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GST: रियल एस्टेट और भूमि पर GST लाने से अर्थव्यवस्था को मिलेगी नई रफ्तार

जमीन एवं रियल एस्टेट को जीएसटी प्रणाली के अंतर्गत लाने से फैक्टर मार्केट में सुधारों को गति मिलेगी, जिससे भारत की आर्थिक तरक्की को मजबूती मिलेगी। बता रहे हैं वी एस कृष्णन

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वी एस कृष्णन   
Last Updated- August 08, 2024 | 9:30 PM IST

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2024-25 के अपने बजट भाषण में उल्लेख किया कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) वास्तव में एक बड़ा सुधार रहा है और यह महत्त्वपूर्ण बदलाव का जरिया साबित हुआ है। वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि जीएसटी का दायरा बढ़ाने एवं दरें सरल तथा उचित बनाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

इसे ध्यान में रखते हुए बिहार के वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। इस समिति को तीन महीने में रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है। दरें उचित या तर्कसंगत बनाने पर समिति के सुझाव औसत जीएसटी भुगतान दर को मौजूदा 12.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 14.8 प्रतिशत राजस्व तटस्थ दर (जीएसटी प्रभावी होने से पहले प्रचलित दर) तक पहुंचाने में मददगार होंगे।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु जीएसटी का दायरा बढ़ाना है। कुछ अर्थशास्त्री पेट्रोलियम उत्पादों को भी जीएसटी के अंतर्गत लाने का सुझाव लगातार दे रहे हैं। मेरे विचार में इस कार्य के लिए अभी उपयुक्त समय नहीं है क्योंकि राजकोषीय संप्रभुता बनाए रखने, खासकर आपात स्थितियों से निपटने के लिए कुछ राज्य पेट्रोलियम को जीएसटी में शामिल करने पर हामी नहीं भर पा रहे हैं।

हालांकि एक ऐसा बिंदु है जिस पर बहुत चर्चा नहीं हुई है परंतु इसका असर जीएसटी से प्राप्त होने वाले राजस्व से अन्यत्र भी दिख सकता है। वह बिंदु है जमीन एवं रियल एस्टेट को जीएसटी के अंतर्गत लाना। इससे भूमि बाजार में होने वाले सौदों में पारदर्शिता आएगी, आयकर राजस्व में इजाफा होगा और आवासीय बाजार में अधिक विदेशी निवेश भी आएगा, जिससे रोजगार के अधिक अवसर सृजित होंगे।

इस पहल के लिए स्पष्ट रूप से राज्यों के बीच आम सहमति होनी चाहिए और जीएसटी लागू किए जाने से पहले वास्तव में इस पर काफी माथापच्ची हुई थी। सबसे पहले केंद्र को कानूनी पहलू स्पष्ट करते हुए राज्यों में बैठा डर दूर करने की जरूरत है। जमीन एवं रियल एस्टेट पर जीएसटी लागू करने के बाद भी राज्यों को स्टांप शुल्क या स्थानीय निकायों को संपत्ति कर लगाने से नहीं रोका गया है। जमीन एवं रियल एस्टेट पर जीएसटी लागू करने की राह में कोई बाधा नहीं है। साथ ही राज्य भी स्टांप शुल्क लगाना जारी रख सकते हैं क्योंकि दोनों मामलों में कराधान अलग-अलग हैं।

उच्चतम न्यायालय भी यह सिद्धांत मानता है और उसने इस क्षेत्र पर एक से अधिक कर लगाए जाने को सही करार दिया है। भारतीय संविधान में जमीन एवं अचल संपत्ति को वस्तु की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है। सिंगापुर में जमीन के इस्तेमाल के अधिकार की बिक्री ‘वस्तु’ मानी गई है मगर भारत में जमीन इस्तेमाल करने के अधिकार को निश्चित तौर पर ‘डीम्ड सर्विस’ (सेवा मान ली गई है) मान सकते हैं।

जीएसटी को कारगर बनाने के लिए इसके दायरे में जमीन से लेकर रहने की अस्थायी जगह (लॉज) सहित संपूर्ण मूल्य श्रृंखला (भूमि के विकास से लेकर इस पर निर्माण और तैयार जायदाद की पहली बिक्री) शामिल की जानी चाहिए। कानूनी रूप से यह स्वीकार्य है। जमीन की बिक्री को जमीन के अधिकार की बिक्री मानते हुए सेवा कहा जा सकता है और उस पर कर लगाया जा सकता है।

