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आर्थिक बहाली में कितने मददगार हो पाएंगे संपन्न परिवार?

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 4:03 AM IST

कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से भारत की आर्थिक बहाली की प्रक्रिया रुक गई है। आखिर कौन सी चीज फिर से वृद्धि को तेज कर सकती है? सिर्फ निवेश बढ़ाकर बहाली नहीं हो सकती है क्योंकि अधिकांश कंपनियां पहले से ही अतिरिक्त क्षमता पर हैं। यह भी साफ है कि सरकार आर्थिक समस्या दूर करने के लिए अपना खर्च बढ़ाने में हिचकिचाहट दिखा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या परिवार भारतीय अर्थव्यवस्था को इस भंवर से बाहर निकाल सकते हैं? पहली नजर में तो ऐसा होना मुश्किल लगता है क्योंकि परिवारों की आय कम हुई है और उनको बेहतर वक्त आने की बहुत उम्मीदें भी नहीं हैं। अप्रैल 2021 में केवल 4.2 फीसदी परिवारों ने साल भर पहले की तुलना में अपनी आय बढऩे का दावा किया था और अगले एक साल में आय बढऩे की उम्मीद रखने वाले परिवार भी सिर्फ 5.2 फीसदी थे। वर्ष 2019-20 में ऐसे परिवारों का अनुपात क्रमश: 33 फीसदी और 30 फीसदी हुआ करता था। इसका मतलब है कि आम दिनों की वापसी बहुत लंबे सफर का सबब बन चुकी है।
आर्थिक बहाली की गणना के नजरिये से तुलनात्मक रूप से बेहतर आय वाले परिवारों की स्थिति बहुत मायने रखती है। अगर हम अंग्रेजी अक्षर ‘के’ जैसी आकृति वाली बहाली घटित होते देख रहे हैं तो क्या इस ‘के’ का ऊपरी हिस्सा देश को इस दलदल से बाहर निकाल सकता है?  पिछले हफ्ते लता वेंकटेश ने मुझसे यही सवाल पूछा था। यह सवाल उससे कहीं बेहतर जवाब का हकदार है जो मैंने सीएनबीसी-टीवी18 चैनल पर एक कार्यक्रम में उन्हें दिया था। यह सवाल इस लिहाज से भी अहम है कि ‘के’-आकृति का ऊपरी हिस्सा ही संगठित क्षेत्रों से खपत को तेजी देता है। और कम अवधि में संगठित क्षेत्र ही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि को तेज करता है। इस तरह तुलनात्मक रूप से अच्छी स्थिति वाले परिवारों की खपत भारत की आर्थिक बहाली में बड़ा फर्क डालती है, कम-से-कम जीडीपी आंकड़े तो यही इशारा करते हैं। लोकप्रिय धारणा यही है कि जहां तमाम वेतनभोगी कर्मचारियों की नौकरी छूट गई है, वहीं तुलनात्मक रूप से समृद्ध वेतनभोगी कर्मचारियों के परिवारों में आय का पुराना स्तर कायम रहा लेकिन लॉकडाउन की बंदिशों के चलते उनके खर्च सीमित रहे। यानी इस समूह को मजबूरी में बचत करनी पड़ी। उनकी इस बचत ने इक्विटी बाजारों का रुख कर लिया जहां उन्हें तगड़ा प्र्रतिफल भी मिला है। इस तबके के निवेश का मूल्यांकन बढऩे से धनी कर्मचारी कहीं अधिक अमीर हुए। भारतीय अर्थव्यवस्था की बहाली काफी हद तक इस पर निर्भर करती है कि ये धनी परिवार अपने खर्च कितना बढ़ाते हैं? लेकिन हमें इस तबके की आर्थिक स्थिति एवं उसके परिदृश्य पर भी गौर करना होगा। 
सबसे पहले हमें इस समूह को परिभाषित करना होगा। सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वे के मुताबिक, वर्ष 2019-20 में भारत के परिवारों की औसत आय 2.45 लाख रुपये थी। उस हिसाब से औसत आय के दोगुने से चार-गुना यानी सालाना 5 लाख से 10 लाख रुपये और उससे अधिक आय वाले परिवारों को संपन्न परिवारों की श्रेणी में रखा जाएगा।
प्रथम दृष्टया साक्ष्य यही बताते हैं कि दिसंबर 2020 की तिमाही में आय पिरामिड के ऊपरी हिस्से का आकार साल भर पहले की तुलना में काफी घट गया था। दस लाख रुपये या उससे अधिक आय वाले परिवारों की आय दिसंबर 2019 तिमाही की तुलना में 14.5 फीसदी कम हो गई थी। वहीं 10 लाख रुपये से कम सालाना आय वाले परिवारों की आय में महज एक फीसदी की ही गिरावट देखी गई थी। 
साफ है कि आय में हल्की चपत भी उपभोक्ता धारणा को तगड़ी चोट पहुंचा सकती है। उपभोक्ता धारणा की गिरावट आय में आई कमी से कहीं अधिक बुरी है। दिसंबर 2020 तिमाही में 10 लाख रुपये से अधिक आय वाले परिवारों का उपभोक्ता धारणा सूचकांक एक साल पहले की तुलना में 48 फीसदी कम हो चुका था। वहीं 10 लाख रुपये से कम आय वाले परिवारों की उपभोक्ता धारणा 50 फीसदी से अधिक कम हो गई थी। 
वैसे उपभोक्ता धारणा के आंकड़े दिसंबर 2020 तक के ही उपलब्ध आय संबंधी आंकड़ों से कहीं अधिक सामयिक हैं। उपभोक्ता धारणा मार्च 2021 तिमाही में थोड़ी सुधरती नजर आई थी। लेकिन महामारी की दूसरी लहर के प्रचंड रूप लेने से अप्रैल में इस धारणा को तगड़ी चोट पहुंची।
अप्रैल 2021 में 11.8 फीसदी संपन्न परिवारों ने ही यह माना कि उनकी आय एक साल पहले की तुलना में बढ़ी है। वहीं इस तबके के 36 फीसदी परिवारों ने कहा कि साल भर पहले की तुलना में उनकी आय कम हो गई है। 
भारत को इस गहरी खाई से बाहर निकालने में ‘के’-आकृति के ऊपरी हिस्से से निर्णायक भूमिका निभाने की उम्मीद तोडऩे का काम अचानक बढ़ा निराशावाद है। अप्रैल 2021 में संपन्न परिवारों के छह फीसदी से भी कम हिस्से ने उम्मीद जताई कि उनकी आय अगले एक साल में बढ़ेगी। यह अनुपात उससे पहले के चार महीनों में बेहतर दिनों की आस जताने वाले परिवारों का करीब आधा था। साफ है कि अप्रैल में संपन्न परिवारों की धारणा अचानक ही खराब हुई है। 
हमें बखूबी मालूम है कि अप्रैल की तुलना में मई 2021 में उपभोक्ता धारणा और भी खराब हुई है। उपभोक्ता धारणा सूचकांक अप्रैल 2021 में 54.4 था और 30 मई को समाप्त सप्ताह में यह और भी गिरकर 48.6 पर आ गया। ऐसे में इसकी गुंजाइश बहुत कम है कि संपन्न परिवारों की हालत बेहतर रही होगी। भारत को इस तबके से आर्थिक बहाली में अहम भूमिका निभाने की उम्मीद करने से पहले इन परिवारों की आय एवं उनकी उपभोक्ता धारणा दोनों ही बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल तो इन परिवारों को मदद की दरकार है। 

First Published : June 3, 2021 | 11:26 PM IST