वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की नीति-निर्धारक संस्था जीएसटी परिषद की एक और बैठक क्षतिपूर्ति के मसले पर किसी सर्वसम्मत फैसले के बगैर ही खत्म हो गई। इस गतिरोध का असर महामारी से निपटने में जुटे राज्यों पर जरूरी खर्चों का इंतजाम करने की क्षमता पर पड़ेगा। इससे न केवल महामारी के खिलाफ जारी जंग में भारत कमजोर पड़ेगा बल्कि आर्थिक बहाली में भी देर होगी। यूं तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महज ‘मतभेद’ बताकर इसे अधिक तूल न देने की कोशिश की है लेकिन साफ है कि यह गतिरोध ऐसे समय में केंद्र एवं राज्यों के संबंधों को प्रभावित कर रहा है जब उन्हें तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि इस पर किसी की क्या राय है, बात यह है कि इससे किसी की भी मदद नहीं हो रही है। जीएसटी संग्रह में राज्यों की हिस्सेदारी में इस साल 3 लाख करोड़ रुपये तक की कमी आने की आशंका है। लेकिन राज्यों को नुकसान होने पर दिए जाने वाले मुआवजे के लिए संकलित उपकर महज 65,000 करोड़ रुपये ही होगा जिससे 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी रह जाएगी।
केंद्र ने राज्यों के समक्ष दो विकल्प रखे हैं। पहले विकल्प में केंद्र 1.1 लाख करोड़ रुपये की उधारी जुटाने में मदद करेगा। इस उधारी पर मूलधन एवं ब्याज दोनों का ही पुनर्भुगतान क्षतिपूर्ति उपकर को 5 वर्षों की अधिकतम सीमा से आगे बढ़ाकर किया जाएगा। दूसरे विकल्प के तहत राज्य समूची राशि उधार ले सकते हैं लेकिन उन्हें ब्याज का बोझ उठाना होगा। केंद्र सरकार का कहना है कि 30 में से 21 राज्यों ने पहले विकल्प को चुना है और वे इस प्रक्रिया में तेजी लाना चाहते हैं। वहीं बाकी राज्य इसके पक्ष में नहीं हैं। कुछ राज्यों ने तो यह जानना चाहा है कि उधारी की रकम 1.1 लाख करोड़ रुपये से अधिक क्यों नहीं हो सकती है?
ऐसी खबरें हैं कि कुछ राज्य सरकारें इस मुद्दे के समाधान के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख करने के बारे में भी सोच रही हैं। लेकिन इससे परहेज करना चाहिए क्योंकि यह मसले के समाधान में और देर करेगा जो राज्यों की फौरी जरूरत के माकूल नहीं होगा। राज्यों को यह विवाद जीएसटी परिषद के भीतर ही निपटाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह एक राजनीतिक समाधान भी है। राज्य सरकारों के पास ऐसी शिकायत करने के वाजिब कारण भी हैं क्योंकि केंद्र ने मुआवजे के विकल्प तैयार करते समय उनसे समुचित विचार-विमर्श नहीं किया। ध्यान रहे कि जीएसटी परिषद की आठवीं बैठक में दिवंगत अरुण जेटली ने राज्यों को आश्वस्त किया था कि क्षतिपूर्ति फंड अपर्याप्त होने पर जीएसटी परिषद ही अतिरिक्त संसाधन जुटाने के तरीके पर फैसला करेगी जिसमें एक विकल्प बाजार से उधारी जुटाने का भी होगा। लेकिन असल में चीजें इस तरह आगे नहीं बढ़ी हैं। सरकार की इस दलील को मान लेना भी गलत है कि केंद्र्र द्वारा उधारी जुटाने का वृहद-आर्थिक पहलुओं पर गहरा असर होगा। केंद्र एवं राज्य सरकारें दोनों वित्तीय बचत के एक ही समूह से उधारी जुटाते हैं लेकिन तमाम वजहों से केंद्र सरकार को अनुकूल दरों पर उधार मिल जाता है। इसी के साथ कुछ राज्यों की यह मांग भी गैरवाजिब है कि कोविड महामारी जैसी अभूतपूर्व एवं असाधारण स्थिति में भी जीएसटी राजस्व पर उन्हें पूर्ण संरक्षण दिया जाए। इस वित्त वर्ष में राज्यों का जीएसटी से इतर राजस्व 14 फीसदी की दर से नहीं बढ़ रहा है। इस तरह केंद्र एवं राज्यों दोनों को ही अधिक व्यावहारिक रुख अपनाते हुए बीच का रास्ता तलाशने की जरूरत है। केंद्र सरकार को इसमें आगे बढ़कर पहल करनी होगी। यह ध्यान रखना होगा कि चालू वर्ष और शायद अगले साल भी राजस्व संग्रह में कमी की भरपाई के लिए अधिक उधारी लेने पर उपकर शुल्क का दायरा बढ़ जाएगा। ऐसा होने से अनिश्चितता पैदा होगी और कारोबारी माहौल पर भी असर पड़ेगा।