facebookmetapixel
सीतारमण बोलीं- GST दर कटौती से खपत बढ़ेगी, निवेश आएगा और नई नौकरियां आएंगीबालाजी वेफर्स में 10% हिस्सा बेचेंगे प्रवर्तक, डील की वैल्यूएशन 40,000 करोड़ रुपये तकसेमीकंडक्टर में छलांग: भारत ने 7 नैनोमीटर चिप निर्माण का खाका किया तैयार, टाटा फैब बनेगा बड़ा आधारअमेरिकी टैरिफ से झटका खाने के बाद ब्रिटेन, यूरोपीय संघ पर नजर टिकाए कोलकाता का चमड़ा उद्योगबिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ इंटरव्यू में बोलीं सीतारमण: GST सुधार से हर उपभोक्ता को लाभ, मांग में आएगा बड़ा उछालGST कटौती से व्यापारिक चुनौतियों से आंशिक राहत: महेश नंदूरकरभारतीय IT कंपनियों पर संकट: अमेरिकी दक्षिणपंथियों ने उठाई आउटसोर्सिंग रोकने की मांग, ट्रंप से कार्रवाई की अपीलBRICS Summit 2025: मोदी की जगह जयशंकर लेंगे भाग, अमेरिका-रूस के बीच संतुलन साधने की कोशिश में भारतTobacco Stocks: 40% GST से ज्यादा टैक्स की संभावना से उम्मीदें धुआं, निवेशक सतर्क रहेंसाल 2025 में सुस्त रही QIPs की रफ्तार, कंपनियों ने जुटाए आधे से भी कम फंड

मीडिया के सबसे बड़े दुश्मन नहीं हैं ईलॉन मस्क

वेबसाइट ज्यादा पाठक बटोरने के चक्कर में अखबारों से अलग दिखने लगी हैं। बेहतर पत्रकारिता से आई खबरों के मुकाबले फिल्मों, क्रिकेट, सेलेब्रिटी की खबरें ज्यादा पढ़ी जाने लगी है।

Last Updated- February 06, 2025 | 9:56 PM IST

इरीडियम 1990 के दशक की एक सैटेलाइट फोन कंपनी थी जो पृथ्वी की कक्षा में कम ऊंचाई पर चक्कर लगाने वाले दर्जनों उपग्रहों से जोड़ना चाहती थी। उसके ग्राहक तो बहुत कम बने मगर उसके विज्ञापन की एक पंक्ति लाखों लोगों को पसंद आई: ‘भूगोल इतिहास है।’ 1990 के दशक के आखिर में दफ्तर में मेरे एक साथी ने इरीडियम का यह विज्ञापन निकाला और इसमें से ‘भूगोल’ शब्द काट दिया। उसके ऊपर ‘प्रिंट मीडिया’ लिखकर उसने हमारे दफ्तर में चिपका दिया।

यह देखकर मैं बहुत घबरा गया। मेरा वह साथी बेहद तेजतर्रार रिपोर्टर था और उसकी लिखी खबरें पहले पृष्ठ पर छपती रहती थीं। उसके पास हर तरह के नीले रंग की कमीज थीं। दफ्तर में जब हम डेस्कटॉप के चौड़े कीबोर्ड पर काम करते थे उन दिनों वह लैपटॉप का इस्तेमाल करता था। लेकिन क्या उसे वाकई कोई खबर थी? प्रिंट मीडिया आज भी है, लेकिन इरीडियम इतिहास बन गई है। इस दौरान हमने यानी प्रिंट मीडिया ने टेलीविजन और इंटरनेट से जंग लड़ी, जिसका असर भी हुआ। सभी प्रिंट मीडिया कंपनियों ने इंटरनेट को अपना लिया है और वे हजारों वीडियो भी बना रही हैं। ज्यादातर की कमाई अब भी प्रिंट मीडिया से ही होती है मगर तकरीबन सारा नया निवेश डिजिटल मीडिया में ही हो रहा है चाहे उनसे कमाई कितनी भी कम क्यों न हो। असल में मीडिया में पेवॉल (यानी तय शुल्क अदा कर खबर या अखबार पढ़ना) का चलन अभी ज्यादा कामयाब नहीं हुआ है और डिजिटल पर विज्ञापन की कीमत प्रिटं जितनी नहीं है।

