सन 2019 में संसद में संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को रद्द करके जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने तथा राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने की घोषणा करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि क्षेत्र में शांति स्थापित होगी और निर्वाचन आयोग को जैसे ही उचित लगेगा, वहां चुनाव कराए जाएंगे। उस बड़े घटनाक्रम को दो वर्ष से कुछ अधिक समय बीता है और तब से इस क्षेत्र में उनका जो पहला दौरा हुआ है वह एक तरह की सुरक्षा समीक्षा है क्योंकि क्षेत्र में विभिन्न धर्मों के 11 नागरिकों की सांप्रदायिक हत्या हुई है और राजौरी-पुंछ सेक्टर में आतंकियों के लिए लंबे समय से चल रही सैन्य कार्रवाइयों में अब तक नौ जवान अपनी जान गंवा चुके हैं।
इस क्षेत्र में हिंसा और असुरक्षा का यह भंवर जाना-पहचाना है और अब बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों के यहां से वापस जाने से पूरे मामले में एक नया पहलू जुड़ गया है। लेकिन इससे यह सवाल उठा कि क्या राज्य के दर्जे में बदलाव लाने (उस दौरान संचार सुविधाओं पर सबसे कठोर प्रतिबंध लगे, न्यायेतर ढंग से धरपकड़ हुई और कफ्र्यू लगे तथा भू कानूनों में अहम बदलाव हुए) से राज्य में कुछ अहम परिवर्तन हुए भी या नहीं। इसके बजाय अफगानिस्तान में चल रही लड़ाई से मुक्त हुए जिहादी लड़ाके आशंकाओं से भी कहीं अधिक तेजी से यहां आ गए हैं और भारतीयों की बेधड़क हत्याएं कर रहे हैं। ये तमाम बातें शाह की उन बातों से एकदम विपरीत हैं जो उन्होंने गत सप्ताहांत जेऐंडके यूथ क्लब के सदस्यों से कहीं। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के समापन से घाटी में आतंकवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार का अंत हुआ है।
यह वांछित भविष्य एक दुष्चक्र में फंस गया है। क्षेत्र में राजनीतिक प्रक्रिया शुरू करने और चुनाव कराने के लिए परिसीमन कराना आवश्यक है क्योंकि इस क्षेत्र का पुनर्गठन किया गया है। यह प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए थी। लेकिन निरंतर आतंकी हमलों ने इस कवायद को रोक दिया। स्थानीय लोगों में भी इसे लेकर कुछ हद तक अशांति थी। बल्कि चुनावों में देरी और वादे के मुताबिक जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा लौटाने में लगने वाला समय मोदी सरकार के उस स्वप्न को बाधित कर सकता है जिसके तहत राज्य को निवेश के बड़े केंद्र के रूप में बदलना है। राज्य के दर्जे में बदलाव के दो महीने बाद अक्टूबर 2019 में होने वाले निवेश सम्मेलन को टालना पड़ा था क्योंकि सुरक्षा को लेकर हालात स्थिर नहीं थे। आखिरकार उसे नवंबर 2020 में एक वेबिनार के जरिये आयोजित किया गया। केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन के मुताबिक भूमि कानूनों में बदलाव के बाद अब सभी भारतीय वहां जमीन खरीद सकते हैं। वहां 24,800 करोड़ रुपये की औद्योगिक विकास योजना की घोषणा की गई जिससे चलते दूरसंचार, साइबर ऑप्टिक्स, होजरी आदि क्षेत्रों में बड़ी कंपनियों ने 23,000 करोड़ रुपये का निवेश किया। कहा गया कि इसमें जापान और दुबई के निवेशकों ने रुचि ली है। जिंदल स्टील को भी प्रदेश के दक्षिणी इलाके में जमीन आवंटित की गई है।
यह तस्वीर प्रोत्साहित करती है लेकिन ये सवाल तो उठेंगे कि क्या इन इरादों को रोजगार उत्पन्न करने वाली परियोजनाओं में बदला जा सकता है वह भी तब जबकि स्थानीय लोग आतंकियों के हाथों मारे जा रहे हैं और भयभीत प्रवासी श्रमिक भागने पर विवश हैं। यह नतीजा निकालना मुश्किल है कि तमाम नीतिगत हस्तक्षेप के बाद भी जम्मू कश्मीर में हालात जस के तस हैं। अनुच्छेद 370 और 35ए को रद्द करना कानूनन भले इस संकटग्रस्त क्षेत्र को शेष भारत से जोड़ता हो लेकिन इस प्रक्रिया में स्थानीय जनता का मशविरा शामिल नहीं था। इसलिए क्षेत्र में शांति और समृद्धि की आशा अभी दूर की कौड़ी रहेगी।