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ग्रोथ की राह को मजबूती देने वाला हो आम बजट

आर्थिक सुस्ती के बीच बजट से खपत बढ़ाने, कृषि उत्पादकता सुधारने और रोजगार के लिए कौशल विकास पर फोकस की उम्मीद। औद्योगिक क्लस्टरों और पूंजीगत खर्च से वृद्धि को मिलेगा बल।

Last Updated- January 28, 2025 | 10:43 PM IST
Union Budget 2025

Budget 2025 Expectationsकेंद्रीय बजट ऐसे समय पेश किया जा रहा है, जब देश की आर्थिक वृद्धि सुस्त पड़ रही है, वित्तीय बाजार में अस्थिरता बढ़ी है, विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से कम हुआ है और अमेरिका में नई सरकार आने से वैश्विक नीतियों में अनिश्चितता भी बढ़ी है। अनिश्चितता के इस दौर में बजट का जोर वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने और 2047 तक ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की दिशा तय करने से जुड़ा होना चाहिए। इसके लिए बजट में इन पांच क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा:

खपत को बढ़ावा: सरकार ने कोविड महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाने के लिए पूंजीगत खर्च पर जोर दिया है, जिसके अभी तक अच्छे परिणाम भी दिखे हैं। पूंजीगत खर्च पर जोर जारी रहना चाहिए मगर साथ में खपत को बढ़ावा देने वाले उपाय भी किए जाने चाहिए। खपत में व्यापक और निरंतर वृद्धि से निजी निवेश बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। बजट में व्यक्तिगत आयकर के सभी स्लैब में कर का बोझ करीब 5 फीसदी कम करने पर विचार होना चाहिए। इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 0.2 फीसदी के बराबर राजस्व घाटा तो होगा मगर इससे उपभोक्ताओं के हौसले और खर्च में काफी इजाफा हो सकेगा।

रोजगार के मौके कम होने और वास्तविक मजदूरी में वृद्धि बहुत कम होने से उपभोक्ताओं का हौसला कमजोर हुआ है। भारतीय रिजर्व बैंक के घरेलू सर्वेक्षण के मुताबिक महामारी के बाद से उपभोक्ताओं की धारणा (मौजूदा अवधि में) निराशा भरी रही है।

राजकोषीय घाटा कम करने की दिशा में धीरे-धीरे बढ़ना: सरकार को वृद्धि बढ़ाने के उपायों पर ध्यान देते हुए राजकोषीय घाटा कम रखने के प्रयास कुछ धीमे कर देने चाहिए। सरकार ने राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2026 तक जीडीपी के 4.5 फीसदी से नीचे ले आने का लक्ष्य रखा था। अगर सरकार इसे वित्त वर्ष 2026 में जीडीपी के 4.7 फीसदी तक ले आती है और 4.5 फीसदी का लक्ष्य वित्त वर्ष 2028 तक ही हासिल कर पाती है तब भी सरकार के सामान्य ऋण और जीडीपी का अनुपात कम होने की संभावना है। आर्थिक वृद्धि सुस्त पड़ने के कारण राजकोषीय घाटे में कमी भी धीरे-धीरे लानी चाहिए। साथ ही सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋण में भी कमी आती रहे।

कृषि क्षेत्र पर जोरः भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है और इस क्षेत्र में प्रगति तेज किए बगैर भारत विकसित देश बनने की अपनी आकांक्षा पूरी नहीं कर सकता। भारत का 45 फीसदी श्रमबल कृषि क्षेत्र से ही रोजगार पाता है मगर हमारे सकल मूल्यवर्द्धन (जीवीए) में इसकी केवल 18 फीसदी हिस्सेदारी है। बजट में तकनीक के इस्तेमाल को प्रोत्साहित कर और अनुसंधान तथा नवाचार पर जोर देकर इस क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। कृषि को बढ़ावा देने वाले कोष के जरिये उन स्टार्टअप को प्रोत्साहित किया जाए, जो कृषि में तकनीक का बहुत अधिक प्रयोग कर रहे हैं।

पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन जैसे कृषि से जुड़े क्षेत्रों को और बढ़ावा देने की जरूरत है क्योंकि इससे श्रम उत्पादकता और ग्रामीण आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। कृषि प्रसंस्करण उद्योग और कृषि निर्यात को बढ़ावा देने पर हमारा जोर होना चाहिए। खाद्य परिवहन और भंडारण के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा हो तथा कृषि और उद्योग के बीच संबंध भी मजबूत किए जाएं।

औद्योगिक क्लस्टर: सरकार को निर्यात और रोजगार सृजन की अपार संभावनाओं वाले क्षेत्र पहचानने चाहिए जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, वाहन और वाहन-कलपुर्जा तथा फुटवियर आदि। इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने के लिए तंत्र भी तैयार होना चाहिए। इसके लिए मौजूदा औद्योगिक क्लस्टरों को बढ़ावा देने और चाकचौबंद बुनियादी ढांचे के साथ नए प्रतिस्पर्द्धी क्लस्टर बनाने पर जोर दिया जाए, जैसा पिछले केंद्रीय बजट में भी कहा गया था। सरकार को कच्चे माल पर जरूरत के मुताबिक आयात शुल्क घटाकर इन क्षेत्रों के लिए आपूर्ति श्रृंखला की गति बढ़ाने जैसे पहलुओं पर भी ध्यान देना चाहिए।

कंपनियों को कौशल संस्थान स्थापित करने या इन क्लस्टरों में बने कौशल संस्थानों के साथ काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि लोगों को कंपनियों की जरूरत के हिसाब से कौशल प्रशिक्षण दिया जाए और बाद में उन्हें इन्हीं क्लस्टरों में रोजगार मिल जाए। इन औद्योगिक क्लस्टरों के जरिये विनिर्माण को बढ़ावा देंगे तो हमें दुनिया भर में चीन प्लस वन (चीन के अलावा किसी अन्य देश में निवेश ले जाने तथा विनिर्माण का ठिकाना बनाने की नीति) मौके का फायदा उठाने में भी मदद मिलेगी। इससे रोजगार के मौके तैयार करने तथा कृषि कामगारों को विनिर्माण क्षेत्र में भेजने में भी मदद मिलेगी, जहां अभी केवल 11 फीसदी श्रमबल काम करता है। इस समय कारखानों में मिलने वाला 40 फीसदी रोजगार तमिनाडु, गुजरात और महाराष्ट्र में ही है। इससे राज्य सरकारों के साथ मिलकर दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसे क्लस्टर तैयार करने की जरूरत स्पष्ट होती है।

कौशल प्रशिक्षण की आवश्यकताः दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं में आबादी बूढ़ी होती जा रही है मगर भारत की आबादी में कामकाजी लोगों की हिस्सेदारी बढ़ रही है। मगर इस बढ़त या मौके का फायदा उठाने के लिए कामगारों के पास ऐसा कौशल सुनिश्चित करना जरूरी है कि वे काम करने के लिए पूरी तरह तैयार हों यानी कामगार एकदम कुशल होने चाहिए। भारत के केवल 4.4 फीसदी कामगारों को औपचारिक कौशल मिला है, जबकि चीन में यह आंकड़ा 24 फीसदी है और विकसित देशों में तो इनकी हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है। सरकार ने पिछले कुछ वर्षों के बजट में कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों को आधुनिक बनाने पर जोर दिया है। कामकाजी आबादी का फायदा उठाने के लिए इस पर तेजी से ध्यान देना जरूरी है।

इसके साथ ही वृद्धि की रफ्तार तेज करने की भी जरूरत है। इसके साथ यह सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि वृद्धि टिकाऊ और समावेशी हो। पूंजीगत खर्च पर लगातार ध्यान देने और खपत को बढ़ावा देने के उपाय करने से देश की वृद्धि की गति तेज करने में मदद मिलनी चाहिए। वृद्धि लंबे समय तक टिकी रहे, इसके लिए हमारे भारी श्रमबल को उनके कौशल के हिसाब से सही तरीके के रोजगार देना सबसे जरूरी है। इसके लिए रोजगार के पर्याप्त मौके तैयार करने होंगे और पक्का करना होगा कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की चुनौतियों के बीच कामगारों को पर्याप्त कौशल मिले।
(लेखिका केयरएज रेटिंग्स की मुख्य अर्थशास्त्री हैं)

First Published - January 28, 2025 | 10:43 PM IST

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