अब हम ईलॉन मस्क के खिलाफ हो गए हैं। मस्क की कुछ खूबियां हैं। वह मामूली शब्दों को भी मारक और अपमानजनक बना सकते हैं। जब वह ‘लेगसी मीडिया’ यानी ‘घिसे-पिटे मीडिया’ का नाम लेते हैं तो दुखती रग छिड़ जाती है। वह चौतरफा हमला करने से भी पीछे नहीं रहते, जैसा उन्होंने अपने दुलारे साइबरट्रक में विस्फोट के बाद मीडिया में आई खबरों पर किया था। लेकिन जब वह अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के यूजर्स से कहते हैं कि यूजर्स ही मीडिया हैं तब सोचना पड़ता है कि यह बात वह वाकई गंभीरता से तो नहीं कह रहे। सोशल मीडिया ने हर किसी को मंच तो दिया है मगर कुछ लोग उसे भोंपू समझ बैठे हैं। हर किसी की राय होती है, जिसे जाहिर करने के लिए वह बेकरार रहता है। लेकिन कहते हैं कि हर किसी की राय तो हो सकती है मगर उसे सही साबित करने के लिए कुछ नहीं हो सकता। हर किसी के पास तथ्यों को जांचने के लिए फैक्ट-चेकिंग की सुविधा भी नहीं हो सकती। मेटा के मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक पर किसी अन्य कंपनी द्वारा चलाई जाने वाली फैक्ट-चेकिंग की सुविधा डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही एकाएक खत्म कर दी, जबकि फेसबुक उस समय गलत जानकारी देने के गंभीर आरोपों से जूझ रहा था।

एक बार मैं किसी बड़े मंत्री के पास बैठा उन्हें साक्षात्कार के लिए मना रहा था। उन्होंने पूछा, ‘सोशल मीडिया पर मेरे इतने (संख्या में कई शून्य लगे थे) फॉलोअर हैं। मैं अपनी बात सीधे पोस्ट कर सकता हूं और वह बिल्कुल वैसी ही आएगी, जैसी मैं चाहता हूं। फिर मैं आपको साक्षात्कार क्यों दूं?’

मैंने उनसे कहा कि इसीलिए तो साक्षात्कार देना चाहिए क्योंकि वह उनका लिखा हुआ नहीं होगा। कोई सवाल पूछेगा, चर्चा को एक रूप देगा, ऐसी दिशा में ले जाएगा, जहां उन लोगों को सही जानकारी मिलेगी, जो मंत्री से सीधे बात नहीं कर सकते। हॉलीवुड की उम्दा फिल्म ‘अ फ्यू गुड मेन’ में बेहतरीन काम करने वाले जैक निकलसन के संवाद ‘यू वॉन्ट मी ऑन दैट वॉल, यू नीड मी ऑन दैट वॉल’ की तर्ज पर मैंने कहा, ‘आपको जरिया चाहिए और आप मुझे जरिया बनाना चाहते हैं।’ मंत्री को बहुत तजुर्बा था और वह साक्षात्कार के लिए राजी होने से पहले मुझे आजमा रहे थे। सार्वजनिक चर्चा में सीधे अपने श्रोताओं से बात की जा सकती है मगर कभी-कभी इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है, जैसा पिछले दिनों नए जमाने के एक उद्यमी को भुगतना पड़ा। उन्होंने एक्स पर ऐसे शख्स से पंगा ले लिया, जो चुटकुलों और लतीफों से रोजी-रोटी कमाता है यानी जिसके पास गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है। लेकिन समाचार कंपनियों को आगे की राह अब भी तलाशनी है।

