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सूचना एवं संचार तकनीक ने दुनिया को दो वर्गों में बांटा

इस धारणा के बावजूद कि आईसीटी ने विभिन्न कंपनियों और देशों के लिए वैश्विक स्तर पर हालात एक समान कर दिए हैं, हकीकत एकदम विपरीत है। बता रहे हैं अजय कुमार

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Ajay Kumar   
Last Updated- December 19, 2023 | 9:27 PM IST

वर्ष 2005 में थॉमस फ्रीडमैन ने जोर देकर कहा था कि सूचना एवं संचार तकनीकों (आईसीटी) ने विश्व स्तर पर कारोबारों और आम लोगों के लिए वैश्विक कारोबारी हालात को समतल कर दिया है।

दुनिया के समतल होने के विचार ने तेजी से लोकप्रियता हासिल की। बहरहाल यह धारणा हकीकत से एकदम अलग है। आईसीटी का परिदृश्य पहाड़ों और टीलों जैसा है जहां बड़े दिग्गज हावी हो जाते हैं और छोटे खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा करने के लिए संघर्ष करते रहते हैं।

इन दिग्गजों की बात करें तो कुछ देशों की ये चुनिंदा कंपनियां लगभग समूचे आईसीटी के उत्पादन पर केंद्रित हैं और दूसरों के लिए काफी बाधा उत्पन्न करती हैं। अत्यधिक घना वैश्विक आईसीटी बाजार भू-राजनीतिक और रणनीति का संघर्ष क्षेत्र बन गया है। यह दबदबा समतल विश्व की धारणा को चुनौती देता है। सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन (फैब) तकनीक वह बुनियादी तकनीक है, जो सेमीकंडक्टर बनाती है जिस पर सभी आईसीटी संचालित होते हैं।

हर दो साल में एक चिप पर ट्रांजिस्टर्स के दोगुना होने से सेमीकंडक्टर हर जगह नजर आने लगे हैं। वे वैश्विक असमानता का भी प्रमुख उदाहरण हैं। ट्रांजिस्टर्स के दोगुना होने से जटिलता और फैब की पूंजी आवश्यकता में इजाफा हुआ। इससे प्रवेश संबंधी गतिरोध बढ़ा। सेमीकंडक्टर की मांग दोगुनी होने के साथ ही फैब कंपनियों की तादाद आधी हो गई, जिससे कुछ कंपनियों का दबदबा बना रहा।

सन 1996 के सूचना प्रौद्योगिकी समझौते ने सेमीकंडक्टर आयात पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया और इस उद्योग की ताकत को और केंद्रीकृत किया। इससे कुछ कंपनियों को यह क्षमता मिली कि वे दुनिया भर में ऊंची कीमत वाले सेमीकंडक्टर बेच सकें। फिलहाल उद्योग जगत का परिदृश्य गहन केंद्रीकरण वाला है।

टीएसएमसी और सैमसंग दुनिया की करीब 80 फीसदी उन्नत फाउंड्री पर नियंत्रण रखते हैं। ड्राम मेमरी चिप के 75 फीसदी पर दक्षिण कोरिया का नियंत्रण है, जबकि 50 फीसदी नैंडफ्लैश मेमरी चिप उसके नियंत्रण में हैं। अमेरिका, जापान और नीदरलैंड सेमीकंडक्टर उपकरण उत्पादन के 90 फीसदी पर काबिज हैं।

दुर्लभ भू संसाधनों के 80 फीसदी से अधिक पर चीन का एकाधिकार इस विचित्र बाजार ढांचे की एक और परत तैयार करता है। आश्चर्य नहीं कि भारत की ग्रीनफील्ड फैब स्थापित करने की दशक भर पुरानी कोशिश कामयाब नहीं हो सकी है। सेमीकंडक्टर तकनीक अमेरिका और चीन के बीच लड़ाई का मैदान बन गई है। अमेरिका ने उन्नत सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए जरूरी उपकरणों को लेकर चीन के विरुद्ध प्रतिबंध लगा रखा है।

चीन ने दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर इसका विरोध किया। दोनों देशों की लड़ाई में भू-राजनीतिक संघर्ष का असर वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति पर पड़ना लाजिमी है, क्योंकि छोटी कंपनियां इन्हें प्रतिस्थापित नहीं कर सकतीं। इंटरनेट अर्थव्यवस्था में भी बाजार केंद्रीकृत नजर आता है। नेटवर्क की बाह्यताएं परेटो सिद्धांत को मजबूत करती हैं। यह सिद्धांत कहता है कि कई कारणों में से 80 फीसदी परिणाम, 20 फीसदी कारणों से आते हैं।

