इन दिनों बैंकर समुदाय प्रसन्न है। वर्षों बाद बैंकिंग क्षेत्र इतनी बेहतर स्थिति में है। भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व में सरकारी बैंकों ने सितंबर तिमाही में 17,132 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया जो अब तक का सर्वोच्च मुनाफा है। निजी बैंकों की शुद्ध आय भी 36,768 करोड़ रुपये के साथ उच्चतम स्तर पर रही।
दिसंबर 2015 तिमाही में जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा की शुरुआत की थी ताकि उनकी बैलेंस शीट में सुधार किया जा सके, तब से यह निजी और सरकारी बैंकों की सबसे अच्छी तिमाही साबित हुई है। दिसंबर 2015 के बाद बैंकों की आय पर नजर डालने की एक और वजह है। 2015 में दो नए बैंक सामने आये- बंधन बैंक और आईडीएफसी फस्र्ट बैंक। तब से बैंकों की तादाद नहीं बदली है और इसलिए गत छह वर्ष के आंकड़ों की तुलना संभव है। निजी बैंकों के समूह को कम से कम एक तिमाही में शुद्ध नुकसान हुआ जबकि दिसंबर 2015 के बाद से निजी बैंकों को कम से कम 11 तिमाहियों में घाटा हुआ। पूरे बैंकिंग उद्योग को पांच बार शुद्ध नुकसान हुआ। अधिकतम 41,630 करोड़ रुपय का नुकसान मार्च 2018 में हुआ जब सरकारी बैंकों का नुकसान 44,010 करोड़ रुपये था।
सितंबर तिमाही में सभी सरकारी बैंकों को शुद्ध लाभ हुआ। इससे पहले जून तिमाही में भी ऐसा ही हुआ था। निजी बैंकों में दो अपवाद हैं: साउथ इंडियन बैंक को 187 करोड़ रुपये का घाटा हुआ जबकि बंधन बैंक को 3,008 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कुल मिलाकर सरकारी बैंकों का शुद्ध लाभ 94 फीसदी बढ़ा जबकि निजी बैंकों में यह केवल 4 फीसदी रहा। शुद्ध ब्याज आय की बात करें तो सरकारी बैंकों में यह आय केवल 2.33 फीसदी बढ़ी जबकि निजी बैंकों में 10.64 फीसदी। अन्य आय अर्थात ट्रेजरी, शुल्क या बकाया ऋण से वसूली आदि सितंबर में बढ़े लेकिन उससे विशुद्ध मुनाफे में भारी इजाफे को उचित नहीं ठहराया जा सकता। निजी बैंकों की अन्य आय करीब 19 फीसदी तथा सरकारी बैंकों की 22.63 फीसदी बढ़ी।
बैकों की ब्याज आय तथा अन्य आय में कोई एकरूपता नहीं है क्योंकि ऋण वृद्धि तथा बकाया कर्ज की वसूली में एकरूपता नहीं है। आईडीएफसी फस्र्ट बैंक की शुद्ध ब्याज आय 25 प्रतिशत बढ़ी, आईसीआईसीआई बैंक भी लगभग इसी स्तर पर रहा। सरकारी बैंकों में पंजाब नैशनल बैंक की शुद्ध ब्याज आय करीब 25 फीसदी गिरी और बैंक ऑफ इंडिया की शुद्ध आय करीब 14 फीसदी कम हुई। स्टेट बैंक की शुद्ध ब्याज आय 10.65 फीसदी और एचडीएफसी बैंक की 12 फीसदी बढ़ी। आईडीएफसी फस्र्ट बैंक की ऋण वृद्धि 13.65 फीसदी रही जबकि आईसीआईसीआई बैंक की 17.21 फीसदी। इसके विपरीत पंजाब नैशनल बैंक तथा बैंक ऑफ इंडिया की ऋण वृद्धि 2.5 फीसदी से कुछ अधिक रही। स्टेट बैंक की ऋण वृद्धि 6 फीसदी से अधिक रही और एचडीएफसी बैंक की 15.5 फीसदी के इर्दगिर्द रही। बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने सरकारी बैंकों में सर्वाधिक 11.44 फीसदी की ऋण वृद्धि दर्शाई जबकि शुद्ध ब्याज आय के मामले में भी वह करीब 34 फीसदी के साथ सभी बैंकों में अव्वल रहा।
