ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का दो दिवसीय भारत दौरा समाप्त हो गया। इस दौरान उन्होंने गुजरात और नई दिल्ली का सफर किया।
जॉनसन प्रधानमंत्री के रूप में पहली आधिकारिक यात्रा पर भारत आए। उनकी यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब मुक्त व्यापार समझौते को एक वर्ष के भीतर पूरा करने को लेकर जोर बढ़ा है। मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत जनवरी 2022 में औपचारिक रूप से शुरू हुई थी तथा जॉनसन की यात्रा के अंत में जारी संयुक्त वक्तव्य से संकेत मिलता है कि नेताओं ने ‘ज्यादातर बातचीत अक्टूबर 2022 तक निपटाने का लक्ष्य तय किया है’। व्यापार और निवेश जहां बातचीत में स्वाभाविक विषय था, वहीं इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि यह यात्रा यूक्रेन पर रूस के हमले की छाया में हुई है। इस घटना ने वैश्विक सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा को भूराजनीतिक एजेंडों में शीर्ष पर पहुंचा दिया है।
जॉनसन ने यूक्रेन की सरकार को हथियार और नैतिक सहायता मुहैया कराने में अग्रणी भूमिका निभाई है। भारत ने बार-बार बातचीत और युद्ध के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है। इसके साथ ही उसने संयुक्त राष्ट्र में इस विषय पर हुए कई उच्चस्तरीय मतदान से भी दूरी बनाये रखी। इसकी वजह से पश्चिम से कुछ आलोचना का सामना भी करना पड़ा। इन बातों के बावजूद संयुक्त वक्तव्य सुझाता है कि पश्चिम के निर्णयकर्ता इस विवाद में भारत के रुख से परे नजर डालना चाहते हैं तथा उसके साथ रिश्तों को गहरा करना चाहते हैं। भारत की दिक्कतों को देखते हुए यह भारतीय विदेश नीति की एक अहम उपलब्धि होगी। भारत के किसी गुट का सदस्य न होने की बात ने भी उसकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा हितों को पश्चिम के साथ जोडऩे की उत्सुकता बढ़ायी होगी।
यह जरूरी है कि भारतीय नीति निर्माता इस अनुकूल अवसर का लाभ लें और पश्चिम में अपने साझेदारों के साथ व्यापार समझौतों की दिशा में आगे बढ़े। निश्चित तौर पर समय सीमा करीब होने का अर्थ यह भी है कि मुक्त व्यापार समझौते को लेकर यूनाइटेड किंगडम के साथ ज्यादातर बातचीत भारतीय वार्ताकारों पर दबाव डालेगी। परंतु हर प्रयास ऐसा होना चाहिए ताकि तय तारीख तक समझौता हो जाए। यूनाइटेड किंगडम के वार्ताकारों की दिक्कतें एकदम स्पष्ट हैं। इसमें स्कॉच व्हिस्की और ब्रिटिश वाहनों पर कम शुल्क दरें तथा चिकित्सा उपकरणों के लिए भारतीय बाजार की पहुंच प्रमुख हैं। सेवा क्षेत्र के दबदबे वाली ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को भारत के वित्तीय, अंकेक्षण तथा विधिक सेवा क्षेत्रों में पहुंच से फायदा हो सकता है।
भारत के लिए यह आवश्यक हो सकता है कि वह इन क्षेत्रों में कुछ उपयुक्त रियायत दे क्योंकि सूचना प्रौद्योगिकी, टेक्सटाइल्स, चावल और फुटवियर आदि क्षेत्रों में उसे लाभ हो सकता है। ये क्षेत्र बड़े नियाक्ता हैं और भारत के रोजगार संकट को देखते हुए विकसित देशों के बाजारों में इन क्षेत्रों के उपक्रमों का प्रवेश हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। भारतीय नीति निर्माताओं ने हाल के समय में ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ व्यापार समझौतों को जल्द पूरा करने या अंतरिम समझौतों के लिए प्रयास किया है। परंतु यूनाइटेड किंगडम के साथ समझौता अन्य समझौतों की तुलना में अधिक गहरा और व्यापक होना चाहिए।
उसके बाद अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ निवेश और समझौतों पर जोर दिया जाना चाहिए। विदेश नीति प्रतिष्ठान ने भारत के व्यापार वार्ताकारों के लिए काफी गुंजाइश बनायी है। इस अवसर को गंवाया नहीं जाना चाहिए।