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भारत को मुक्त व्यापार समझौते से नहीं मिल रहा अपेक्षित लाभ

भारत ने दुनिया के 25 देशों के साथ 14 व्यापार समझौते किए हैं और 50 से अधिक देशों के साथ नए समझौते करने की तैयारी में जुटा है।

Last Updated- May 30, 2024 | 9:44 PM IST
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चीन को छोड़कर सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के बावजूद भारत से निर्यात का आंकड़ा तेजी से नहीं बढ़ रहा है। बता रहे हैं अजय श्रीवास्तव

क्या होता है एफटीए ? (What is FTA)

मुक्त व्यापार समझौता (FTA) देशों के बीच व्यापार से जुड़ा समझौता होता है जिसमें संबंधित पक्ष एक दूसरे से आयात पर शुल्क एवं अन्य बाधाएं कम करते हैं। इससे उनके बीच व्यापार सुगमता से होता है।

विश्व में वर्तमान में 350 से अधिक ऐसे समझौते प्रभाव में हैं। पिछले चार वर्षों के दौरान भारत ने मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ या ईएफटीए देशों (स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिक्टनस्टाइन) के साथ मुक्त व्यापार समझौते किए हैं। ब्रिटेन और ओमान के साथ भी समझौते पूरा होने के अंतिम चरण में पहुंच गए हैं।

भारत ने दुनिया के 25 देशों के साथ 14 व्यापार समझौते किए हैं और 50 से अधिक देशों के साथ नए समझौते करने की तैयारी में जुटा है जिनमें यूरोपीय संघ (EU) और अमेरिका की अगुआई वाला भारत-प्रशांत आर्थिक ढांचा भी शामिल हैं। भारत ने 26 देशों के साथ छोटे व्यापार समझौते भी किए हैं।

भारत जल्द ही दुनिया के सभी बड़े देशों से एफटीए कर लेगा सिवाय चीन के। हालांकि, भारत और चीन एशिया-प्रशांत व्यापार समझौते के अंतर्गत शुल्क कार्यक्रम में सूचीबद्ध 25 प्रतिशत वस्तुओं पर शुल्कों में रियायत का लाभ ले रहे हैं।

वित्त वर्ष 2019 से लेकर वित्त वर्ष 2024 तक भारत से इसके 21 एफटीए साझेदारों को होने वाला निर्यात 107.20 अरब डॉलर से बढ़कर 122.72 अरब डॉलर हो गया। यह लगभग 14.48 प्रतिशत की बढ़ोतरी है।

आयात की बात करें तो यह 136.20 अरब डॉलर से 37.97 प्रतिशत बढ़कर 187.92 अरब डॉलर हो गया। भारत के इन एफटीए साझेदारों में दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र के छह देश (श्रीलंका सहित), दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्रों के 10 देश, जापान, दक्षिण कोरिया, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), मॉरीशस और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

इन व्यापार समझौतों के प्रभाव का आकलन करने के लिए हमने आसियान, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ भारत के एफटीए का विश्लेषण किया है। वर्ष 2010-11 में प्रभाव में आए ये एफटीए भारतीय उद्योगों की नजर में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं।

हमने मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया और ईएफटीए के साथ हुए एफटीए का अध्ययन नहीं किया क्योंकि इन्हें केवल पांच वर्ष हुए हैं और इनमें अधिकांश समझौते के अंतर्गत शुल्क घटाने की प्रक्रिया अभी चल ही रही है।

तरजीही व्यापार आंकड़ों की अनुपस्थिति में किसी एफटीए साझेदार के साथ होने वाले सभी व्यापार विश्लेषण में शामिल किए हैं। यद्यपि, इनमें कई देशों ने एफटीए रियायतों का लाभ नहीं उठाया होगा।

आसियान, दक्षिण कोरिया और जापान के साथ भारत के व्यापार समझौते दो रुझानों की तरफ इशारा करते हैं। पहला रुझान यह है कि इन साझेदारों के साथ भारत का व्यापार घाटा इसके वैश्विक व्यापार घाटे की तुलना में तेजी से बढ़ा है।

