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भारत-यूके व्यापार समझौता संभावनाएं और चुनौतियां

क्या एक सफल वार्ता से दोनों देशों के सामान्य व्यापारिक रिश्ते में एक नए युग की शुरुआत हो सकती है? बता रहे हैं अजय श्रीवास्तव

Last Updated- November 10, 2023 | 10:40 PM IST
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भारत दिसंबर 2021 में यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। जनवरी 2022 में दोनों देशों ने व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए तेज गति से बातचीत शुरू की।

फिलहाल वह बातचीत संपन्न होने के निकट है और दोनों देशों की टीमें कुछ आखिरी मुद्दों को हल करने में लगी हैं। इस वर्ष के अंत तक एफटीए पर हस्ताक्षर हो सकते हैं।

दोनों देशों के बीच व्यापार बहुत अधिक नहीं है और 2022-23 में इसने 44.3 अरब डॉलर का स्तर पार किया। भारत 25.8 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात करता है और उसका व्यापार अधिशेष 8 अरब डॉलर का है।

यह आंकड़ा यूनाइटेड किंगडम सरकार के कारोबार और व्यापार विभाग से प्राप्त हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक द्विपक्षीय सेवा व्यापार के आंकड़े सार्वजनिक नहीं करता। ऐसे में दोनों देशों के मुक्त व्यापार समझौते से क्या उम्मीद की जा सकती है?

मुक्त व्यापार समझौते में 26 विषयों पर बातचीत शामिल है जिनमें वस्तु एवं सेवा व्यापार, टिकाऊपन, बौद्धिक संपदा अधिकार और श्रम संबंधी मसले शामिल हैं। इन विषयों के मुताबिक वार्ताकार भारत के बढ़ते डिजिटल और उपभोक्ता बाजार का लाभ लेने के साथ-साथ यूनाइटेड किंगडम की उन्नत तकनीक तथा वित्तीय क्षेत्रों पर ध्यान देंगे जो दोनों देशों के लिए लाभदायक हो सकते हैं।

अनिवार्य तौर पर देखें तो मुक्त व्यापार समझौते के माध्यम से भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच व्यापार और आर्थिक पूरकता का लाभ लिया जाना चाहिए। इसमें किस हद तक कामयाबी मिलेगी? आइए देखते हैं कि प्रमुख विषयों को लेकर क्या बाधाएं होंगी, किन बातों पर ध्यान दिया जाएगा और क्या नतीजे हासिल हो सकते हैं।

वाणिज्यिक व्यापार: भारतीय स्मार्ट फोन, पेट्रोलियम उत्पाद, दवाएं, हीरे, मशीनों के कलपुर्जे, विमान और लकड़ी के फर्नीचर इस समय यूनाइटेड किंगडम के बाजारों में शुल्क मुक्त हैं। इन उत्पादों का कुल मूल्य 6 अरब डॉलर है यानी वित्त वर्ष 2023 में भारत के वस्तु निर्यात का आधा। पहले से ही शुल्क मुक्त घोषित इस निर्यात में मुक्त व्यापार समझौते से मदद नहीं मिलेगी।

इसके विपरीत भारत का कपड़ा और वस्त्र, जूते-चप्पल, कालीन, कार, समुद्री उत्पादों तथा कुछ तरह के फलों का निर्यात करीब 5 अरब डॉलर मूल्य का है और इस पर यूनाइटेड किंगडम में चार से 16 फीसदी कर लगता है।

इस क्षेत्र में मुक्त व्यापार समझौते से अवश्य लाभ होगा। बहरहाल, अहम वृद्धि हासिल करने के लिए उत्पाद गुणवत्ता में सुधार करना होगा क्योंकि हमारा लक्ष्य एक विकसित बाजार है जिसकी प्रति व्यक्ति आय 47,400 डॉलर है और ग्राहक भी संपन्न हैं।

फिलहाल यूनाइटेड किंगडम के 90 फीसदी से अधिक उत्पादों को भारत में उच्च टैरिफ का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम से भारत को होने वाला सबसे बड़ा निर्यात चांदी है जो वित्त वर्ष 2023 में 2.7 अरब डॉलर रहा।

इस पर फिलहाल 12.5 फीसदी शुल्क लगता है। अन्य भारतीय शुल्कों की बात करें तो कारों पर 100 से 125 फीसदी और स्कॉच व्हिस्की पर 150 फीसदी कर लगता है।

यूनाइटेड किंगडम के उत्पादों पर औसत भारतीय शुल्क 14.6 फीसदी है। भारत भी ऑस्ट्रेलिया के समान कई उत्पादों को रियायत दे सकता है तथा यूनाइटेड किंगडम के वाहनों तथा स्कॉच व्हिस्की पर शुल्क कम कर सकता है।

मुक्त व्यापार समझौते के तहत दरों में कटौती के बाद भारत में यूनाइटेड किंगडम के उत्पादों की लागत कम होगी। 2023 में यूनाइटेड किंगडम ने भारत में 1.50 अरब डॉलर मूल्य के एल्युमीनियम, लोहा, तांबा और कागज की रद्दी की आपूर्ति की।

स्रोत से संबंधित नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि तीसरे देश के उत्पादों को मुक्त व्यापार समझौते का लाभ केवल तब मिले जब मुक्त व्यापार समझौते के साझेदार देश में उसका महत्त्वपूर्ण प्रसंस्करण हुआ हो।