इस कदम से अवैध आय कमाने पर रोक लगेगी और भूमि विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे गैर-कृषि भूमि बेकार नहीं पड़ी रहेगी और उनका वाजिब इस्तेमाल भी हो पाएगा। जीएसटी लगाने से निर्माण सेवाओं और इस्तेमाल के लिए तैयार (रेडीमेड) जायदाद के बीच मौजूदा अंतर समाप्त हो जाएगा। अभी निर्माण सेवाओं पर कर लग रहा है किंतु इस्तेमाल के लिए तैयार जायदाद को मुक्त रखा गया है। जमीन या जायदाद खरीदने वाले को जीएसटी के झंझट से मुक्त रखने के लिए इसका भुगतान रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के अंतर्गत सेवा प्रदाता (डेवलपर एवं बिल्डर) से कराया जा सकता है।

जीएसटी राजस्व में बहुत अधिक इजाफा नहीं होगा क्योंकि इसमें मिलने वाला कर निर्माण उद्योग द्वारा इस्तेमाल होने वाली लोहा-इस्पात, सीमेंट , फिक्सचर जैसी निर्माण सामग्री पर लगाए गए करों पर दिए जाने वाले इनपुट ड्यूटी क्रेडिट के रूप में चला जाएगा। राजस्व में बढ़ोतरी आयकर के मोर्चे पर होगी मगर इसके लिए सौदे के वास्तविक मूल्य की जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए। सस्ते आवास (250 वर्ग फुट कारपेट एरिया से कम क्षेत्रफल वाले मकान) शुल्क मुक्त रखे जा सकते हैं। इसी तरह प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत सरकारी आवासीय कार्यक्रम भी जीएसटी की जद से बाहर रखे जा सकते हैं।

जीएसटी प्रणाली में जमीन एवं रियल एस्टेट शामिल करने के लिए सीजीएसटी अधिनियम की अनुसूची 3 से इसे हटाना होगा। सीजीएसटी अधिनियम में जमीन एवं इमारतों की बिक्री को न तो वस्तु आपूर्ति माना गया है और न ही सेवाओं की आपूर्ति (वास्तव में ये सेवाओं की आपूर्ति मानी जानी चाहिए)। इनपुट टैक्स क्रेडिट नियमों में भी संशोधन की जरूरत होगी क्योंकि इसमें फिलहाल जमीन एवं इमारत में इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर शुल्क क्रेडिट की अनुमति नहीं है।

यह नीतिगत कदम आवास क्षेत्र के लिए बड़े सकारात्मक बदलाव लाने वाला होगा। यह कदम श्रम बल की अधिक जरूरत वाले इस खंड में बड़े पैमाने पर निवेश लाएगा। यह उपाय फैक्टर मार्केट (आर्थिक गतिविधि में योगदान देने वाले सभी कारक) खासकर जमीन एवं श्रम में सुधारों पर मौजूदा सरकार की सोच से भी मेल खाएगा। जीएसटी में जमीन एवं रियल एस्टेट शामिल करने से रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम या रेरा के लाभ और बढ़ जाएंगे।

सरकार को विमान ईंधन (एटीएफ) एवं प्राकृतिक गैस को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए। एटीएफ यदि जीएसटी में आ गया तो विमानन क्षेत्र को कच्चे माल पर टैक्स क्रेडिट का भी लाभ मिलेगा। इसी तरह प्राकृतिक गैस एक मध्यवर्ती कच्ची सामग्री है, जिसका इस्तेमाल उर्वरक जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भी होता है।

अक्षय ऊर्जा खंड को शामिल करना एक और बड़ा कदम हो सकता है। पूरे बिजली क्षेत्र को एक साथ जीएसटी में लाने के बजाय पहले चरण में नवीकरणीय ऊर्जा (सौर एवं पवन ऊर्जा) के साथ पहल की जा सकती है। यह क्षेत्र अधिक पूंजी निवेश, कम लागत एवं कम समय में परियोजनाएं पूरी करने के लिए जाना जाता है। इसे जीएसटी में लाए जाने से पूंजीगत वस्तुओं से जुड़े करों पर लाभ लेने में मदद मिलेगी।

जीएसटी के दायरे में विस्तार के सुझाव (खासकर जमीन एवं रियल एस्टेट के संदर्भ में) से फैक्टर मार्केट सुधारों को गति मिलेगी, जो अगले दो दशकों में रोजगार युक्त आर्थिक वृद्धि के लिए जरूरी होगा।

(लेखक सीबीआईसी के सदस्य रह चुके हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published : August 8, 2024 | 9:30 PM IST