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विवाद से विश्वास के बजाय वैकल्पिक उपाय पर दें जोर

Last Updated- December 12, 2022 | 10:51 AM IST

केंद्रीय वित्त मंत्रालय अपनी कर विवाद निस्तारण योजना विवाद से विश्वास की सफलता को लेकर बहुत उत्सुक है। इस वर्ष शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य था प्रत्यक्ष कर चुकाने वालों के सरकार के साथ विवाद को समाप्त करना। इसके तहत वे विवादित कर राशि चुका सकते थे और उनका ब्याज और जुर्माना माफ किया जाता तथा उनको अभियोजन से राहत मिलती।
केवल उन्हीं कर विवादों को इस योजना का लाभ मिलना है जिनके खिलाफ 31 जनवरी, 2020 या उससे पहले अपील की गई हो। कर विवाद निस्तारण के घोषणापत्र जमा करने की अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2020 थी जिसे दो महीने पहले सरकार ने 31 मार्च, 2021 तक बढ़ा दिया। यह कदम कोविड-19 महामारी को देखते हुए उठाया गया।
योजना में करदाताओं के सामने विवाद निस्तारण के लिए कई विकल्प पेश किए गए हैं। परंतु इस योजना की धीमी प्रगति के कारण भी सबका ध्यान इसकी ओर है। अब तक योजना की क्षमता के 10 फीसदी से भी कम की घोषणाएं हुई हैं। 17 नवंबर तक सरकार को इस योजना के अधीन केवल 72,500 करोड़ रुपये का कर मिला था। मार्च 2019 के अंत तक देश में कुल विवादित प्रत्यक्ष कर राजस्व की राशि आठ लाख करोड़ रुपये थी। ऐसे में विवाद से विश्वास योजना से सरकार की नाखुशी अजीब नहीं है। परंतु नाखुशी की वजह केवल यह नहीं होनी चाहिए कि कर बकाया कम करने के उसके नीतिगत उपाय और कम राजस्व संग्रह वाले वर्ष में राजस्व जुटाने की उसकी कोशिश निष्प्रभावी हो सकती है। सरकार को परेशानी इस बात की होनी चाहिए कि कर विवाद कम करने में नाकामी राजनीतिक रूप से सत्ताधारी दल के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
कर प्रशासन के नजरिये से देखें तो विवाद से विश्वास का लक्ष्य था लंबित कर विवादों को कम करना और सरकार के लिए अतिरिक्त राजस्व जुटाना। प्रत्यक्ष कर राजस्व की राशि जुटाने में दिक्कत आई क्योंकि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विवाद तेजी से बढ़े। मार्च 2019 तक इस मद में आठ लाख करोड़ रुपये की राशि विवादित हो चुकी थी जबकि मार्च 2014 में यह महज चार लाख करोड़ रुपये के करीब थी।
सन 2013-14 में जहां कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह में 64 फीसदी प्रत्यक्ष कर राजस्व हासिल नहीं हो सका था, वहीं 2018-19 में यह राशि बढ़कर 71 फीसदी हो गई। यही कारण है कि मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में यह योजना पेश की ताकि कर विवाद निस्तारण कर राजस्व बढ़ाया जा सके। ये विवाद लंबे समय से अनसुलझे रहे हैं।
यह भी ध्यान रहे कि प्रत्यक्ष कर राजस्व का जो बड़ा हिस्सा विवादों में उलझा वह केवल मोदी सरकार की समस्या नहीं है। इसकी शुरुआत मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के आखिरी पांच साल में हुई। सन 2008-09 में विवादित प्रत्यक्ष कर बकाया राशि महज 54,000 करोड़ रुपये के करीब थी यानी उस वर्ष के कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह का 16 फीसदी। बाद के पांच वर्ष में बकाया बढ़ता रहा और 2013-14 में यह 6.38 लाख करोड़ रुपये यानी कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह का 64 फीसदी हो गया।
