आय कर रिटर्न में नजर आने वाला समग्र कॉर्पोरेट डेटा दिखाता है कि अर्थव्यवस्था के इस वर्ग की आय की संरचना में एक व्यवस्थित बदलाव आया है। अब इसमें कारोबारी आय कम हो रही है जबकि अन्य परोक्ष आय मसलन पूंजीगत लाभ और अन्य प्रकार की आय बढ़ रही है। इस रुझान को थोड़ा और समझने के लिए इस स्तंभ में बीएसई 500 कंपनियों के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है ताकि नजर आ रहे रुझानों का परीक्षण किया जा सके।
यह सही है कि ये कंपनियां देश में औसत उद्यमिता का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं लेकिन कारोबारी भारत के मूल्यवर्धन में उनकी अहम हिस्सेदारी है और इसलिए संभव है कि वे इस रुझान की वाहक बनी रहें। इस समस्या को दो तरह से देखा जा सकता है- पहला, क्या घोषित आय की संरचना में बदलाव आया है? और दूसरा, क्या परिसंपत्तियों की बनावट में बदलाव आया है?
इस आलेख में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के प्रॉवेस डेटाबेस का इस्तेमाल करके निहित रुझानों को समझने के लिए परिसंपत्तियों की बनावट पर नजर डाली गई है। चूंकि वित्तीय और गैर वित्तीय कंपनियों के मामले में कारोबारी गतिविधियों की प्रकृति अलग-अलग होती है इसलिए इन्हें कंपनियों की दो श्रेणियों में प्रस्तुत किया गया है।
भौतिक निवेश को विशुद्ध अचल परिसंपत्तियों, प्रगतिशील पूंजी निर्माण और अमूर्त संपत्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है जबकि वित्तीय निवेश को दीर्घकालिक निवेश तथा दीर्घकालिक ऋण और अग्रिम के रूप में परिभाषित किया गया है। 500 कंपनियों में से 408 गैर वित्तीय कंपनियां हैं जबकि शेष वित्तीय क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं। यहां हितों के प्रश्न को देखते हुए ध्यान गैर वित्तीय कंपनियों पर केंद्रित है। बीएसई 500 कंपनियों की शुद्ध अचल परिसंपत्तियों में इनकी हिस्सेदारी 94-95 फीसदी है।
गैर-वित्तीय कंपनियों के लिए अचल परिसंपत्ति की हिस्सेदारी समान अवधि में 66 फीसदी से कम होकर 59 फीसदी रह गई। अचल परिसंपत्ति में व्यवस्थित गिरावट बताती है कि इन कंपनियों की वित्तीय परिसंपत्तियों में इजाफा देखने को मिला। इस सूचना को देखने का एक और तरीका है कि विशुद्ध अचल परिसंपत्ति और वित्तीय परिसंपत्तियों के अनुपात पर नजर डाली जाए। समान अवधि में यह अनुपातन 1.95 से घटकर 1.45 रह गया है। इसके अलावा शुद्ध अचल परिसंपत्ति में प्रगतिशील पूंजीगत कार्यों और अमूर्त पूंजी निर्माण की हिस्सेदारी 24 फीसदी से घटकर 14 फीसदी रह गई। यह भी दिखाता है कि इन कंपनियों में पूंजी निर्माण पर कम ध्यान दिया जा रहा है।
कंपनियों की संख्या के आधार पर देखें तो 2014 और 2023 के बीच बीएसई 500 कंपनियों की तुलना की जाए तो 82 कंपनियां वित्तीय कंपनियां हैं जबकि 408 कंपनियां गैर वित्तीय कंपनियां हैं। गैर वित्तीय कंपनियों की बात करें तो पूरी अवधि के लिए 384 कंपनियों के आंकड़े उपलब्ध हैं, 248 कंपनियों ने कहा है कि उनकी वित्तीय परिसंपत्तियों में इजाफा हुआ है। मार्च 2024 तक शुद्ध अचल परिसंपत्तियों में उसकी हिस्सेदारी 62 फीसदी थी।