जब शुद्ध ब्याज आय तथा अन्य आय में ज्यादा वृद्धि नहीं नजर आई तो शुद्ध मुनाफा इतना कैसे बढ़ गया? इसके लिए उनके परिचालन मुनाफे पर नजर डालनी होगी। कुछ बैंकों के परिचालन मुनाफे में गिरावट आई है। निजी बैंकों का परिचालन मुनाफा 5.9 फीसदी बढ़ा लेकिन सरकारी बैंकों के परिचालन मुनाफे में 8 फीसदी की कमी आई।
मुनाफे में वृद्धि का एक प्रमुख वाहक यह भी है कि प्रॉविजन और आकस्मिकता निधि में तेज गिरावट आई। सरकारी बैंकों में यह 41 फीसदी घटा तथा निजी बैंकों में 9 फीसदी बढ़ा। कुल मिलाकर 39,970 करोड़ रुपये की प्रॉविजनिंग हुई जो जून 2017 तिमाही के 37,181 करोड़ रुपये के बाद न्यूनतम है। सबसे अधिक प्रॉविजनिंग तथा आकस्मिकता मार्च 2018 में हुई-123,125 करोड़ रुपये की। उक्त तिमाही में इस उद्योग को 41,630 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। बंधन बैंक ने सर्वाधिक 5,573 करोड़ रुपये की प्रॉविजनिंग की जबकि एचडीएफसी बैंक (3,935 करोड़ रुपये), यूनियन बैंक (3,724 करोड़ रुपये), केनरा बैंक (3,360) करोड़ रुपये और पंजाब नैशनल बैंक ने 3,261 करोड़ रुपये की प्रॉविजनिंग की।
अधिकांश बैंक अब फंसे हुए कर्ज के लिए कम राशि किनारे करने की स्थिति में हैं क्योंकि फंसा कर्ज कम हो रहा है। सभी सरकारी बैंकों में इस राशि यानी प्रॉविजन कवरेज का अनुपात 80 प्रतिशत है। यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र तथाा इंडियन ओवरसीज में यह 90 प्रतिशत से अधिक है। स्टेट बैंक का प्रॉविजन कवरेज अनुपात करीब 88 प्रतिशत है। निजी बैंकों में आईडीबीआई में यह 97 प्रतिशत है। हर बैंक सितंबर तिमाही में सकल और शुद्ध गैर निष्पादित परिसंपत्ति को कम करने में कामयाब रहा। बंधन बैंक जरूर अपवाद है। उसका सकल एनपीए एक वर्ष पहले के 1.18 फीसदी से बढ़कर 10.82 फीसदी हो गया।
आईडीबीआई बैंक का एनपीए अभी भी 20.92 फीसदी के साथ अधिकतम है लेकिन प्रॉविजनिंग के बाद यह केवल 1.62 फीसदी रह गया है। एचडीएफसी और आईसीआईसीआई बैंक दोनों का एनपीए एक फीसदी से भी कम है। सरकारी बैंकों में स्टेट बैंक का सकल एनपीए सबसे कम 4.9 फीसदी है जबकि केनरा बैंक का सबसे अधिक 15.52 फीसदी। प्रॉविजनिंग के बाद स्टेट बैंक में यह 1.52 फीसदी जबकि पंजाब नैशनल बैंक में 5.49 फीसदी रह गया। क्या बैंकों के बुरे दिन बीत गए? क्या सितंबर तिमाही की आय को सच माना जाए? बैंकों के अच्छे दिन के अनुमान अगली तिमाहियों में ऋण में बेहतर वृद्धि तथा कारोबारी जगत की ओर से निवेश के आसार पर टिके हैं। हमें प्रतीक्षा करनी होगी। आरबीआई को लगता है कि कुछ बैंक खराब खातों को केवल ब्याज बकाया के भुगतान पर अच्छा बता रहे हैं। फंसे कर्ज को मानक संपत्ति तभी माना जाना चाहिए जबकि कर्ज लेने वाला मूल धन और ब्याज का पूरा बकाया चुका दे। आशा करें कि इस दिशा में जल्दी सुधार होगा।
