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कोविड टीकाकरण शुरू होने के बाद न्याय क्षेत्र का परिदृश्य?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:26 AM IST

कोरोनावायरस के कारण जो अनिश्चितता पैदा हुई, उसके चलते महीनों तक अर्थशास्त्रियों, चुनाव नतीजों का पूर्वानुमान जताने वालों और भविष्य बताने वालों को खूब तवज्जो मिली। यह बात तो निश्चित है कि निकट भविष्य में हालात सुधरने वाले नहीं हैं और उनकी मांग बरकरार रहेगी। इस संदर्भ में न्यायपालिका की बात करें तो वह अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में रहेगी। यह अच्छा होगा या बुरा, वह बाद की बात है। उदाहरण के लिए यह निश्चित है कि तीन महीनों में सर्वोच्च न्यायालय को नया मुख्य न्यायाधीश मिलेगा और शायद एक ऐसा दौर आएगा जहां परेशानियां कम होंगी।
लॉकडाउन के 11 महीने बाद धीरे-धीरे अदालतों में भौतिक रूप से कामकाज आरंभ हो जाएगा। मुंबई और उत्तराखंड जैसे कुछ उच्च न्यायालय पहले ही इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। अधिकांश अदालतों ने आभासी सुनवाई के साथ काम करना सीख लिया है। हालांकि पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीश सुनवाई में तकनीकी बाधाओं से इतने नाराज हुए कि उन्होंने अपने आदेश में भी इसे दर्ज किया।
गत वर्ष मार्च में लॉकडाउन के बाद विधिक पेशे के एक बड़े तबके और वादियों ने यह पाया कि आभासी अदालतें लाभदायक हैं और उन्हें व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। अधिवक्ता एक ही दिन दुनिया की कई अदालतों में बहस कर सकते हैं और वादियों को समय और पैसा खर्च करके अदालतों में नहीं पहुंचना होता है। ऐसे में एक सुरक्षित पूर्वानुमान यह है कि सामान्य अदालतों के साथ-साथ आभासी अदालतें भी बरकरार रहेंगी।
अदालतों और पंचाटों ने महामारी के दौरान यथास्थिति बरकरार रखने और स्थगन आदेश जैसे अंतरिम आदेश देना जारी रखा। उन्होंने प्रतिबंधात्मक नियमों को भी शिथिल किया था। अब वे धीरे-धीरे मानकों को ऊंचा कर रहे हैं, जैसा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गत सप्ताह किया। दूसरी ओर जिन लोगों को नियमों की शिथिलता का लाभ मिला उनके इर्दगिर्द घेरा अब तंग होगा।
अतीत के प्रदर्शन पर नजर डालें तो यह माना जा सकता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट न्यायपालिका के लिए बहुत मामूली खुशियां लेकर आएगा। न्यायाधीश लंबे समय से यह कहते रहे हैं कि अदालतों और न्यायालयों का बुनियादी ढांचा फंड की कमी से जूझ रहा है। न्यायपालिका को दशकों से 2 फीसदी की हिस्सेदारी मिल रही है। चूंकि वीडियो कॉन्फ्रेंस और लाइव स्ट्रीमिंग में अधिक निवेश की आवश्यकता है इसलिए हालात का खराब से खराब होना तय है। ऐसे में एक और बात बिल्कुल तय है कि सैकड़ों कैदी बिना जमानत या परीक्षण के जेलों में बंद रहेंगे। देश की जेलों में क्षमता से 14 प्रतिशत अधिक कैदी बंद हैं। हर तीन में से दो कैदी परीक्षणाधीन हैं। इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय का वह हालिया आदेश भी फलीभूत नहीं हो पाएगा जिसमें उसने कहा है कि सांसदों और विधायकों (कुल 4,442) के ऊपर चल रहे आपराधिक प्रकरणों को छह महीने में निपटाया जाए। इसके अलावा यह अनुमान भी उचित ही जताया जा सकता है कि लॉकडाउन के महीनों के दौरान सामने नहीं आए मामले अब तेजी से उभरेंगे।
इस बात की काफी संभावना है कि सर्वोच्च न्यायालय में सरकार को जीत मिलने का सिलसिला जारी रहेगा। अयोध्या, आधार, जम्मू कश्मीर में संचार सेवाओं को ठप करना और सेंट्रल विस्टा परियोजना आदि इस बात का संकेत हैं। अनुच्छेद 370 का प्रश्न, चुनावी बॉन्ड और नोटबंदी आदि मामले भी ऐसा ही संकेत देते हैं। देश के इतिहास मेंं इससे पहले कभी न्यायाधीशों से इतने संवेदनशील मामलों का निर्णय करने को नहीं कहा गया। मिसाल के तौर पर कश्मीर (140 याचिकाएं लंबित), नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, आरक्षण में आरक्षण, लव जिहाद आदि इसके उदाहरण हैं। उच्च न्यायालयों के समक्ष सुर्खियों वाले मामलों का पेश होना जारी रहेगा। न्यायिक निर्णयों में मानवाधिकारों को लेकर बातें लंबी होती जाएंगी, हालांकि याचिकाओं में राहत मिलने की आशा कम है।
सरकार को मिलने वाले न्यायिक लाभ ने एक नया रुझान शुरू किया है जिसमें सामान्य लोगों ने न्यायाधीशों के बारे में अपनी राय बनानी शुरू कर दी है। इसका असर न्यायपालिका को लेकर लोगों के मन में बनी पारंपरिक छवि और आदर को नुकसान पहुंचाया है। इससे पहले न्यायाधीशों की आलोचना कानूनविदों और ऐसे टीकाकारों तक सीमित थी जो भाषा के इस्तेमाल में सावधानी बरतते थे। अब तो कार्टून बनाने वाले और ट्विटर पर भी उनकी आलोचना शुरू हो गई है। आने वाले सप्ताह में उनमें से कुछ को न्यायिक अवमानना के लिए न्यायालय में हाजिर भी होना पड़ेगा। आशा करनी चाहिए कि न्यायाधीश और महान्यायवादी हंसी-मजाक को लेकर भी लक्ष्मण रेखा तय करेंगे।
कुल मिलाकर देखा जाए तो देश उच्च न्यायपालिका में बदलाव की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहा है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बनने के वरीयता क्रम में शीर्ष पर मौजूद न्यायमूर्ति एन वी रमण ने हाल ही में कहा कि एक न्यायमूर्ति को निर्भीक, साहसी और दबाव का सामना करने में सक्षम होना चाहिए। अब यह उन निर्भर होगा कि वे जनता के मन में बनी गलत धारणाओं को खत्म करें।  जनता चाहती है कि सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर महान बने।

First Published : January 21, 2021 | 11:45 PM IST