इन्फोसिस की वेबसाइट सरकारी परियोजनाओं से कंपनी के जुड़ाव के बारे में काफी कुछ बताती है। मसलन वेबसाइट पर लिखा है कि सूचना-प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की यह दिग्गज कंपनी देश के विकास में साथ देने का अवसर मिलने पर गौरवान्वित महसूस करती है। इनमें कई परियोजनाएं इस बात का जीवंत उदाहरण हैं किस तरह कंपनी भारत की आर्थिक तेजी में योगदान दे रही है और देश के नागरिकों के सपने सच करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखते हुए कंपनी की वेबसाइट पर शब्दों का चयन जिस तरह किया गया है वह एक विडंबना लगती है। देश की अग्रणी कंपनियों में शुमार इन्फोसिस को सरकार के हाथों जलील होना पड़ा है। इसका अंदाजा आयकर विभाग के उस एक ट्वीट से लगाया जा सकता है जिसमें कहा गया, ‘वित्त मंत्रालय ने इन्फोसिस के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी सलिल पारेख को वित्त मंत्रालय बुलाया है। पारेख वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के समक्ष यह स्पष्ट करेंगे कि ई-फाइलिंग पोर्टल शुरू होने के 25 दिन बाद भी क्यों तकनीकी खामियां बरकरार हैं।’ इससे एक महीने पहले वित्त मंत्री ने ट्वीट किया था कि उन्हें आशा है कि इन्फोसिस और नंदन निलेकणी करदाताओं को परेशानी पेश आने नहीं देंगे।
यह प्रश्न किसी के भी मन में भी आ सकता है कि नए पोर्टल पर करदाताओं को पेश आने वाली दिक्कतों पर सरकार ने कंपनी से सीधे बात क्यों नहीं की और इसके बजाय एक के बाद एक ट्वीट क्यों दागे गए। इस विवाद में सरकार और इन्फोसिस के बीच कहीं तुलना नहीं है। इसकी वजह है कि भारतीय उद्योग जगत में शायद ही किसी कंपनी में आयकर पोर्टल में आई तकनीकी खामी के लिए सरकारी अधिकारियों को दोष देने की हिम्मत होती। आम तौर पर सरकार कंपनियों को मामूली निर्देश भी देती हैं तो वे एक तरह से सरकार के समक्ष नतमस्तक हो जाती हैं। सरकार की तल्ख टिप्पणी के बाद इन्फोसिस बस इतना कह पाई कि खामियां दूर करने के लिए वह सभी उपाय कर रही है। यह विषय किसी ने नहीं उठाया कि सरकारी अधिकारियों ने पोर्टल की औपचारिक शुरुआत करने से पहले इनका कुछ दिनों तक परीक्षण क्यों नहीं किया। अगर ऐसा होता तो खामियों का पता पहले लग जाता और बात यहां तक नहीं पहुंचती।
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इस पूरे मामले में इन्फोसिस की सरकार से अधिक जवाबदेही बनती है। कंपनी के पूर्व निदेशक मोहनदास पई ने स्वराज्य पत्रिका को बताया कि इन्फोसिस जैसी कंपनियों को आयकर जैसे पेचीदा मामले में विशेषज्ञता हासिल नहीं है। उन्होंने कहा कि इन्फोसिस ने भी मामले में सतर्कता नहीं दिखाकर अपनी छवि को नुकसान पहुंचाया है। उसे सरकार को यह बताना चाहिए कि था कि भारतीय सनदी लेखाकार संस्थान से पर्याप्त संख्या में चार्टर्ड अकाउंटेंट की सेवा ली जानी चाहिए। यह कदम अब उठाया गया है। कंपनी को सरकारी अधिकारियों से संवाद करने के लिए अपने वरिष्ठ लोगों को नियुक्त करना चाहिए था और परियोजना प्रबंधन में बेहतर कौशल का परिचय देना चाहिए था।
दूसरी ओर उन सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारी कौन तय करेगा जो परियोजना की देखरेख कर रहे थे? कर विभाग यह भूल गया कि जब कोई नई एवं पेचीदा आईटी पोर्टल तैयार किया जाता है तो कम से कम इसकी औपचारिक शुरुआत से पहले परीक्षण जरूरी होता है। सरकारी परियोजनाओं के साथ एक दूसरी दिक्कत यह है कि किसी परियोजना की स्थायी जिम्मेदारी किसी अधिकारी के पास नहीं होती है क्योंकि उनका तबादला नियमित अंतराल पर होता रहता है। कम से कम इन्फोसिस को सतर्क रहना चाहिए था क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब वह किसी सरकारी परियोजना में सरकार के साथ मिलकर काम कर रही है। कंपनी जब एमसीए 21 और जीएसटीएन परियोजनाओं पर काम कर रही थी तब भी ऐसी दिक्कतें आई थीं। इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायण मूर्ति ने छह वर्ष पहले सीएनबीसी टीवी 18 को दिए साक्षात्कार में यह बात कही थी। मूर्ति ने कहा था कि इन्फोसिस और अन्य तकनीकी कंपनियों को सरकारी परियोजनाओं पर कोई लाभ नहीं मिलता है। उन्होंने कहा था कि बड़ी कंपनियां इन परियाजनाओं पर काम करने से कतराती हैं। उन्होंने भुगतान में देरी और बीच में ही परियोजनाओं में होने वाले बदलावों की तरफ भी इशारा किया था। उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी परियोजनाओं में अंतराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शर्तें होनी चाहिए। कंपनी को मूर्ति की सलाह पर अधिक गंभीरता से ध्यान देना चाहिए था।
सरकार जिस तरह तकनीकी परियोजनाओं के क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करती है उनमें भी त्रुटियां होती हैं। उदाहण के लिए ज्यादातर तकनीकी अनुबंधों में आईटी कंपनियां सिस्टम इंटीग्रेटर के रूप में काम करती हैं। इसका आशय है कि उन्हें सॉफ्टवेयर सेवाएं देने के साथ ही हार्डवेयर भी उपलब्ध कराना पड़ता है। कुल परियोजना लागत में आधी हिस्सेदारी हार्डवेयर (कलपुर्जों) की होती है। ज्यादातर आईटी कंपनियों को हार्डवेयर की आपूर्ति के लिए अग्रिम भुगतान करना पड़ता है मगर सरकार से उन्हें (आईटी कंपनियों) भुगतान कई महीनों बाद मिलता है।
संक्षेप में कहें तो ई-फाइलिंग पोर्टल में तकनीकी खराबी के लिए दोनों पक्ष उत्तरदायी हैं लेकिन सारा दोष इन्फोसिस पर डाला जा रहा है जो सर्वथा अनुचित है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक (आरएसएस) से संबद्ध एक पत्रिका इन्फोसिस पर राष्ट्र विरोधी होने का आरोप भी लगा चुकी है। इस घटना के दो सप्ताह बाद सरकार के प्रतिनिधि के रूप में केवल वित्त मंत्री ने कहा कि जो हुआ उसे अच्छा नहीं माना जा सकता। उन्होंने कहा कि सरकार और इन्फोसिस दोनों ही पोर्टल में आई तकनीकी खामियों के समाधान के मिलकर काम कर रही हैं। उद्योग के साथ अविश्वास की खाई पाटने की बात करने वाली सरकार को काफी पहले इन्फोसिस के बचाव में आना चाहिए था। इन्फोसिस के साथ निश्चित तौर अच्छा बरताव होना चाहिए था।
