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भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा उद्योग व्यापार सम्मेलन में समुद्री खतरों से लड़ने और क्वांटम तकनीक पर चर्चा

इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों को उच्च-स्तरीय प्रणालियों का मिलकर विकास करने और उत्पादन करने के लिए आमंत्रित किया

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भास्वर कुमार   
Last Updated- October 10, 2025 | 10:10 PM IST

भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और ऑस्ट्रेलिया का रक्षा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समूह समुद्री क्षेत्र में उभरते खतरों का पता लगाने के लिए नौसैनिक सेंसर पर सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा क्वांटम प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई), साइबर सुरक्षा, सूचना युद्ध और अन्य अत्याधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की चर्चा में प्रगति हो रही है। यह बात रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को सिडनी में अपने दो दिवसीय आधिकारिक दौरे के समापन पर आयोजित भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा उद्योग व्यापार गोलमेज सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही।

सिंह ने रक्षा सामग्री और सेवाओं के पारस्परिकता प्रावधान के समझौता ज्ञापन से जुड़े ऑस्ट्रेलिया के प्रस्ताव का भी स्वागत किया जो दोनों देशों के रक्षा बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाएगा। उन्होंने कहा, ‘हम इस पहल का स्वागत करते हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऑस्ट्रेलिया ने भारत को शीर्ष स्तरीय भागीदार के रूप में पहचान की है, जिससे सुगम तरीके से प्रौद्योगिकी को साझा करने के लिए कुछ नियामकीय बाधाओं को हटाया गया है। यह उस विश्वास और भरोसे का प्रमाण है जो हमें एक साथ बांधता है।’

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इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों को उच्च-स्तरीय प्रणालियों का मिलकर विकास करने और उत्पादन करने के लिए आमंत्रित किया जिसमें प्रणोदन प्रौद्योगिकी, स्वायत्त भूमिगत जल वाहन, फ्लाइट सिमुलेटर और अत्याधुनिक सामग्री शामिल हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे उद्यम दोनों देशों के रणनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप अंतर-संचालित मंच बनाने में योगदान दे सकते हैं।

राजनाथ सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारत एक विश्वसनीय भागीदार बनने के लिए तैयार है और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया से देश की जहाज निर्माण क्षमताओं, विनिर्माण आधार और निजी क्षेत्र के नवप्रवर्तकों और स्टार्टअप के बढ़ते पारिस्थितिकी तंत्र का लाभ उठाने का आग्रह किया। 

सिंह ने कहा कि नौसेना सहयोगके साथ-साथ नौसैनिक जहाजों और उप-प्रणालियों के सह-उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण अवसर हैं। उन्होंने स्वायत्त प्रणालियों और स्वच्छ ऊर्जा के जरिये जहाज निर्माण प्रौद्योगिकियों में संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) में सहयोग को उम्मीद वाले क्षेत्रों के रूप में शुमार किया गया। उन्होंने आगे कहा कि आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाकर, संयुक्त क्षमता बनाकर और नवाचार में निवेश करके, दोनों देश एक लचीले, सुरक्षित और आत्मनिर्भर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को आकार देने में मदद कर सकते हैं।

First Published : October 10, 2025 | 9:53 PM IST