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Editorial: भारत-एफटा मुक्त व्यापार समझौता आज से लागू, एफटीए पर सजग रहे सरकार

इस समझौते के प्रभाव में आने के बाद पहले दशक में 50 अरब डॉलर के निवेश की उम्मीद की जा रही है

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 30, 2025 | 10:57 PM IST

भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (एफ्टा) देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) आज यानी 1 अक्टूबर से लागू हो जाएगा। यह समझौता निष्कर्ष तक पहुंचने एवं इस पर हस्ताक्षर होने के एक साल बाद प्रभाव में आया है। व्यापार के मोर्चे पर भारत की अन्य चुनौतियों (अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं के निर्यात पर लगाया गया 50 फीसदी शुल्क और यूरोपीय संघ के साथ समझौते को अंतिम रूप देने में हो रही देरी) को देखते हुए सरकार इस समझौते पर विशेष जोर दे रही है, जो आश्चर्य की बात नहीं है।

एफ्टा समझौता निश्चित रूप से एक अच्छी खबर है। विकसित देशों का यह छोटा समूह (जिसमें स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटनस्टाइन शामिल हैं) भले ही ईयू जितना प्रभावशाली न हो लेकिन इसमें कुछ देश आर्थिक रूप से काफी मजबूत हैं। इस समझौते के प्रभाव में आने के बाद पहले दशक में 50 अरब डॉलर के निवेश की उम्मीद की जा रही है।

यह समझौता भारतीय वार्ताकारों के असामान्य लचीले रुख को भी दर्शाता है। एफ्टा देशों से कई वस्तुओं के आयात पर शुल्क समाप्त कर दिए जाएंगे लेकिन वे देश पहले से ही भारतीय निर्यात पर अधिक शुल्क नहीं लगा रहे हैं। यह बात उत्साहजनक है कि भारतीय अधिकारियों ने यह बात महसूस की है कि जब देश ऊंचे शुल्क हटाने के एवज में अधिक निवेश सहित अन्य लाभ पा रहा तो ऐसे सौदे किए जा सकते हैं। अब वह दौर समाप्त हो गया है जिसमें व्यापार समझौते वस्तुओं पर शुल्कों में पारस्परिक कमी पर आधारित होते थे। कई अन्य कारक (जिनमें निवेश भी शामिल है) जैसे आपसी तालमेल से तैयार नियम और गैर-शुल्क बाधाओं में कमी भी अब व्यापार वार्ता का अहम हिस्सा हो गए हैं।

सरकार को यह भी स्वीकार करना चाहिए कि मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) केवल तभी लाभकारी होते हैं जब वे सही तरीके से इस्तेमाल में लाए जाते हैं। पूर्व में ऐसी शिकायतें रही हैं कि भारतीय निर्यातक जापान और दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के साथ हुए एफटीए का ठीक से लाभ नहीं उठा पाए हैं।

उदाहरण के लिए आसियान के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत से उस क्षेत्र को निर्यात उतनी तेजी से नहीं बढ़ा जितनी तेजी से आयात बढ़ा है। हालांकि, इसे नुकसान तो नहीं कहा जा सकता मगर यह अवसर की हानि जरूर है। भारतीय निर्यातकों के कमजोर प्रदर्शन का कारण एफटीए के प्रावधानों एवं लाभों का इस्तेमाल करने में उनकी असमर्थता या छोटे व्यवसायों द्वारा इन नए बाजारों तक पहुंचने के तरीकों के बारे जागरूकता की कमी हो सकती है। इस समस्या को दूर करना सरकार के लिए एक बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए थी।

सरकारी निकायों को लगातार कारोबारियों के संपर्क में रहना चाहिए ताकि न केवल उन्हें निर्यात संभावनाओं के बारे में बताया जा सके बल्कि उन मुद्दों, जैसे कि गैर-शुल्क बाधाओं का भी समाधान हो पाए जिनका सामना भारतीय कंपनियों को विदेशी खासकर विकसित बाजारों में करना पड़ता है। भारत आने वाले समय में अन्य देशों और व्यापारिक समूहों के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर करने वाला है जिसे देखते हुए ये बातें और अहम हो जाएंगी। वैश्विक बाजारों में कारोबार करने में भारतीय कंपनियों (विशेष कर छोटी इकाइयों) की मदद के लिए उनका आवश्यक मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

नए व्यापार समझौतों करने के लिहाज से हितधारकों के बीच एफ्टा का प्रचार उन्हें इसका उपयुक्त इस्तेमाल करने और ईयू के साथ समझौते के लिए तैयार रहने में सक्षम बनाएगा। ये समझौते जल्द हो जाएं तो बेहतर है क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप के हठ के कारण अमेरिका के साथ समझौता अटक गया है और अमेरिकी राष्ट्रपति रूस से तेल खरीदने के लिए भारत के साथ व्यापार कम करने के लिए यूरोप पर दबाव भी बना रहे हैं। ब्रिटेन और एफ्टा के साथ सौदे बहुत अच्छे हैं लेकिन ईयू के साथ समझौता काफी अहमियत रखता है और अधिकारियों को इस लक्ष्य से नहीं चूकना चाहिए।

First Published : September 30, 2025 | 10:51 PM IST