अब यह समझना आसान है कि कैसे 2014 के आम चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मनमोहन सिंह की सरकार के कर प्रशासन के खिलाफ जनमानस तैयार किया था। यही कारण है कि प्रत्यक्ष कर राजस्व में विवादित राशि मोदी सरकार के लिए राजनीतिक दृष्टि से भी चिंता की वजह बनी रही। यदि वित्त मंत्रालय योजना को लेकर ठंडी प्रतिक्रिया से चिंतित है तो इसलिए क्योंकि सरकार और भाजपा में कोई भी नहीं चाहता कि उस पर यह इल्जाम लगे कि मनमोहन सिंह की सरकार की तरह मोदी सरकार कर को लेकर अनुकूल नहीं है और प्रत्यक्ष कर विवाद बढ़ रहे हैं।
विवाद से विश्वास को अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर सरकार को क्या करना चाहिए? ऐसे में तीन बातें स्पष्ट हैं। पहली बात, उसे करदाताओं पर योजना के मुताबिक विवाद निस्तारण के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए। यदि इस योजना पर कमजोर प्रतिक्रिया मिलती है तो भी उसे करदाताओं को मौजूदा कानूनों के मुताबिक विवाद निस्तारण के सामान्य विकल्प देने चाहिए।
विवाद से विश्वास योजना के तहत विवाद निस्तारण के लिए करदाताओं पर दबाव बनाने के प्रतिकूल परिणाम भी सामने आ सकते हैं। इससे कर विभाग का नाम खराब हो सकता है और करदाताओं की प्रताडऩा के नाम पर राजनीतिक रूप से भी यह गलत साबित हो सकता है। ऐसे में योजना शुरू करने का मकसद ही पिछड़ जाएगा। इसके बजाय वित्त मंत्रालय को नए कर विवाद रोकने के लिए सक्रियता दिखानी चाहिए।
ऐसी भी खबरें हैं कि कई सरकारी उपक्रमों को कहा जा रहा है कि वे अपने विवाद इस योजना के तहत निपटाएं ताकि समय समाप्त होने से पहले योजना का प्रदर्शन सुधर सके। सरकारी उपक्रमों पर ऐसा कोई दबाव नहीं बनाया जाना चाहिए। यदि इन कंपनियों के प्रबंधन ने पहले मूल कर दावों का प्रतिवाद किया या उन पर सवाल उठाए हों तो उन पर इस तरह निस्तारण के लिए किसी प्रकार का दबाव अनुचित होगा। याद रहे कि इनमें से कई सरकारी उपक्रम सूचीबद्ध कॉर्पोरेट संस्थान भी हो सकते हैं। अल्पांश हिस्सेदारों के हित में सरकार को ऐसे विवाद के मामलों में दबाव बनाने से बचना चाहिए।
आखिर में राजस्व विभाग को चाहिए कि वह कर संग्रह बढ़ाने के लिए अन्य विकल्प तलाशे। अनुमान के मुताबिक मार्च 2019 तक सरकार को 1.38 लाख करोड़ रुपये का कर अभी संग्रहीत करना था। मार्च 2020 तक यह राशि और बढ़ गई होगी। ध्यान रहे कि यह राशि विवादित नहीं है। यदि राजस्व विभाग के प्रशासनिक ढांचे को सक्रिय किया जाए तो यह राशि जुटाना आसान होगा क्योंकि यह पूरी राशि विवादित नहीं है।
चालू वित्त वर्ष के शेष 14 सप्ताह में राजस्व विभाग अपनी ऊर्जा ऐसा प्रत्यक्ष कर जुटाने में लगा सकता है जो विवादित नहीं है। इससे कर राजस्व संग्रह में सुधार होगा। विवाद से विस्तार को 31 दिसंबर, 2020 को समाप्त करना जरूरी नहीं है और इसे तीन महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। हालांकि यदि गैर विवादित प्रत्यक्ष कर बकाया जुटाया जा सके तो इस योजना पर से दबाव काफी कम हो जाएगा।

First Published - December 18, 2020 | 11:19 PM IST

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