महामारी के वर्षों समेत बीते छह वर्षों के दौरान भारतीय कृषि क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि 4.4 फीसदी रही जिसे अच्छी दर करार दिया जा सकता है। वित्त वर्ष 2023 में इसने 4 फीसदी की वृद्धि हासिल की जबकि चौथी तिमाही में यह दर 5.5 फीसदी रही। बीते चार सालों में मॉनसून अच्छा रहा है जिसके चलते ला नीना (स्पैनिश में अर्थ छोटी बच्ची) प्रभाव बना और भारत में अच्छी बारिश हुई। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सुखद रुझान अब खत्म होने को है और पूर्वानुमान कह रहे हैं कि इस वर्ष हमें अल नीनो (स्पैनिश में अर्थ छोटा बच्चा) प्रभाव देखने को मिल सकता है। अल नीनो के कारण भारत में बारिश पर बुरा असर होगा।
भारतीय मौसम विभाग के अनुमानों के मुताबिक जून-सितंबर 2023 के दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून लंबी अवधि के औसत में 96 फीसदी के साथ सामान्य स्तर पर रहेगा। यह अच्छी खबर है कि केरल में मॉनसून 8 जून को पहुंच गया और वह जल्दी ही अन्य क्षेत्रों में पहुंचेगा। हिंद महासागर डायपोल (पश्चिम में अरब सागर तथा उत्तर में हिंद महासागर में समुद्री सतह के तापमान में अंतर) में बना अनुकूल माहौल कुछ हद तक अल नीनो के नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकता है।
हाल ही में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी कहा कि मॉनसून के वितरण को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इसके अलावा अल नीनो और हिंद महासागर डायपोल की आपसी भूमिका भी अनिश्चित है। अल नीनो भारत की बारिश से पूरी तरह संबद्ध नहीं है। हालांकि देश में जब भी सूखा पड़ा है, उस वर्ष अल नीनो प्रभाव अवश्य देखने को मिला है।
गत सप्ताह ऑस्ट्रेलियाई मौसम विभाग ने कहा कि इस वर्ष अल नीनो प्रभाव नजर आने की 70 फीसदी संभावना है। विभाग ने पहले अल नीनो पर नजर रखने की बात कही थी लेकिन अब उसने इसकी चेतावनी जारी कर दी है। अमेरिका के नैशनल ओशियानिक ऐंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने भी इस वर्ष अल नीनो की चेतावनी दी है। सांख्यिकी आधारित संभावना जरूर बेहतर हो सकती है क्योंकि लगातार चार वर्ष यानी 2019 से 2022 तक अच्छी बारिश देखने को मिली है।
कम बारिश भारतीय कृषि और अर्थव्यवस्था पर क्या असर डाल सकती है? यकीनन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बारिश में कितनी कमी आती है। पिछले कुछ समय में भारतीय कृषि कमजोर मॉनसून होने के बावजूद सुरक्षित रही है और इसकी कई वजह हैं। पहला कारण यह है कि सूक्ष्म सिंचाई सहित सिंचित इलाका बढ़ रहा है। कुल रकबे में सिंचित रकबा अब 50 फीसदी से अधिक हो चुका है।
दूसरा, खेती में विविधता आई है और फसल के साथ संबद्ध गतिविधियां बढ़ी हैं। बागवानी और पशुपालन तथा मछली पालन जैसी गतिविधियां बारिश से उतनी प्रभावित नहीं होती हैं जितनी कि अनाज तथा अन्य फसलों की खेती।
तीसरी बात, ग्रामीण परिवारों की आय और उनके रोजगार में ग्रामीण गैर कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। चौथा, फिलहाल जलाशयों में जल भंडार 10 वर्ष के औसत की तुलना में बहुत अधिक है। चावल और गेहूं का सार्वजनिक भंडार भी 1 मई, 2023 के लिए तय मानकों से तीन गुना से अधिक है।
इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि हालांकि समय के साथ मौसम के झटकों को लेकर भारतीय कृषि की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन कम बारिश खेती तथा समग्र अर्थव्यवस्था पर कई अन्य नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