चांदी यूनाइटेड किंगडम का सबसे बड़ी निर्यात वस्तु है और भारत के लिए इसलिए चुनौती उत्पन्न हुई क्योंकि यूनाइटेड किंगडम प्राथमिक तौर पर आयातित चांदी का प्रसंस्करण करके उसे दोबारा निर्यात करता है। वह इस दौरान अधिक मूल्यवर्द्धन नहीं करता।

बहरहाल, ऐसे निचले स्तर के मूल्यवर्द्धन के अलावा भारत उत्पाद विशिष्ट के लिए स्रोत संबंधी नियमों में लचीलापन ला सकता है। भारत के रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृत्रिम वस्त्र आदि क्षेत्र जो आयातित कच्चे माल पर निर्भर हैं उन्हें नियमों में शिथिलता का लाभ मिल सकता है।

सेवा क्षेत्र में यूनाइटेड किंगडम भारत के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र का बड़ा ग्राहक है। अमेरिका के बाद भारत ही उसका सबसे बड़ा स्रोत है। भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां यूनाइटेड किंगडम में कई क्षेत्रों में सेवा देती हैं।

भारत को यूनाइटेड किंगडम के लिए अधिक किफायती वीजा प्रक्रिया की आवश्यकता है ताकि बड़ी तादाद में भारतीय पेशेवरों को अल्पकालिक परियोजनाओं में काम पर लगाया जा सके। बहरहाल यूनाइटेड किंगडम पेशेवरों के अल्पकालिक वीजा को भी आव्रजन से जोड़ता है और ब्रेक्सिट के समय से ही यह मसला संवेदनशील बना हुआ है।

यूनाइटेड किंगडम में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों को भी वहां के सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम में योगदन करना होता है, भले ही वे वहां लंबे समय तक रुककर उसका लाभ नहीं लेते। मुक्त व्यापार समझौते में एक संभावित हल ऐसा समझौता हो सकता है जहां पेशेवरों को वहां के सामाजिक सुरक्षा करों से राहत दी जा सके।

यूनाइटेड किंगडम भारत से चाहता है कि वह उसकी कंपनियों को भारतीय कंपनियों के समान माने। भारत भी यूनाइटेड किंगडम के हित वाले क्षेत्रों को उसके लिए खोल सकता है लेकिन वह शायद हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा न दे।

सरकारी खरीद: यूनाइटेड किंगडम भारत के सरकारी खरीद बाजार तक पहुंच चाहता है ताकि भारतीय कंपनियों के साथ समानता हासिल की जा सके। वहीं भारतीय कंपनियों को यूनाइटेड किंगडम का समकक्ष बाजार बहुत प्रतिस्पर्धी और प्रतिबंधात्मक लगता है जिससे अवसर सीमित होते हैं।

भारत को गैर व्यापारिक मसलों मसलन पर्यावरण, डिजिटल व्यापार और बौद्धिक संपदा अधिकार आदि पर चर्चा की शर्तों को लेकर भी सतर्कता बरतनी चाहिए। उदाहरण के लिए कड़े सततता मानकों पर सहमत होने से यूनाइटेड किंगडम को यह अवसर मिल सकता है कि वह गैर टैरिफ अवरोध लगा सके जिससे भारत को बाजार पहुंच से होने वाले लाभ नहीं मिलेंगे।

इसी तरह भारत जहां अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के जरिये श्रम मानकों को लेकर प्रतिबद्ध है, वहीं उसे इन प्रतिबद्धताओं को मुक्त व्यापार समझौते में जोड़ने से बचना चाहिए। पर्यावरण और टिकाऊपन को लेकर भी यही सतर्कता बरती जानी चाहिए।

डिजिटल व्यापार की बात करें तो भारत सीमा पार डेटा प्रवाह को बढ़ावा देने का विरोध कर सकता है। विश्व व्यापार संगठन की ई-कॉमर्स वार्ता में अमेरिका ने भी यही रुख अपनाया है।

दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते के साथ-साथ द्विपक्षीय निवेश समझौते पर बात कर रहे हैं और दोनों पर साथ हस्ताक्षर होने की संभावना है। यूनाइटेड किंगडम की सरकार ने कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली पर मशविरा शुरू किया है।

एक बार इसकी शुरुआत होने के बाद यूनाइटेड किंगडम के उत्पाद भारत में शुल्क मुक्त ढंग से आते रहेंगे जबकि भारतीय उत्पादों को कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली के समक्ष 20 से 35 फीसदी शुल्क देना होगा।

कुल मिलाकर गैर टैरिफ बाधाओं और नियामकीय मसलों जैसी बाधाओं को ध्यान में रखते हुए मुक्त व्यापार वार्ता का सफल निष्कर्ष भारत और यूनाइटेड किंगडम की आर्थिक साझेदारी में एक नए युग का सूत्रपात हो सकता है। इससे दोनों अर्थव्यवस्थाएं मजबूत होंगी और भविष्य के व्यापार समझौतों के लिए एक राह तैयार होगी।

(लेखक शोध संस्था ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनी​शिएटिव के संस्थापक हैं)

First Published - November 10, 2023 | 10:40 PM IST

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