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि यही वह अवधि है जब आय कर के आंकड़ों में परोक्ष आय में सीधा इजाफा हुआ। परोक्ष आय में इजाफे के पीछे कई वजह हो सकती हैं। अर्थव्यवस्था के ढांचे में बदलाव और कॉर्पोरेट सेक्टर का उन क्षेत्रों पर भरोसा करना भी एक वजह हो सकता है जो ठोस संपत्तियों पर कम भरोसा करते हैं। वित्तीय और गैर वित्तीय कंपनियों की व्यापक श्रेणियों की बात करें तो उनकी संरचना में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है।
उदाहरण के लिए बीएसई 500 कंपनियों की विशुद्ध तयशुदा परिसंपत्तियों में वित्तीय कंपनियों की हिस्सेदारी 4-5 फीसदी के बीच है। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर इनकी संरचना की विवेचना भी कुछ प्रकाश डाल सकती है। दूसरा कारक हो सकता है कारोबार का पुनर्गठन करना। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता यानी आईबीसी के आगमन के बाद नकदीकरण के चलते परिसंपत्तियों में कमी करने में मदद मिल सकती है।
इसके साथ ही देनदारियों में भी कमी आएगी। ऐसा समायोजन आयकर में उल्लिखित पूंजीगत लाभ में इजाफे के रुझान को अधिक स्पष्ट कर सकता है। बहरहाल, गैर वित्तीय कंपनियों की कुल परिसंपत्तियों में वित्तीय संपत्तियों की हिस्सेदारी में निरंतर इजाफे को देखते हुए नकदीकरण से पूरी तस्वीर सामने नहीं आती।
तीसरा कारक हो सकता है वित्तीय योजनाओं में निवेश को बढ़ती प्राथमिकता। गैर वित्तीय कंपनियों की बात करें तो उनमें दीर्घकालिक निवेश की हिस्सेदारी 61 फीसदी से बढ़कर 78 फीसदी हो गई है। यह दिखाता है कि दीर्घकालिक ऋण और अग्रिम में रुचि कम हुई है। पूंजी बाजार में शेयरों में तेज इजाफे के कारण संभावित प्रोत्साहन के अलावा बीते 10 वर्षों के दौरान सूचकांक में 14 फीसदी की औसत वृद्धि और हाल के दिनों में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है। उपरोक्त रुझान अर्थव्यवस्था के भीतर सार्थक निवेश के अवसरों के बारे में सवाल पैदा करता है।
कोविड के पहले यानी 2019 में निजी निवेश में कमी आई जिससे संकेत मिलता है कि अर्थव्यवस्था की मांग में भी मध्यम अवधि में कमी आई। उसी दौरान शेयर बाजार में इजाफे ने मुनाफा कमाने वाली कंपनियों द्वारा हासिल अधिशेष के निवेश के लिए एक आकर्षक जगह मुहैया कराई। मांग में सुधार वास्तविक क्षेत्र में निवेश की वापसी का अवसर तैयार कर सकता है।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कंपनियों में क्षमता के उपयोग में इजाफा साफ नजर आता है। अब यह देखना बाकी है कि विभिन्न क्षेत्रों में मांग में असमान सुधार तथा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग में अनिश्चितताओं की बात करें तो यह तयशुदा निवेश में सुधार की राह में बाधा बन सकती है। हाल के दिनों में पूंजी बाजार में जो अस्थिरता देखने को मिली है अगर वह जारी रहती है तो तयशुदा परिसंपत्तियों में निवेश के मुकाबले वित्तीय निवेशों का आकर्षण कम हो सकता है। क्या यह मुश्किलों के बीच एक वरदान साबित होगा? भले ही व्यक्तिगत निवेशकों के लिए अवसर की लागत अधिक हो।
(लेखिका नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी, नई दिल्ली की निदेशक हैं)