इंटरनेट को अपनाने के साथ ही समाचार वेबसाइट ज्यादा से ज्यादा लोगों (ट्रैफिक) को खींचने की होड़ में लग गईं। वेबसाइट पर ज्यादा लोगों का आना अच्छा है। हममें से कई लोग उम्मीद करते हैं कि नई फिल्म देखने के लिए पहले हफ्ते में ही उमड़ी भीड़ की सुर्खी देखकर वेबसाइट पर आने वाले सरकार के खर्च की खबर भी पढ़कर जाएंगे। लेकिन वेबसाइट ज्यादा पाठक बटोरने के चक्कर में अखबारों से अलग दिखने लगी हैं। बेहतर पत्रकारिता से आई खबरों के मुकाबले हमेशा ही फिल्मों, क्रिकेट और सेलेब्रिटी की खबरें ज्यादा पढ़ी जाती हैं। पहले जब मैं अक्सर दिल्ली और पटना के बीच ट्रेन से सफर करता था तो इंडिया टुडे के मुकाबले स्टारडस्ट कई गुना ज्यादा बिकती थी।

लेकिन अच्छी खबरों के बारे में भी कुछ कहना चाहिए, जिसे एक खास जमात के पाठक और विज्ञापनदाता हमेशा पसंद करते रहे हैं। मुझे लगता है कि स्टारडस्ट के मुकाबले इंडिया टुडे में विज्ञापन छपवाना ज्यादा सम्मान की बात थी। अगर पत्रकारिता आधुनिक तरीलेकिन वेबसाइट ज्यादा पाठक बटोरने के चक्कर में अखबारों से अलग दिखने लगी हैं। बेहतर पत्रकारिता से आई खबरों के मुकाबले हमेशा ही फिल्मों, क्रिकेट और सेलेब्रिटी की खबरें ज्यादा पढ़ी जाती हैं।लेकिन वेबसाइट ज्यादा पाठक बटोरने के चक्कर में अखबारों से अलग दिखने लगी हैं। बेहतर पत्रकारिता से आई खबरों के मुकाबले हमेशा ही फिल्मों, क्रिकेट और सेलेब्रिटी की खबरें ज्यादा पढ़ी जाती हैं।कों को ज्यादा अपनाए तो मदद मिलेगी।

मैंने सुना है कि जब पहली बार कंप्यूटर आए तो कई पत्रकारों को उनसे हिचक थी और उन्हें लगता था कि टाइपराइटर पर बढ़िया लिखना ही असली हुनर है। अब कंप्यूटर का इस्तेमाल आम है। पांच साल बाद शायत आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल भी उतनी ही आम बात हो जाएगी। हो सकता है कि यकीन करना मुश्किल हो लेकिन डिजिटल और प्रिंट के बीच दीवार अखबारों के दफ्तरों में ही खिंच जाती है। कई साल से दोनों को साथ लाने की कोशिश हो रही हैं मगर नतीजे मिले-जुले ही हैं। कई रिपोर्टर ऐसी खबरें ऑनलाइन नहीं डालते, जो केवल उनके पास होती हैं। उन्हें डर रहता है कि अखबार छपते-छपते वही खबर कोई और भी छाप देगा। यहां तक कि कोई हल्की खबर देखकर हम लोग भी कहते हैं, ‘इसको डिजिटल पर डाल दो।’ मानो वेबसाइट किसी दूसरे ब्रांड और दूसरी कंपनी की है और इसके पाठक भी कोई और हैं।

अगर हम नई तकनीकों को अपना साथी मानने लगें, जो कहानी कहने का हमारा हुनर और तराश सकती हैं और पाठकों के सामने उस खबर को जीवंत बनाने के लिए हम केवल शब्दों के सहारे न रहें तो हम अपने पाठकों को ही नहीं बल्कि दर्शकों को भी बेहतर सामग्री दे सकते हैं। आपको नमूना चाहिए तो न्यूयॉर्क टाइम्स में कई साल पहले छपी खबर ‘स्नो फॉल: द एवलांच ऐट टनल क्रीक’ देख सकते हैं। गूगल पर जाइए और देखिए कि नई तकनीक का इस्तेमाल कर खबर को बेहतरीन कैसे बनाया जा सकता है।

अच्छी पत्रकारिता का अपना रसूख और मकसद है। फिल्मों, क्रिकेट और सेलेब्रिटी की खबरें पढ़ने-देखने के लिए हमें कितनी वेबसाइट चाहिए? किसी को तो जरिया या पुल बनना पड़ेगा। उसके लिए आपको मेरी जरूरत पड़ेगी।

First Published - February 6, 2025 | 9:56 PM IST

संबंधित पोस्ट