विशेषकर, आसियान के साथ व्यापार घाटा 302.9 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया के साथ 164.1 प्रतिशत और जापान के साथ 138.2 प्रतिशत बढ़ा है। इनकी तुलना में वैश्विक घाटा 81.2 प्रतिशत बढ़ा है। यह तुलना एफटीए पूर्व आंकड़ों (2007-09) और नवीनतम व्यापार आंकड़ों (2020-22) पर आधारित है। यह सिलसिला 2023 तक चला।

दूसरा रुझान यह दिखा है कि एफटीए (FTA) साझेदारों के साथ भारत का निर्यात इसके आयात की तुलना में कम तेजी से बढ़ा है।

उदाहरण के लिए आसियान के साथ निर्यात 123.9 प्रतिशत और आयात 175.7 प्रतिशत बढ़ा। जापान के साथ निर्यात 56.4 प्रतिशत और आयात 98.5 प्रतिशत बढ़ा है। इसी तरह, दक्षिण कोरिया के साथ निर्यात 89.1 प्रतिशत और आयात 127.3 प्रतिशत बढ़ा है।

भारत द्वारा लगाए जाने वाला ऊंचा शुल्क (सर्वाधिक तरजीही देश या एमएफएन शुल्क) और साझेदार देशों में कम शुल्क इन साझेदारों के साथ कम निर्यात और अधिक आयात के प्रमुख कारण हैं। एमएफएन शुल्क नियमित शुल्क होते हैं जो कोई देश आयात पर लगाता है मगर एफटीए के अंतर्गत साझेदार देशों के मामले में ये हटा दिए जाते हैं।

कई भारतीय कंपनियां एफटीए का इस्तेमाल करने से बचती हैं क्योंकि इनके अनुपालन पर आने वाली लागत उन्हें मिलने वाले लाभ पर भारी पड़ जाती है क्योंकि साझेदार देशों में पहले से ही कम या शून्य एफटीए शुल्क लगाए जा रहे हैं। साझेदार देशों में औसत एफएफएन शुल्क भारतीय उत्पादों पर काफी कम होते हैं।

मसलन सिंगापुर में यह शून्य, जापान में 2.4 प्रतिशत, मलेशिया में 3.5 प्रतिशत, मॉरीशस 1.1 प्रतिशत, संयुक्त अरब अमीरात में 3.5 प्रतिशत और ऑस्ट्रेलिया में 2.6 प्रतिशत है। इससे भारतीय निर्यातकों के लिए एफटीए के लाभ सीमित हो जाते हैं।

इसके उलट, भारत का औसत एमएफएन शुल्क 18.1 प्रतिशत के स्तर पर है, इसलिए एफटीए समझौते के तहत इन शुल्कों को हटाने से साझेदार देश के निर्यातक कीमत के मामले में लाभ की स्थिति में आ जाते हैं।

यह ढर्रा भारत के नए एफटीए साझेदारों के साथ लगातार देखा जा रहा है। इन देशों में में होने वाले आयात का एक बड़ा हिस्सा शून्य एमएफएन पर हो रहा है। (कनाडा के मामले में यह 70.80 प्रतिशत, स्विट्जरलैंड 61 प्रतिशत, अमेरिका 58.7 प्रतिशत, ब्रिटेन 52 प्रतिशत, ब्रिटेन 52 प्रतिशत और ईयू 51.8 प्रतिशत)।

इसकी तुलना में भारत के कुल वैश्विक आयात का केवल 6.1 प्रतिशत हिस्सा शून्य एमएफएन शुल्क पर होता है। इन कारकों को देखते हुए भारत से होने वाले निर्यात में बहुत अधिक बढ़ोतरी की गुंजाइश नहीं है जबकि साझेदार देश भारत के साथ एफटीए से अधिक लाभान्वित हो सकते हैं।

नए व्यापार समझौतों में आम तौर पर दो तरह के उपाय शामिल किए जाते हैं। सीमा पर होने वाले उपायों में साझेदार देशों से आने वाले उत्पादों पर आयात शुल्क खत्म कर दिया जाता है। देश के भीतर होने वाले उपाय पर्यावरण, श्रम, बौद्धिक संपदा अधिकार, डिजिटल व्यापार और महिला-पुरुष आदि से जुड़े नियम सरल बनाने से जुड़े होते हैं।