इसका असर समग्र सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ सकता है हालांकि सकल मूल्यवर्द्धन में कृषि की हिस्सेदारी केवल 15 फीसदी है। कमजोर मॉनसून के कारण जीडीपी वृद्धि दर में 40 से 50 आधार अंक की कमी आ सकती है। इसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है और यह कई क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती है। इसमें उद्योग जगत, सेवा क्षेत्र, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र शामिल हैं। कृषि क्षेत्र में सकल मूल्यवर्द्धन भी मौजूदा 4 फीसदी सालाना की औसत दर से कम रह सकता है।
आज भी कुल रोजगार में 45 फीसदी और ग्रामीण रोजगार में 65 फीसदी योगदान कृषि का है। संभावना यह भी है कि खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रैक्टर, दोपहिया वाहनों, दैनिक उपयोग की वस्तुओं और ग्रामीण सेवाओं की मांग में कमी आ सकती है। कृषि जिंस के निर्यात में भी कमी आएगी। जलाशयों में जल भराव, बिजली और पेयजल के लिए भी मॉनसून जरूरी है।
बारिश अगर सामान्य से कम भी होती है तब भी महत्त्वपूर्ण है उस बारिश का क्षेत्रवार वितरण। खरीफ की बोआई की बात करें तो चावल, दालों और तिलहन की बोआई धीमी है। पश्चिमोत्तर में सामान्य से 92 फीसदी से कम बारिश होने की संभावना है। वर्षा आधारित असिंचित इलाकों में कम बारिश का असर अधिक महसूस होगा। यहां तक कि कई इलाकों में नहर और भूजल सिंचाई भी बारिश पर निर्भर करती है।
जल प्रबंधन और किफायती प्रयोग की मदद से ही मौसम के झटकों से बचा जा सकता है। जरूरत इस बात की भी है कि गेहूं, चावल और दालों का घरेलू भंडार मजबूत किया जाए और जरूरत पड़ने पर जिंस आयात पर शुल्क कम किया जाए।
मौद्रिक और राजकोषीय नीति पर इसका क्या असर होगा? मौद्रिक नीति समिति ने रीपो दर में इजाफा रोककर सही किया है। मुद्रास्फीति का लेकर अनिश्चितता के बीच वह लंबे समय तक इजाफा रोक सकती है। समिति ने 4 फीसदी मुद्रास्फीति को लक्ष्य बनाने का निर्णय भी उचित ही लिया।
मुद्रास्फीति को काबू करना आवश्यक है क्योंकि यह गरीबों पर सबसे अधिक असर डालती है। अगर मॉनसून खरा रहा तो राजकोषीय नीति पर दबाव बन सकता है क्योंकि यह राजस्व और बजट अनुमानों पर असर डालेगा। उस स्थिति में मनरेगा जैसी योजनाओं में सरकारी व्यय बढ़ाना पड़ सकता है।
इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि इस वर्ष अल नीनो प्रभाव नजर आए। यह तो समय ही बताएगा कि बारिश में कितनी कमी होगी। ऐसा कई अवसरों पर हुआ है जब अल नीनो के बावजूद देश में सामान्य बारिश हुई। हालांकि मौसमी झटकों से निपटने की क्षमता सुधरी है लेकिन कमजोर मॉनसून कृषि और समूची अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा।
मॉनसूनी बारिश में कमी और उसके वितरण में असमानता जितनी अधिक होगी अर्थव्यवस्था उतनी ही प्रभावित होगी। केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने योजना तैयार की होगी खासतौर पर असिंचित इलाकों को लेकर। समय पर उपाय करने और सावधानीपूर्वक नीतिगत प्रतिक्रिया देने से नकारात्मक प्रभाव से निपटा जा सकता है। चुनाव के ठीक पहले वाला साल होने के कारण अगर कृषि के क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन देखने को मिला और खाद्य महंगाई बढ़ी तो राजनीतिक चुनौतियां भी उत्पन्न होंगी।
(लेखक आईसीएफएआई, हैदराबाद के प्राध्यापक और आईजीआईडीआर, मुंबई के पूर्व निदेशक हैं)