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महाभियोग: विपक्ष का नासमझी भरा दांव!

अब सवाल यह है कि सदन में तयशुदा हार की बात जानते हुए भी विपक्ष ने आखिर क्यों इसे पेश किया?

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आदिति फडणीस   
Last Updated- December 20, 2024 | 9:50 PM IST

विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ के सांसदों ने 10 दिसंबर को उप राष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ महाभियोग का अभूतपूर्व प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव दोनों सदनों यानी लोकसभा और राज्य सभा में पेश होना था और चूंकि दोनों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का बहुमत है, इसलिए हार भी तय थी। आखिरकार राज्य सभा के उप सभापति ने धनखड़ को पद से हटाने की मांग वाला विपक्ष का यह नोटिस खारिज कर दिया। अब सवाल यह है कि सदन में तयशुदा हार की बात जानते हुए भी विपक्ष ने आखिर क्यों इसे पेश किया?

पहले तो यह समझ लीजिए कि उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति के खिलाफ महाभियोग केवल इसलिए नहीं लाया जा सकता कि उनके आचरण से विपक्ष को परेशानी होती है। यह बात अलग है कि धनखड़ भी रूखे लहजे में कानूनी और सियासी तरीके से अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं छोड़ते। समाजवादी पार्टी (सपा) की सांसद जया बच्चन ने अगस्त में एक चर्चा के दौरान

उनके ‘लहजे’ पर एतराज जताया था, जिस पर सभापति ने कहा, ‘मुझे न सिखाएं। आप कोई भी हों, सेलेब्रिटी ही क्यों न हों, आपको सदन की गरिमा बनाए रखनी होगी।’ संसद के बाहर जया ने कहा कि उनके लिए यह बेहद ‘अपमानजनक अनुभव’था। लेकिन द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक) और अन्य विपक्षी दलों के सांसदों ने स्पष्ट कर दिया कि सपा इसे आधार बनाकर सभापति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाती है तो वे लोग उसका समर्थन नहीं करेंगे।

वास्तव में किसी का स्वाभिमान आहत होना सभापति के खिलाफ महाभियोग लाने का आधार नहीं हो सकता और विपक्ष इसे उचित ठहरा भी नहीं सकता। विपक्ष का तर्क है, ‘आप हमें बोलने नहीं देते।’ विपक्ष ने नियम 267 के तहत (लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव के समान इसमें भी मौजूदा प्रस्ताव पर चर्चा के लिए बाकी सभी मामले रोक दिए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर मतदान भी कराया जाता है) 40 से अधिक प्रस्ताव पेश किए, लेकिन धनखड़ ने एक भी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि स्थगन याचिकाओं को उनकी प्रक्रियागत खामियों के कारण खारिज किया गया और इसमें किसी तरह का पक्षपात नहीं था।

विपक्षी नेताओं का कहना है कि बोलते समय धनखड़ अक्सर हस्तक्षेप करते हैं, जिससे उनके विचारों का तारतम्य टूट जाता है और सत्ता पक्ष को चुटकी लेने का मौका मिल जाता है। किसी भी मुद्दे पर चर्चा के लिए समय तय करने वाली कार्यमंत्रणा समिति की एक हालिया बैठक में एक विधेयक पर तीन घंटे की चर्चा पर सहमति बनी। इस पर विपक्ष के एक सांसद ने चुटकी ली, ‘दो घंटे विधेयक के लिए और एक घंटा सभापति के लिए।’ लेकिन क्या महाभियोग इसलिए लाया जाए क्योंकि सभापति को सदन में अपनी आवाज सुनना पसंद है?

इसके बाद सदस्यों के निलंबन का भी मामला है। अगर कोई व्यक्ति सदन की कार्यवाही में बार-बार बाधा डालता है तो उसे सदन से बाहर किया ही जाएगा। इस पर बहस की गुंजाइश ही नहीं है। नियमों के अनुसार निलंबन ‘सत्र के शेष समय तक’ ही लागू रहता है। मगर कई सांसद काफी लंबे समय तक सदन से निलंबित रहे जैसे कि आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह को जुलाई 2023 से जून 2024 तक सदन से बाहर रखा गया।

राज्य सभा जो भी करती है वह राज्यों की विधान परिषदों तथा विधान सभाओं के लिए मिसाल होती है। इसलिए राज्य विधायिका में भी विपक्षी विधायकों को महीनों या सालों तक निलंबित करने से रोका नहीं जा सकता क्योंकि राज्य सभा के सभापति ऐसा कर चुके हैं। यह चिंता की बात है मगर महाभियोग का कारण शायद ही बन पाए। विपक्ष बेशक मानता है कि वह बहुत पक्षपाती हैं मगर धनखड़ ने कानून के जो गुर सीखे हैं, उनके बल पर वे ऐसी मुश्किलों से उबरना भी जानते हैं।

अपने गृह राज्य राजस्थान में धनखड़ को फौजदारी वकील के तौर पर मशहूर हैं। उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय से वकालत की शुरुआत की थी और राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सबसे युवा अध्यक्ष बने थे। जब राज्य में जाट आंदोलन चल रहा था तब सरकार द्वारा हरियाणा और राजस्थान में जाटों के खिलाफ दर्ज हुए दर्जनों मुकदमे लड़ने वह ही खड़े हुए थे। जोधपुर में काले हिरण के अवैध शिकार के विवादास्पद मामले में बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान को ओर से लड़ रहे वकीलों की टीम में वह भी शामिल थे।

जनसेवा के लिए उनकी प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। वह कांग्रेस में रहे (1993 से 1998 तक राजस्थान के किशनगढ़ के विधायक रहे), जनता दल (वी पी सिंह सरकार में सांसद थे और हरियाणा के जाट नेता देवी लाल की सिफारिश पर यह संभव हुआ था) में रहे और चंद्रशेखर सरकार के अल्पकालिक कार्यकाल (1990-91) में संसदीय कार्य मंत्री भी रहे। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में उनके गुरु भैरो सिंह शेखावत थे, जो उपराष्ट्रपति भी रहे।

भाजपा के साथ उनका जुड़ाव तब शुरू हुआ, जब वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सक्रिय कार्यकर्ता रह चुके स्वामी असीमानंद का पर्दे के पीछे से समर्थन कर रहे थे। असीमानंद पर 2007 में अजमेर शरीफ दरगाह में बम विस्फोट की साजिश रचने के आरोप थे। बाद में वह इस मामले में बरी हो गए थे।

संघ और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कुछ अन्य सदस्यों पर भी इस मामले में आरोप लगे। उनमें दो को इस मामले में दोषी ठहराया गया तथा 2017 में आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई थी। धनखड़ ने वह मुकदमा लड़ने में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव की मदद भी की थी। इसी वजह से उन्होंने राज्य सभा में एक बार खुद को ‘25 वर्षों तक संघ में एकलव्य’ बताया था।

धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद जयपुर में आयोजित एक सम्मान समारोह में कहा, ‘मैंने ताऊ देवीलाल और भैरो सिंह शेखावत के चरणों में बैठकर जादू सीखा है।’ इतना तो तय है कि महाभियोग नहीं आएगा। लेकिन राज्य सभा में सरकार और विपक्ष के बीच जो कड़वाहट दिख रही है उसे कोई जादू ही खत्म कर सकता है।

First Published : December 20, 2024 | 9:50 PM IST