विकसित देश इन विषयों को एफटीए पर होने वाली बातचीत में शामिल करने पर जोर देते हैं। उच्च पर्यावरण मानक लाभकारी तो होते हैं परंतु, भारत में अमेरिका या ब्रिटेन के मानकों को अपनाना बिजली एवं खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ा सकता है जिससे कई आर्थिक गतिविधियां थम जाती हैं।

इसी तरह, उच्च न्यूनतम वेतन पर सहमत होने से उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं और निर्यात को नुकसान पहुंच सकता है। विश्व व्यापार संगठन (WTO) में बनी सहमति की तुलना में दवाओं के लिए अधिक प्रतिबंधात्मक मानक अपनाने से दवाओं के दाम बढ़ जाएंगे। दूसरी चिंताएं भी हैं।

मसलन, अगर ब्रिटेन या ईयू कंपनियों को एफटीए के माध्यम से सरकारी खरीद प्रक्रिया में शामिल होने की अनुमति दी जाती है तो छोटी घरेलू कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाएगी। इसके उलट ईयू और ब्रिटेन में सरकारी खरीद प्रक्रिया भारतीय कंपनियों के लिए प्रतिबंधात्मक और पेचीदा है।

इसके अलावा, ब्रिटेन के साथ एफटीए में कड़े मानकों से भारतीय परिधान कंपनियां शुल्कों में रियायत के लिए पात्र होने से वंचित रह सकती हैं। ये विषय विकसित देशों द्वारा लाई गई नई गैर-व्यापारिक बाधाएं हैं। भारत को एफटीए को लेकर कोई वादा करने से पहले श्रम, लिंग, पर्यावरण और डिजिटल व्यापार के लिए अपने नियम तैयार करने चाहिए।

भारत न केवल नए एफटीए पर बातचीत कर रहा है बल्कि श्रीलंका, आसियान, जापान, कोरिया, मलेशिया, चिली और मर्कोसुर (अर्जेन्टिना, ब्राजील, उरुग्वे, पैराग्वे) के साथ मौजूदा समझौतों की समीक्षा एवं विस्तार कर रहा है। आसियान के साथ एफटीए की समीक्षा को उच्च प्राथमिकता दी जा रही है।

जब वर्ष 2010 में एफटीए पर हस्ताक्षर हुए थे तो समय के अभाव के कारण विस्तृत नियमों पर बातचीत नहीं हो पाई थी और सभी उत्पादों के लिए एक साझा नियम बनाया गया। इससे कई उत्पादों का व्यापार लाभकारी नहीं रह जाता है।

एफटीए के बेहतर नतीजे पाने के लिए सरकार बातचीत में निम्नलिखित नीतियों पर विचार कर सकती है। इनमें वाणिज्यिक वस्तुओं के व्यापार के लिए साझा बहिष्करण (एक्सक्लूजन) सूची, व्यापक एफटीए के बजाय छोटी अर्थव्यवस्थाओं के साथ क्षेत्रवार आधारित समझौतों पर ध्यान, बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करना, घरेलू नियामकीय स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए पर्यावरण, श्रम और डिजिटल व्यापार पर बातचीत करना और कार्बन कर और कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म के प्रभावों को ध्यान में रखना शामिल हैं।

आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ पिछले एक दशक से अधिकांश औद्योगिक उत्पादों पर शून्य शुल्क पर व्यापार के बावजूद भारत एशियाई आपूर्ति व्यवस्था का बड़ा हिस्सा नहीं बन पाया है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि भारत बंदरगाहों पर वस्तुओं को अनुमति देने में अधिक समय लेता है।

दूसरा कारण कारोबार सुगमता का अभाव है। इन क्षेत्रों में सुधार पर ध्यान देने से भारत से निर्यात और एफटीए से होने वाले लाभ द्रुत गति से बढ़ेंगे।

(लेखक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक हैं। )

First Published - May 30, 2024 | 9:34 PM IST

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