपनियों ने 30 फीसदी से अधिक की प्रभावी दर से कर चुकाया और यह उस वर्ष केंद्र द्वारा संग्रहीत कुल कॉर्पोरेशन कर का 60 फीसदी था। सन 2018-19 में विभिन्न कर रियायतों के कारण 8.85 लाख कंपनियों में से केवल 85,000 ने 30 फीसदी से अधिक की दर से कर चुकाया जो केंद्र सरकार के कुल कॉर्पोरेशन कर संग्रह का 50 फीसदी था।
इसके विपरीत 2014-15 में केवल 24,000 कंपनियों ने 25-30 फीसदी की प्रभावी दर से कर चुकाया था और यह सरकार के कॉर्पोरेशन कर संग्रह का केवल 16 फीसदी था। अन्य 15,000 कंपनियों ने 20-25 फीसदी की दर से कर चुकाया लेकिन कॉर्पोरेशन कर राजस्व में उनका योगदान केवल 10 फीसदी था। सन 2018-19 तक ऐसी कंपनियों की तादाद तेजी से बढ़ी और उस वर्ष 25-30 फीसदी के दायरे में कर चुकाने वाली कंपनियों की तादाद 1,84,000 रही लेकिन कॉर्पोरेशन कर में उनकी हिस्सेदारी 19 फीसदी रही। 20 से 25 फीसदी की दर से कर चुकाने वाली कंपनियों की तादाद बढ़कर 46,000 हो गई और कुल कॉर्पोरेशन कर में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 23 फीसदी हो गई।
यदि संक्षेप में कहें तो देश के कॉर्पोरेशन कर राजस्व की कहानी यही है कि कैसे अधिक से अधिक कंपनियां कर दर पर कर चुका रही हैं। परिणामस्वरूप कॉर्पोरेशन कर संग्रह में कंपनियों की हिस्सेदारी लगातार कम हुई है। यही वजह है कि गत सात वर्षों में कॉर्पोरेशन कर संग्रह में उतार-चढ़ाव आया।
सन 2019-20 और 2020-21 के सारे आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। परंतु 2014-15 और 2018-19 में बदलाव नजर आया है वह बाद के वर्षों में अधिक स्पष्ट हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने 2019-20 में कंपनियों के लिए दो और रियायतों की घोषणा की। 2019-20 में सरकार ने 25 फीसदी कर दर की रियायत उन सभी कंपनियों के लिए कर दी जिनका कारोबार 400 करोड़ रुपये तक था। इस तरह कर रिटर्न दाखिल करने वाली 99.3 प्रतिशत कंपनियां दायरे में आ गईं। सितंबर 2019 में उन सभी कंपनियों को जो किसी तरह की रियायत का लाभ नहीं ले रही थीं, यह इजाजत  दी गई कि उनसे 25 फीसदी की दर से कर वसूल किया जाए। इसमें 10 फीसदी अधिभार और 4 फीसदी उपकर शामिल था। एक अक्टूबर 2019 के बाद परिचालन शुरू करने वाली विनिर्माण कंपनियों पर 17 फीसदी कर लगना था। इन सभी रियायतों ने 2019-20 और 2020-21 में सरकार के कॉर्पोरेशन कर संग्रह पर असर डाला। रियायतें समाप्त करने से जो बचत हुई वह अब तक बहुत कम रही है। कंपनियों को कर रियायत का राजस्व पर असर 2019-20 में 90,000 करोड़ डॉलर रहा जबकि 2018-19 में यह 1.08 लाख करोड़ रुपये था। स्पष्ट है कि इस मोर्चे पर सरकार की चिंता जल्दी समाप्त होती नहीं दिखती। बल्कि आने वाले वर्षों में हालात और खराब होंगे। स्थितियां तभी सुधरेंगी जब वृद्धि में स्थायी सुधार हो और कम कर दर के कारण होने वाले नुकसान की भलीभांति भरपाई होती है।

First Published : May 20, 2021 | 8:56 PM IST