क्रोम और सफारी वैश्विक ब्राउजर बाजार में 80 फीसदी के हिस्सेदार हैं। गूगल सर्च इंजन बाजार में 90 फीसदी पर काबिज है और ऐपल तथा गूगल मिलकर मोबाइल ऐप बाजार में से 90 फीसदी पर नियंत्रण रखते हैं। खुदरा ई-कॉमर्स बाजार में एमेजॉन 41 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। तीन ई-कॉमर्स तकनीक प्लेटफॉर्म वूकॉमर्स, स्क्वायरस्पेस और वूथीम्स 70 फीसदी बाजार हिस्सेदारी रखते हैं। दुनिया के तीन सबसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम का स्वामित्व एक ही कंपनी के पास है जिसका नाम है मेटा। ऐपल और जीमेल का ईमेल बाजार में 87 फीसदी पर कब्जा है, जबकि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जूम और माइक्रोसॉफ्ट 82 फीसदी बाजार पर काबिज हैं।

इनमें से प्रत्येक कंपनी का मूल्य दुनिया के अधिकांश देशों के सकल घरेलू उत्पाद से अधिक है। इससे इन कंपनियों को दुनिया भर में जबरदस्त बाजार शक्ति मिलती है। बाजार का ऐसा केंद्रीकरण नए कारोबारियों के लिए प्रवेश करना मुश्किल बना देता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आईसीटी के दायरे में ताजातरीन शक्तिशाली तकनीक के रूप में उभरी है। वह इस असमानता को और बढ़ा रहा है।

एआई आंकड़ों पर फलता-फूलता है और उसकी तरक्की आंकड़ों की उपलब्धता पर निर्भर है। इस मामले में इंटरनेट अर्थव्यवस्था की रसूखदार कंपनियों का पूरा दबदबा है। पांच शीर्ष अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों- अल्फाबेट, ऐपल, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन के पास असीमित डेटा है। वहीं चीनी कंपनियों अलीबाबा, हुआवेई, टेनसेंट और बायडू के पास भी भारी डेटा है।

गूगल के पास 10-15 एक्साबाइट डेटा होने की जानकारी है। इस नजरिये से देखें तो भारत की डेटा खपत के मौजूदा अनुपात से गूगल के स्तर पर पहुंचने में करीब 2,500 वर्ष लगेंगे। अन्य एआई कंपनियों के लिए इन कंपनियों का मुकाबला कर पाना करीब-करीब असंभव है। जब ओपनएआई के सीईओ सैम अल्टमैन ने कहा कि भारत की ओपनएआई जैसा उत्पाद बनाने की कोशिश निरर्थक है तो शायद उनके दिमाग में शायद माइक्रोसॉफ्ट के भारी भरकम डेटा भंडार रहे होंगे।

छोटे कारोबारियों के प्रयासों को सीमित सफलता मिली है। चीन और कुछ हद तक भारत जरूर अपवाद रहे हैं। चीन ने उभरते बाजार ढांचे को पहचाना और उसने 1990 और 2000 के दशक में रणनीतिक ढंग से पुरानी सेमीकंडक्टर फैब्स का अधिग्रहण किया। उल्लेखनीय सरकारी मदद से चीन में अब एसएमआईसी जैसी कंपनियां हैं जो टीएसएमसी जैसी सेमीकंडक्टर क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों का मुकाबला करती हैं।

दूरसंचार क्षेत्र में हुआवे और जेडटीई जैसी कंपनियां सिस्को, क्वॉलकॉम और ब्रॉडकॉम को चुनौती दे रही हैं। चीन ने इंटरनेट अर्थव्यवस्था की नेटवर्क वाली प्रकृति को भी समझा और गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट के रूप में बचाव स्थापित किया। उसने गूगल, यूट्यूब, फेसबुक, व्हाट्सऐप, एमेजॉन आदि को ब्लॉक करके बायडू, यूकू, वीबो, वीचैट और अलीबाबा के रूप में अपने विकल्प तैयार किए। चीन के उलट भारत का डिजिटल ढांचा सफलता की कहानी कहता है। ऐसा संरक्षण की वजह से नहीं बल्कि ऐसे नवाचार की वजह है जहां उसने आईसीटी क्षेत्रक दिग्गजों को प्रतिस्पर्धा में पीछे छोड़ा। हालांकि ऐसी सफलताएं दुर्लभ ही हैं।

आईसीटी ने वैश्विक स्तर पर समान माहौल बनाने के बजाय विभाजन को गहरा किया है। तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियां उन्नत तकनीक पर काबिज हैं। आईपी और अधोसंरचना क्षेत्र में उनका दबदबा है और वे छोटी कंपनियों के लिए चुनौती हैं। इससे असमानता बढ़ी है। तकनीक संपन्न और तकनीक वंचितों के बीच अंतर और स्पष्ट हुआ है। आईसीटी की दुनिया असमान है और इस तरह पूरी दुनिया भी।

(लेखक भारत के पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर के विशिष्ट अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : December 19, 2023 | 9:27 PM IST